Featured

उच्याणा : कामनापूर्ति की इच्छा से देवताओं को भेंट चढ़ाने का संकल्प

उत्तराखण्ड की अध्यात्मिक आस्था एवं विश्वासों में से एक है उच्यौन, उचान, उच्याणा, उच्याणी.

जब कोई व्यक्ति अस्वस्थ हो जाता है और किसी भी इलाज से उसे कोई फायदा नहीं होता तब उसे स्थानीय भूत-प्रेत या देवी-देवताओं सम्बन्धी से ग्रसित समझ लिया जाता है.

इस आशंका के साथ संभावित देवी-देवता के नाम पर एक हरे पत्ते में थोड़े से चावल तथा पैसों की सांकेतिक भेंट रखकर प्रभावित व्यक्ति के ऊपर तीन दफा घुमाया जाता है. आश्वासन दिया जाता है की वह जो कोई भी है गणतुआ, पुछेरे या बाक्की से उसकी छानबीन करवा ली जाएगी. छानबीन करवाने के बाद अथासंभव भेंट-पूजा की जाएगी. कुमाऊँ में इसे बिटबादन (अर्थात पत्ते के बीड़े में छानबीन के लिए अक्षत भेंट को बांधकर रखना) भी कहा जाता है.

उच्याणा एक ऐसी भेंट है जो देवताओं के निमित्त कामना पूर्ति के लिए रखी जाती है. यह भेंट रुपये-पैसों के अलावा बकरे आदि पशु के बलिदान के संकल्प के रूप में भी होती है. कामना करने वाला व्यक्ति उच्याणा रखते हुए संकल्प लेता है कि कामना पूर्ण होने पर इस बकरे का बलिदान कर भेंट चढ़ाऊंगा.

कभी-कभी यह उच्याणा चांदी के मोटे कड़े व छत्र के लिए भी रखा जाता है. मनोकामना पूरे होने पर संकल्प पूरा किया जाता है.

इसके अलावा जात, जागर, यग्य के रूप में देवता विशेष की पूजा की जाती है. इसके लिए भी उच्याणा ही किया जाता है. इसके आयोजन के लिए घी, तिल, जौ आदि सामग्री रख दी जाती है. उच्याणा रखते हुए ज्यूंदाल और पिठ्याँ रखने का विशेष विधान है. बिना ज्यूंदाल, पिठ्याँ के कोई कोई भी उच्याणा नहीं रखा जाता. ज्यूंदाल का मतलब है कुछ चावल के दाने जिन्हें अक्षत भी कहा जाता है.

भैंसे की बलि देने के निमित्त उच्याणा का जो रूप होता है, वह है भाबड़ नाम के घास के तिनकों की एक मोटी रस्सी बनाकर रख देना. मनोकामना पूर्ण होने पर इसी रस्सी से बांधकर बलिदान का भैंसा देवता के थान पर ले जाया जाता है.

(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष: प्रो.डी.डी. शर्मा के आधार पर)

वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

3 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

5 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago