“वड्डा कौण है?”
“तुसी”
“समझदार कौण है?”
तुसी”
“इटेलीजेंट कौण है?”
“तुसी”
यह टीटू सिंह और टोनी सिंह के बीच होने वाला एक वार्तालाप हुआ करता था जिसे देखते हुए दर्शक लहालोट हो जाया करते थे. हिन्दी फिल्मों के टॉप टेन गानों की पेशकश को लेकर तैयार किया गया यह प्रोग्राम 1990 के दशक में बहुत लोकप्रिय हुआ था और इस लोकप्रियता के पीछे टीटू सिंह और टोनी सिंह का किरदार निभाने वाले सतीश कौशिक और पंकज कपूर की अभूतपूर्व टाइमिंग वाली कॉमेडी थी. उस समय तक अनेक अविस्मरणीय भूमिकाएं निभा कर पंकज कपूर टेलीविजन पर एक बहुत बड़े सुपरस्टार बन चुके थे और उनका शुमार देश के सबसे प्रतिभावान अभिनेताओं में हुआ करता था. (Remembering Actor Pankaj Kapoor )
भारतीय दूरदर्शन पर आया एक सीरियल ‘करमचंद जासूस’ आज भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है. पंकज कपूर इसमें मुख्य भूमिका में थे और उनकी असिस्टेंट बनी थीं सुष्मिता मुखर्जी. सुष्मिता ने इस सीरियल में किटी का किरदार निभाया था जो अक्सर बेवकूफी भरे सवालात किया करती थी जिनके जवाब में करमचंद कहता था – “शट अप किटी!” यह अपने समय के सबसे अच्छे सीरियलों में से था.
अस्सी और नब्बे के दशकों में पंकज कपूर का जलवा था. उन्होंने फिल्मों में भी एक से एक किरदार निभाये थे. कुंदन शाह की ‘जाने भी दो यारो’ जैसी कल्ट कॉमेडी में उनकी तरनेजा की भूमिका रही हो या मणि रत्नम की ‘रोजा’ में आतंकवादी या ‘चमेली की शादी’ में कंजूस बाप की, पंकज कपूर ने हर फिल्म में अपनी अलग छाप छोड़ी है.
पंकज कपूर शानदार अभिनेताओं की उस पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं जिसने सत्तर के दशक के बाद के सालों से अपनी पहचान बनानी शुरू की थी. इनमें नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी का नाम लिया जाना चाहिए. बहुत कम लोग जानते होंगे कि नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में दाखिला लेने से पहले पंकज कपूर ने न केवल अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर थी, वे अपनी क्लास में पहले स्थान पर भी रहे थे. (Remembering Actor Pankaj Kapoor)
नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से निकलने के बाद वे चार साल तक थियेटर करते रहे जब तक कि उन्हें रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ में एक छोटे किरदार के लिए चुन लिया गया. इस फिल्म में बेन किंग्सले के लिए गांधी की आवाज़ भी पंकज की आवाज में डब की गयी. थियेटर की दुनिया में झंडे गाड़ चुके पंकज कपूर तकरीबन सौ नाटकों में भी काम कर चुके हैं.
फिलिप्स टॉप टेन और करमचंद के अलावा उन्होंने ‘कब तक पुकारूं;, ‘ज़बान सम्हाल के’ और ‘नीम का पेड़’ जैसे महत्वपूर्ण टीवी सीरियल्स में मुख्य किरदार निभाये. उनकी अन्य बड़ी फिल्मों में ‘एक रुका हुआ फैसला’, ‘राख’, ‘एक डाक्टर की मौत’, ‘द ब्लू अम्ब्रेला’, ‘हल्ला बोल’ और ‘मकबूल’ का ज़िक्र किया जा सकता है.
चॉकलेटी चेहरों को इस्तेमाल करने की आदत से अभिशप्त बंबई की फिल्म इंडस्ट्री में अपने रूखे और साधारण चेहरा लेकर पहुंचे जिन कलाकारों ने अपनी असाधारण अभिनय प्रतिभा की मदद से भारतीय सिनेमा और टीवी के इतिहास की नई इबारत लिखी, पंकज कपूर उनकी अगली पांत में बिठाए जाएंगे.
29 मई 1954 को जन्मे पंकज कपूर आज पैंसठ साल के हो रहे हैं. आज की फूहड़ और निरर्थक-भौंडी कॉमेडी के दौर में जिस तरह की अंडरस्टेटेड कॉमेडी पंकज कपूर करते थे और गंभीर रोल्स को निभाते समय जिस तरह वे शब्दों को तकरीबन चबाते हुए अपनी डायलाग डिलीवरी किया करते थे, उसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.
वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…