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राजा ज्ञानचंद को गरुड़ज्ञानचंद क्यों कहते हैं?

चन्द शासकों में सबसे ज्यादा समय तक गद्दी में बैठने वाले शासक का नाम है राजा ज्ञानचंद. कुछ लोगों ने सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाले चंद शासक का नाम गरुड़ज्ञानचंद भी पढ़ा होगा. दरसल इस सवाल के दोनों ही उत्तर सही हैं क्योंकि ज्ञानचंद और गरुड़ज्ञानचंद दोनों एक ही व्यक्ति के नाम हैं. दरसल ज्ञानचंद से गरुड़ज्ञानचंद होने की एक कहानी है.

1374 में जब ज्ञानचंद ने गद्दी संभाली तो उस समय तराई का हिस्सा रोहिलखण्ड के नवाबों के पास था. ज्ञानचंद ने दिल्ली के बादशाह को चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने दिल्ली के बादशाह से कहा कि

तराई-भावर सालों से कुमाऊं राज्य का हिस्सा रहा है. यहां पहले कत्यूरों का शासन था इसलिए अब यह चंद राजाओं के अधिकार क्षेत्र में होना चाहिये.

दिल्ली में इन दिनों बादशाह के पद के लिये लड़ाई चल रही थी जिसमें पकड़ फिरोजशाह तुगलक के बेटे महमूद तुगलक की अधिक थी. राजा ज्ञान चंद महमूद तुगलक से मिलने स्वयं दिल्ली चले गये.

जब राजा ज्ञानचंद दिल्ली पहुंचे तो पता चला बादशाह तो शिकार पर गये हैं. ज्ञानचंद भी वहीँ चले गये जहां बादशाह शिकार खेलने गये थे. यहां उन्होंने तीर-कमान से उड़ते हुये एक गरुड़ को मर गिराया यह गरुड़ एक सांप को मुंह में पकड़ कर ले जा रहा था.

बादशाह महमूद तुगलक ज्ञानचंद के कौशल से बड़ा प्रभावित हुआ उसने तुरंत एक फरमान जारी कर तराई भावर की भूमि पर कुमाऊं के राजाओं का अधिकार घोषित किया. इसके साथ ही बादशाह महमूद तुगलक ने राजा ज्ञानचंद को गरुड़ की उपाधि दी और तभी से राजा ज्ञानचंद कहलाये गरुड़ज्ञान चंद.

ज्ञानचंद लगभग 45 सालों तक शासन करते रहे. यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि बद्रीदत्त पांडे ने अपनी पुस्तक कुमाऊं का इतिहास में उक्त बादशाह का नाम महम्मद तुगलक लिखा गई. तुगलक वंश में इस नाम का कोई भी शासक नहीं हुआ था. इसके आधार पर कुछ किताबों में ज्ञान चंद को गरुड़ की उपाधि देने वाला शासक मुहम्मद बिन तुगलक लिखा है जो कि गलत है क्योंकि मुहम्मद बिन तुगलक और राजा ज्ञानचंद का कालखंड ही नहीं मिलता है.

दूसरा तराई को कुमाऊं में शामिल करने की घटना 1410 से 1412 के बीच की है. इस समय दिल्ली का बादशाह तुगलक वंश का अंतिम शासक और फिरोजशाह तुगलक का बेटा महम्मूद तुगलक था.

नोट : राजा उद्योतचंद के पुत्र ज्ञानचंद अलग हैं.

– काफल ट्री डेस्क

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