लेकिन राम आडवाणी अब कहां मिलेंगे? किताबें तो कोई भी बेच लेगा

हम उन्हें राम भाई कहते थे.

“राम भाई,” मई 2011 में एक दिन मैंने उन्हें फोन किया था- “साबरी ब्रदर्स की कव्वाली करा रहे हैं, आप जरूर आएं.” “माई प्लेजर” उन्होंने कहा था. वे आए. उस कार्यक्रम में हमने राम आडवाणी समेत लखनऊ की दस सख्शियतों को सम्मानित भी किया था. राम भाई ने पूरे समय बैठ कर कव्वाली सुनी और बहुत खुश हुए थे. दूसरे दिन उन्होंने मेरे पास एक लिफाफा भिजवाया. अंग्रेजी में लिखी छोटी-सी चिट- “प्रिय नवीन जी, दिलकुशा की बैठकी हमेशा याद रहेगी. कृपा के लिए शुक्रिया. एक हजार रु भेज रहा हू. इन्हें साबरी बंधुओं तक पहुंचा दीजिएगा. मेरे पास उनका पता नहीं है.” पांच सौ के दो नोट लिफाफे में रखे थे.

उस कार्यक्रम में बहुत सारे लोग थे लेकिन सिर्फ राम भाई को याद रहा कि कव्वालों को कुछ नज़राना पेश करना लखनऊ की पुरानी रवायत है. राम आडवाणी के निधन के साथ ही लखनऊ की पहचान का एक विशिष्ट प्रतीक ढह गया है. लखनऊ आने के बाद से ही वे इसकी धड़कन का हिस्सा थे. गोल्फ क्लब की शुरुआत करने वालों में वह भी शामिल थे. यहां के खास आयोजनों में उन्हें बराबर शरीक देखा जा सकता था. लखनऊ की पुरानी जानी-पहचानी दुकान ‘यूनिवर्सल बुक सेलर्स’ के चंदर प्रकाश कहते हैं- ‘राम भाई लखनऊ की अहम सख्शियत थे, लखनऊ के लिए एक विशाल आयना. पूरी दुनिया में उनका और उनकी दुकान की इज्जत थी और इस वजह से लखनऊ का भी बहुत सम्मान होता था.’

हज़रतगंज बाजार की ऐतिहासिक मेफेयर इमारत के एक कोने में 1951 (1948 में खुली यह दुकान तीन साल गांधी आश्रम वाली इमारत में थी) से चली आ रही ‘राम आडवाणी बुकसेलर्स’ सिर्फ किताबों की एक दुकान नहीं थी. वह एक पुस्तक प्रेमी की इबादतगाह, साहित्य-संस्कृति-राजनीति के विशेषज्ञों-शोध छात्रों का अड्डा और लखनऊ के इतिहास और उसकी संस्कृति का जीवंत कोश थी. अनेक बार तो वहां किताबों से कहीं ज्यादा जानकारियां खुद राम आडवाणी से मिल जाया करती थीं. वहां घण्टों बैठ कर किताबें देखी जा सकती थीं, राम भाई से किताबों के बारे में लम्बी पूछ-ताछ की जा सकती थी और बिना कोई किताब खरीदे निस्संकोच वापस जाया जा सकता था. आपकी रुचि हो तो राम भाई बता सकते थे कि किस विषय पर कौन सी बेहतर पुस्तक आई हैं और दुनिया के किस कोने से किस पुस्तक की मांग उनके पास पहुंची है.

‘किताबें तो कोई भी बेच सकता है’ वे कहते थे, जो कभी उनके दादा ने रावलपिण्डी में किताबों की अपनी दुकान में दीक्षा के तौर पर उन्हें बताया था- ‘मगर किताब को, उसके विषय को और उसके लेखक को जानना बिल्कुल अलग बात है. तभी तो आप जानेंगे कि कौन सी किताब दुकान में रखनी है.’ राम भाई के दादा जी की लाहौर और रावलपिण्डी में ‘रे’ज बुक स्टोर’ नाम से किताबों की दुकानें थीं. किताबों से राम भाई की मुहब्बत वहीं शुरू हुई थी. राम भाई किताबों को बहुत बेहतर ढंग से जानते थे. लेखकों और पाठकों को भी. लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर रहे डा रमेश दीक्षित कहते हैं कि किताबों के बारे में जानने वाला ऐसा दुकानदार कहीं नहीं होगा. वे बता देते थे कि किस विषय पर कौन सी पुस्तक आई है और वह किसलिए महत्वपूर्ण है.’

कभी प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे गोविंद बल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, डा सम्पूर्णानंद उनकी दुकान में आया करते थे तो जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने भी उनकी दुकान से किताबें मंगावाई थीं. हाल के वर्षों में लेखक और पुराने दोस्त रस्किन बॉण्ड, उपन्यासकार अमिताव घोष, इतिहासकार रोजी लवलिन जोंस,विलियम डेलरिम्पल जैसी हस्तियां लखनऊ आतीं तो राम भाई की दुकान में मत्था टेके बिना न रहतीं. सामान्य से कुर्ते पाजामे और हलकी बढ़ी दाढ़ी वाले राम भाई सबसे वहुत अपनेपन से बतियाते थे. वे बहुत ही सरल और अच्छे इनसान थे. बहुत सादगी से जिंदगी जीते थे.

लेकिन राम आडवाणी और उनकी दुकान जल्दी ही एक दिन सिर्फ दोस्तों और उनके ग्राहकों की यादों में ही रह जाएगी. राम भाई ने हाल ही में अपना 95वां जन्म दिन मनाया था.सचमुच, अब राम भाई सिर्फ यादों में हैं. यही हाल किताबों की उनकी दुकान का भी होना है.

नवीन जोशी ‘हिन्दुस्तान’ समाचारपत्र के सम्पादक रह चुके हैं. देश के वरिष्ठतम पत्रकार-संपादकों में गिने जाने वाले नवीन जोशी उत्तराखंड के सवालों को बहुत गंभीरता के साथ उठाते रहे हैं. चिपको आन्दोलन की पृष्ठभूमि पर लिखा उनका उपन्यास ‘दावानल’ अपनी शैली और विषयवस्तु के लिए बहुत चर्चित रहा था. नवीनदा लखनऊ में रहते हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago