कला साहित्य

‘प्रेमचंद घर में’ – पुण्यतिथि विशेष

आज प्रेमचंद पुण्यतिथि के अवसर पर पढ़िये ‘प्रेमचंद घर ‘ में का एक अंश :

मैं गाती थी, वह रोते थे

शिवरानी देवी

बंबई में एक रात बुखार चढ़ा तो दूसरे दिन भी पांच बजे तक बुखार नहीं उतरा. मैं उनके पास बैठी थी. मैंने भी रात को अकेले होने की वजह से खाना नहीं खाया था. कोई छ: बजे के करीब उनका बुखार उतरा.

आप बोले- क्या तुमने भी अभी तक खाना नहीं खाया?

मैं बोली- खाना तो कल शाम से पका ही नहीं.

आप बोले- अच्छा मेरे लिए थोड़ा दूध गरम करो और थोड़ा हलवा बनाओ. मैं हलवा और दूध तैयार करके लाई. दूध तो खुद पी लिया और बोले- यह हलवा तुम खाओ. जब हम दोनो आदमी खा चुके , मैं पास में बैठी.

आप बोले- कुछ पढ़ करके सुनाओ, वह गाने की किताब उठा लो. मैंने गाने की किताब उठाई. उसमें लड़कियों की शादी का गाना था. मैं गाती थी, वह रोते थे. उसके बाद मैं तो देखती नहीं थी, पढ़ने में लगी थी, आप मुझसे बोले- बंद कर दो, बड़ा दर्दनाक गाना है. लड़कियों का जीवन भी क्या है. कहां बेचारी पैदा हों, और कहां जायेंगी, जहां अपना कोई नहीं है. देखो, यह गाने उन औरतों ने बनाए हैं जो बिल्कुल ही पढ़ी-लिखी ना थीं. आजकल कोई एक कविता लिखता है या कवि लोगों का कवि सम्मेलन होता है, तो जैसे मालूम होता है कि जमीन-आसमान एक कर देना चाहते हैं. इन गाने के बनानेवालियों का नाम भी नहीं है.

मैंने पूछा- यह बनानेवाले थे या बनानेवालियां थीं?

आप बोले- नहीं, पुरुष इतना भावुक नहीं हो सकता कि स्त्रियों के अंदर के दर्द को महसूस कर सके. यह तो स्त्रियों ही के बनाए हुए हैं.स्त्रियों का दर्द स्त्रियां ही जान सकती हैं, और उन्हीं के बनाए यह गाने हैं.

मैं बोली- इन गानों को पढ़ते समय मैं तो ना रोई और आप क्यों रो पड़े?

आप बोले- तुम इसको सरसरी निगाह से पढ़ रही हो, उसके अंदर तक तुमने समझने की कोशिश नहीं की. मेरा खयाल है कि तुमने मेरी बीमारी की वजह से दिलेर बनने कोशिश की है.

मैं बोली- कुछ नहीं, जिन स्त्रियों को आप निरीह समझते हैं, कोई उनमें निरीह नहीं है.अगर हैं निरीह, तो स्त्री-पुरुष दोनो ही हैं.दोनो परिस्थिति के हाथ के खिलौने हैं, जैसी परिस्थिति होती है, उसी तरह दोनो रहते हैं. पुरुषों के ही पास कौन उनके भाई-बंद बैठे रहते हैं, संसार में आकर सब अपनी किस्मत का खेल खेला करते हैं.

आप बोले- जब तुम यह पहलू लेती हो, तो मैं यह कहता हूं, कि दोनो एक दूसरे के माफ़िक अपने-अपने को बनाते हैं, और उसी समय सुखी होते हैं, जब एक-दूसरे के माफ़िक होते हैं. और उसी में सुख-आनंद है.

मगर हां इसके खिलाफ़ दोनो हों, तो उसमें पुरुष की अपेक्षा स्त्री अधिक निरीह हो जाती है.

प्रेमचंद और उनकी पत्नी शिवरानी देवी

यह पोस्ट कबाड़खाना से साभार लिया गया है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago