पके हुए बमौर के फल
उत्तराखंड के पहाड़ों में 1500 से 2300 मीटर की ऊंचाई पर उगने वाला एक फल होता है – बमौर. पका हुआ लीची का फल यदि गोल होता तो देखने में थोड़ा-थोड़ा बमौर जैसा लगता. इसकी छाल अलबत्ता लीची से बिलकुल अलग और मुलायम होती है. Rare Uttarakhand Fruit Bamor
पिछले सप्ताह अल्मोड़े के नजदीक स्थित गणानाथ के मंदिर की कठिन चढ़ाई चढ़ते हुए मुख्य मन्दिर से कुछ दूर पहले मेरी मुलाक़ात गणानाथ के फारेस्ट गेस्ट हाउस के चौकीदार महोदय, औलिया गाँव के रहने वाले हरिसिंह उर्फ़ हरदा, एक बड़ी सी प्लास्टिक की थैली में ढेर सारे बमौर भर कर ला रहे थे. उनसे दुआसलाम हुई तो उन्होंने बताया कि इसके पहले कि भालू सारे चट कर जाए बच्चों के लिए थोड़े ले कर जा रहे हैं. Rare Uttarakhand Fruit Bamor
उन्होंने हमें चखने के लिए कुछ ताजे बमौर दिए. मेरा परिवार दो पीढ़ी पहले से शहरों में बस गया था सो बमौर खाने का यह मेरा पहला मौक़ा था. तनिक मीठा तनिक फीका यह फल भीतर से छोटी-छोटी और काफी सारी मुलायम गुठलियों से भरा होता है. ये गुठलियाँ एक बहुत मुलायम परत से ढंकी होती हैं जिनके जीभ में आने पर वैसा ही अनुभव आता है जैसा उबले हुए साबूदाने से आता है. कुल मिला कर यह एक अतुलनीय और अद्वितीय स्वाद से भरपूर फल होता है.
थोड़ा आगे जाने पर सड़क के किनारे उगे पेड़ों पर मैंने पहली बार इन फलों को लगा हुआ देखा. वहां से भी कुछ बमौर तोड़े गए. गणानाथ केमंदिर में हमें दिव्यांशु और प्रियांशु नाम के दो छोटे बच्चे मिले. मैंने ऐसे ही उन्हें कैमरे से खींचे बमौर के फलों की फोटो दिखाई तो वे तुरंत पहचान कर बोले – “अरे ये तो बमौर है! भालू बहुत खाता है इन्हें.”
बमौर (गढ़वाली में भमोरा) को भालू का गुलाब जामुन भी कहते हैं. और भालू ही क्यों गढ़वाल में जीजाओं का भी प्रिय फल है. असूज के महीने जब कौथिक नहीं होते तो रसिक जीजा साली को पके भमोरों का ही प्रलोभन देता है –
तै देवर डांडा भमोरा पक्यां लो
चल दों मेरी स्याली भमोरा खयोला
इसी तरह नरेन्द्र सिंह नेगी के एक गीत में ग्वाले एक लड़की को ये कहकर छेड़ते हैं –
ग्वेर छोरों न् गोरू चरैनी
त्वैन डाल्युं मा बैठी भमोरा बुकैनी
किलै तू छोरी छैलु बैठीं रै
आयो लछि घौर रुमुक पड़ीग्ये
इस टिपिकल पहाड़ी फल के धीरे-धीरे समाप्त होते जाने और इसकी वजह से भालुओं की बसासत के सिकुड़ते जाने की एक खबर कुछ साल पहले एक स्थानीय अखबार में पढ़ी थी. गणानाथ तक के उस पूरे जंगली रास्ते में उसके कुल दो पेड़ों का मिलना इस बात की पुष्टि करता था. खबर यह भी थी कि जंगलात विभाग इनकी बाकायदा नर्सरी बनाने की योजना बना रहा है. Rare Uttarakhand Fruit Bamor
मैंने अपने सहयात्री प्रशांत बिष्ट से ऐसे ही पूछा कि क्या ऐसा हो सकता है हल्द्वानी की सबसे पुरानी बसासतों में एक बमौरी इसी फल के नाम पर न पड़ा हो. हो सकता है बमौरी के मूल बाशिंदे पहाड़ के किसी ऐसे इलाके से आये हों जहां यह जंगली फल बहुतायत में उगता हो.
“हो सकता है. बिलकुल हो सकता है!” प्रशांत ने उत्तर दिया. खैर, फ़िलहाल आप बमौर फल और उसके पेड़ की कुछ तस्वीरें देखिये:
काफल एक नोस्टाल्जिया का नाम है
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लगता है ऊंचाई आपने मीटर की बजाय फ़ीट में लिख दी है, शायद समुद्र तल से १५००-२३०० मीटर की ऊंचाई होना चाहिए।
जी गलती से फीट लिखा गया. मीटर होना चाहिए था. ठीक कर रहे हैं.