लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रकाश किसी तरह अपने गाँव पहुँच गया. पिछले 5 सालों से वो दिल्ली में नौकरी कर रहा था. समय पर उसके घर पहुचने पर उसकी पत्नी और बच्चे खुश थे.
(Prkashda Story by Jyoti Bhatt)
26 वर्ष का प्रकाश दिल्ली में किसी ढाबे में बर्तन धोने का काम किया करता था. मगर बर्तन धोने कोई इतनी दूर भला क्यों जाएगा? तो उसने गाँव वालों को ये बताया था कि वो किसी 3 सितारा होटल का कुक है, बेहतरीन खाना बनाना जानता है. हालांकि समय के अभाव के कारण उसकी इस कला का कभी टेस्ट नही हो पाया था. लॉकडाउन की वजह से उसके जैसे कुछ और तथाकथित कुक भी अपने घर पहुँच चुके थे.
अब दिन में भात खाने के बाद ये सभी किसी एक के वहाँ जमा होते और बरसों से दबाई हुई गप्प मारने की मानवीय कला का बेहतरीन प्रदर्शन करते. कोई कहता – एक बार मुझे फलां पकवान बनाने पर ढिमकाने ने नगद 2 हज़ार रुपये इनाम में दिए तो दूसरा खुद को उससे बेहतर साबित करने के लिए कहता – ये तो कुछ भी नहीं है, एक बार एक सेठ ने मेरे बनाये हुए खाने से खुश होकर मुझे उसी समय अपने हाथ से घड़ी खोलकर दे दी. क्या ग़ज़ब घड़ी थी. 10 हज़ार से कम की तो क्या रही होगी. वो तो आते समय मेरा समान खो गया वरना दिखाता तुम लोगों को. एक से एक सामान ठैरा.
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वैसे ये इनकी खासियत है कि जिस बैग में तमाम अच्छा समान और कीमती चीजें होती हैं वो अक्सर रास्ते में ही गुम हो जाया करता है. 5 सालों से वह चीकट मैला बैग जो घर आते समय हमेशा इनके साथ होता था, वह कभी चोरी नहीं हुआ. खैर मैला बैग चुरा कर चोर करता भी क्या?
प्रकाश के मां-बाप तो अब इस दुनिया में थे नहीं घरवाली हेमा और तीन बच्चे हैं परिवार में. खेती-बाड़ी ज्यादा नहीं थी लेकिन गाय. भैंस और बकरी पाले थे. हेमा सुबह से शाम तक घर के कामों में डूबी रहती बिल्कुल पतली सी थी वह. जब वह अपने सिर में कोई भारी सामान उठा कर ले जाती तो लगता जैसे उसकी कमर लचक जाएगी. उसके रूखे फटे हाथ ऐसे लगते थे जैसे वह कभी मुलायम रहे ही न हो, पैर की एड़ियों में पड़ी आब में जो मैला भर गया था उसको देखकर पैरों के प्राकृतिक स्वरूप की कल्पना करना भी मुश्किल है.
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सुबह से शाम तक करीब 16-17 घंटे हेमा घर और बण के कामों में डूबी रहती. सुबह उठकर गाय भैंस का दूध निकालना, गोबर साफ करना, झाड़ू लगाना, अंदर लीपना, नाश्ता बनाना, ग्वाला जाना, बच्चों को नहलाना, दोपहर का खाना बनाना, बर्तनों का ढेर धोना, कपड़े धोना, लकड़ी लाना, चाय बनाना और फिर से खाना बनाना, बर्तन धोना. हेमा को खुद के लिए और बच्चों के लिए भी समय नहीं होता था. प्रकाश के घर आने से हेमा को लगा कि अब तो महीने-दो-महीने की छुट्टी है तो प्रकाश घर के कामों में मदद कर देगा. उसने प्रकाश से कहा – सुनो आज तुम ग्वाला जाओ, तुम्हारे आने तक मैं दाल भात बना कर तैयार रखूंगी, बच्चों को भी नहलाना है, कपड़ों के ढेर धोने हैं, तुम जाओ मैं घर का काम निपटाती हूं.”
“पता है क्या बोल रही है” प्रकाश ने तुनकते हुए कहा.
“क्यों ऐसा भी क्या कह दिया मैंने” हेमा ने चौंक कर कहा. “औरत है, औरत की तरह रह. तू मुझे हुकम देगी कि मुझे क्या करना है. माना कि आजकल घर में हूं इसका मतलब यह नहीं की तू ग्वाला बना दे मुझे. साल्ला घर बैठकर इन लोगों की कचकच सुनो.” इतना कहकर वो अपनी मित्र मंडली के साथ में ईरान-तूरान की गप्पें मारने चला गया.
(Prkashda Story by Jyoti Bhatt)
हेमा को इस बात से ज्यादा कोई आश्चर्य नहीं हुआ. इतने सालों से अपने पति को इतना तो जानती ही थी वह. जब कोई व्यक्ति दूर हो तो, कुछ महसूस नहीं होता लेकिन जब वह पास हो तो उम्मीदें अपने आप ही जग जाती हैं. तब व्यक्तियों के अनुपात में काम भी ज्यादा लगने लगता है. हेमा जानवरों को चराने चली गई. तब तक प्रकाश कतिपय मित्रों के साथ मंडली जमा चुका था.
रोजाना की तरह आज भी एक से बढ़कर एक अविश्वसनीय गप्पे जारी थी, हालांकि सब एक दूसरे की सच्चाई से अच्छी तरह वाकिफ थे. लेकिन गप्पे मारना भी एक कला है जिसमें इन लोगों को बैकुंठ का सुख प्राप्त होता है. “प्रकाश दा, यार तुम इतना अच्छा खाना बनाने वाले ठैरे बल, कभी हमको भी कुछ खिला देते” प्रकाश का पड़ोसी बोला.
हां यार बेटा. यह कोरोना साले की वजह से शादी ब्याह, बाजार-हजार सब चौपट हो गए हैं. बहुत दिन से कुछ चटपट नहीं खाया, कुछ बनाओ यार. इतने में मल बखई के किशनू का भी बोल पड़े. यह बातें सुनकर प्रकाश की हवाइयां उड़ने लगी. बात संभालने के लिए बोला – हां-हां चचा कौन सी बड़ी बात है, बना दूंगा. तुम लोगों को भी तो कुछ अच्छा खाने का मौका मिले. कब तक यह भात ओस्या के पेट भरोगे. लेकिन अब बाजार तो बंद ठैरी. सामान कहां से आएगा?
उसकी इस बात पर फिर किशनूका बोले – अरे तो ये दाल, नून, तेल, मीट की दुकान तो खुली है बल. सरकार कह री, जो खाना है खाओ, बस घर में बैठे रहो.” इस बात पर सब जोर से ठहाके लगाने लगे. अब प्रकाश बेचारा मरता क्या न करता. 3 स्टार होटल का शेफ़ जो ठैरा. “हां देखते हैं” कहकर खिसियानी हंसी हंस दिया.
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अब बनाया क्या जाए इस पर विचार-विमर्श होने लगा. काफी सोच-विचार और भरपूर स्वादपूर्ण डिस्कशन के बाद चिकन बिरयानी बनाने पर सब लोग सहमत हुए. एक आदमी कल सुबह जाकर आवश्यक सामग्री ले आएगा और जो भी खाने का इच्छुक हो समान के लिए पैसे में अपनी हिस्सेदारी दे देगा. इस प्रकार कल के विशेष भोज के लिए चंदा भी जमा होने लगा. इधर प्रकाश का गला सूखा जा रहा था. सोचने लगा – अनम खाया न जनम ये चिकन बिरयानी, बनाना तो दूर की बात. और बनाना भी 20-22 लोगों के लिए है. इससे अच्छा तो ग्वाला चला जाता, कम से कम इस मुसीबत से तो बचता. अगर मना करता हूँ तो सालों तक गाँव मे मेरे फसक मारने के टैलेंट की शौर्य गाथाएँ गाती जाती रहेगी.
ठीक है फिर कल का प्लान रहा, मिलते हैं कहकर सभा सम्पन्न हुई. घर आकर प्रकाश हैरान परेशान. चिकन बिरयानी बनाना इतना आसान भी नहीं था. वो यूट्यूब पर उसको बनाने की विधि देखने लगा. दो-चार वीडियो देख कर वो और भी घबरा गया.
