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लाला अमरनाथ को आंकड़ों में नहीं बांधा जा सकता

भारत में क्रिकेट अपनी जड़ें जमा रहा था जब 1933 में बॉम्बे जिमखाना में बाइस साल के लाला अमरनाथ ने अपना पहला ही टेस्ट मैच खेलते हुए डगलस जार्डीन की अंग्रेज़ टीम के खिलाफ़ मात्र 180 गेंदों पर 118 रन बना कर अपने जीनियस से सब का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा था. यह भारतीय क्रिकेट इतिहास का भी पहला टेस्ट शतक था और हैडली वैराइटी, स्टोनले निकल्स, एडवर्ड क्लार्क और जेम्स लैंग्रिज जैसे धुरंधर गेंदबाज़ों के आगे बनाया गया था. इस पारी को आज भी भारतीय क्रिकेट इतिहास की श्रेष्ठतम पारियों में शुमार किया जाता है. उनके समकालीन रूसी मोदी ने लिखा था: “जिन चुनिन्दा भाग्यशाली लोगों ने इस पारी को देखा वे इसे कभी नहीं भूलेंगे. जो नहीं देख सके उन्हें हमेशा मलाल रहना चाहिये.”

11 सितम्बर 1911 को जन्मे लाला अमरनाथ का असली नाम था नानिक अमरनाथ भारद्वाज. उनके खेल के स्तर और चरित्र को आंकड़ों में नहीं बांधा जा सकता. इंग्लैंड, वेस्ट इंडीज़, आस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के खिलाफ़ उन्होंने 1933 से 1953 के दरम्यान कुल चालीस पारियां खेलते हुए करीब पच्चीस की औसत से 787 रन बनाए और 45 विकेट भी लिए. उन्होंने अपना करियर विकेटकीपर-बल्लेबाज़ के तौर पर शुरु किया था लेकिन उन्हें बल्लेबाज़ी के अलावा स्विंग गेंदबाज़ी के लिए भी जाना गया. दूसरे विश्वयुद्ध के कारण उनके खेल-जीवन के सुनहरे साल बरबाद हो गए जैसा कि महान बल्लेबाज़ों डॉन ब्रैडमैन और लेन हटन के साथ भी हुआ था.

1938 में बम्बई में हुए पैन्टांगुलर टूर्नामेन्ट में उन्होंने हिन्दूज़ की तरफ़ से खेलते हुए 241 रनों की क्लासिक पारी खेली थी जिसे लम्बे समय तक याद रखा गया. दो साल पहले इंग्लैंड गई भारतीय टीम के कप्तान महाराजकुमार विजयनगरम के साथ हुई असहमतियों के कारण लाला को एक विवाद में फ़ंसाया गया जिसके चलते उन्हें दौरा बीच में छोड़ कर वापस भारत आना पड़ा. इस विवाद के बारे में मैंने इसी कॉलम में दो सप्ताह पहले लिखा भी था. इस विवाद की जांच के बाद महाराजकुमार विजयनगरम की भद्द पिटी और लाला अमरनाथ की साख में इजाफ़ा ही हुआ.

आज़ाद भारत के पहले कप्तान के रूप में उन्होंने आस्ट्रेलियाई दौरे में टीम का नेतृत्व किया. वहां उन्होंने कुछ ज़बरदस्त पारियां खेलीं. विक्टोरिया के खि़लाफ़ खेली गई उनकी २२८ नाट आउट की पारी पर विक रिचर्डसन ने एक भारतीय अखबार के लिए लिखा: “यह पारी मेरी याददाश्त में डोनल्ड ब्रैडमैन की 1930 में लीड्स में खेली गई 339 की, और सिडनी में स्टैन मैकेब की 182 की पारी के साथ हमेशा अंकित रहेगी. इन तीनों पारियों की ख़ासियत यह थी कि विपक्षी टीमों की गेंदबाज़ी अपने उरूज पर थी. सारा आस्ट्रेलिया लाला अमरनाथ की चर्चा कर रहा है और उनके प्रति उतनी ही श्रद्धा रखता है जितनी उसे डॉन ब्रैडमैन के लिए रही है.”

यहां उल्लेखनीय है कि विक रिचर्ड्सन इयान और ग्रेग चैपल के नाना थे. जैक फ़िंगलटन और दलीपसिंह जी जैसे खिलाड़ियों-आलोचकों ने भी लाला के खेल और उनके करिश्माई व्यक्तित्व के बारे में कसीदे लिखे.

1948 में वेस्ट इंडीज़ की टीम के दौरे के वक्त उनकी तत्कालीन बीसीसीआई सचिव ऐन्थनी डिमैलो से बहस हो गई जिसके ऐवज में उन्हें अगले दौरों में टीम में शामिल तक नहीं किया गया. याद कीजिये किस तर्ह उनके बड़े बेटे मोहिन्दर अमरनाथ के साथ भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने कैसा सुलूक किया था.

लाला अमरनाथ के जीवन में इसके बाद कई तरह के उतार चढ़ाव आए लेकिन अपनी नैतिक दृढ़ता के बल पर वे हर बार कामयाबी से उस से बाहर आ गए. उनके तीनों बेटों मोहिन्दर, सुरिन्दर और राजिन्दर को यही गुण विरासत में मिले थे. मोहिन्दर 1980 के दशक में भारत में तेज़ गेंदबाज़ी के खिलाफ़ सबसे अच्छे बल्लेबाज़ थे और उनका करियर बहुत शानदार रहा. सुरिन्दर अमरनाथ ने भी पहले टेस्ट मैच में शतक लगाया था जो इत्तफ़ाकन भारतीय क्रिकेट इतिहास का सौवां शतक था. राजिन्दर भी प्रथम श्रेणी तक खेले. राष्ट्रीय टीम में न आ पाने की भरपाई उन्होंने अपने पिता की जीवनी ‘द मेकिंग ऑफ़ अ लेजेन्ड लाला अमरनाथ’ लिखकर की. बहुत श्रद्धा से अपने पिता को याद करते हुए राजिन्दर लिखते हैं: “जब से उन्होंने बचपन में एक पैसा कीमत वाला अपना पहला बल्ला छुआ था, उसके बाद से अपने अन्तिम दिन तक वे भारत और भारतीय क्रिकेट के लिए जिये हालांकि उन्हें कई मौकों पर इस की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी”

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