तब तक हेमा ग्वाला जाकर घर आ गई. आते ही वह दाल भात बनाने में लग गई. बच्चे थोड़ी-थोड़ी देर में खाना मांगने लगते. प्रकाश भी जाकर रसोई में उसके पास बैठ गया और उसे पूरा किस्सा बता दिया. यह बात सुनकर हेमा को हंसी आ गई और बोली – ठीक है फिर बनाओ चिकन बिरयानी. इसी वजह से मैं भी तुम्हारे हाथ का कुछ खा लूंगी. उसके स्वर में एक तंज था.
प्रकाश बोला – अब तुझे तो सब पता ही है, मैं क्या हूं. कहां मैं होटलों के बर्तन धोने वाला, कहां से बनाऊं चिकन बिरयानी. बनाना तो छोड़ मैंने तो कभी इसे देखा तक नहीं. अभी दो-चार वीडियो देखे. इसे बनाना तो मेरे बस की बात नहीं है. तू ही अब कुछ कर, तेरे पति की हंसाई हो तो तुझे अच्छा लगेगा?”
इस प्रकार इमोशन बातों से उसने हेमा को मना लिया. हेमा बोली – अरे, तो मना कर दो की मुझसे नहीं बनेगा. प्रकाश बोला – मना कैसे करूं, इतने दिनों से गप्पे मार कर जो इज्जत कमाई है वह सब खत्म हो जाएगी. सब ताना मारेंगे.
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चलो जो भी होगा देखा जाएगा, कोई रास्ता निकालते हैं. अभी तो खाना खा लो और बच्चों को भी बुला लाओ बेचारे भूखे हैं. यह कहकर हेमा थालियों में भात परोसने लगी.
अगले दिन आवश्यक सामान सामग्री आ चुकी थी. सभी लोग जिनके दान से सामग्री आई वह भी आ चुके थे. लेकिन प्रकाश आज आया नहीं. थोड़ी देर इंतजार करने के बाद फिर वह लोग उस सामग्री के साथ ही प्रकाश के घर की ओर चल दिए. बाहर से आवाज लगाई तो अंदर से हेमा बाहर आई.
अरे आओ-आओ. वह कल रात से ही इनको बुखार और खांसी की शिकायत हो रही है तो डर के मारे हमने हेल्पलाइन में कॉल किया. कोरोना जांच के लिए मेडिकल टीम अब कभी भी पहुंचती होगी. वैसे तो कोरोना इनको कहां हुआ होगा, फिर भी अपनी तसल्ली हो जाएगी.
किशनूका बोले – तो जल्दी अस्पताल ले जाए इसे, ऐसे तो सारे गांव पर ही आफत आ जाएगी.
हेमा बोली – अस्पताल भी काहे में ले जाऊं, न गाड़ी चल रही है न कुछ. वैसे तो कुछ नहीं हुआ है इन्हें फिर भी मेडिकल टीम वाले फोन में कह रहे थे की अगर जांच में कुछ नहीं आया, तब भी 14-15 दिन घर में ही अलग से रहना पड़ेगा. अस्पताल में भी कौन खाना दे, कौन क्या करे. व्यवस्था नहीं है बल.
स्थिति को देखते हुए गांव के लोगों ने अपनी जान बचाने में ही भलाई समझी और वह सभी अपने-अपने घरों को चले गए. प्रकाश के घर के आस-पास भी न जाने का निर्णय लिया गया. अंदर से प्रकाश यह सब बातें सुन रहा था. हेमा के अंदर पहुंचते ही बोला – आज कोरोना ने बचा लिया यार. और दोनों जोर-जोर से हंसने लगे.
(Prkashda Story by Jyoti Bhatt)
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अल्मोड़ा की रहने वाली ज्योति भट्ट विधि से स्नातक हैं. ज्योति फिलहाल आकाशवाणी अल्मोड़ा में कार्यरत हैं.
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Amazing story ??
एक सच्चायी , सम्बन्ध ओर समाज की स्थिति का बहुत ही बेहतरीन रचना ?? ऐसे ही कहानिया प्रस्तुत करते रहियेगा ????
मजेदार कहानी
👍👍😂😂👍👍