आलू-पालक, आलू-जीरा, आलू-टमाटर, आलू-मटर, दमा आलू और भी अनेकों ऐसी सब्ज़ियां हैं जो बिना आलू के अधूरी हैं. आज आलू के बगैर हम अपने किसी खाने की कल्पना नहीं कर सकते. अगर दुनिया में आलू ना होता तो शायद बहुत से लोग सब्जियां ही ना खाते. जब आलू के दाम आसमान छूते हैं तो पूरे भारत में हंगामा मच जाता है लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि आज से 500 साल पहले इसी आलू का भारत में कोई अस्तित्व ही नहीं था. इसे कोई जानता ही न था. भारत में पहली बार जहांगीर के जमाने में आलू आया था.
हम भारतीयों को आलू का स्वाद चखाने का श्रेय यूरोपीय व्यापारियों को जाता है जो भारत में आलू लेकर आए और यहां उसका प्रचार-प्रसार किया. आलू सत्रहवीं सदी की शुरुआत में पुर्तगाली मरीनों द्वारा दक्षिणी एशिया में लाया गया था. इस तरह भारत में आलू सर्व प्रथम पुर्तगालियों द्वारा सन 1615 में इंट्रोड्यूस किया गया. भारत में आलू का सबसे पहला ज्ञात संदर्भ एडवर्ड टेरी के प्रलेखों में है जो समकालीन भारत के उत्तरी क्षेत्र में 1615 से 1619 तक मुगल सम्राट जहाँगीर के दरबार में ब्रिटिश राजदूत सर थॉमस रो के साथ थे.
ए हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड में प्रलेखित किया गया है कि भारत में आलू पहले केवल यूरोपीय और फिर मुसलमानों द्वारा खाया जाता था. लेकिन डच (हालैंड वाले) लोगों ने वास्तव में आलू की संस्कृति को भारत में पेश किया और स्थानीय खपत के लिए आलू की खेती करने की विधा सिखा दी. आलू को भारत के कई भागों जैसे गोआ, महाराष्ट्र, वेस्टर्न कोस्टल क्षेत्रों में बटाटा के नाम से भी जाना जाता है. सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में भारत के पश्चिमी तट पर सर्व प्रथम पुर्तगालियों ने आलू की खेती की जिसे उन्होंने बटाटा कहा था जोकि पुर्तगाली व स्पेनिश भाषा में आलू का एक विशुद्ध नाम है.
अंग्रेजों की आलू के प्रति ऐसी दीवानगी थी कि जब भारत में उनका उपनिवेश बना तो पुर्तगाली ही उनके मुख्य आपूर्तिकर्ता थे और भारत में बसे यूरोपीय ही पुर्तगालियों के मुख्य ग्राहक थे. बाद में ब्रिटिश व्यापारियों ने आलू को एक फसल के रूप में, जो कि तब भारत में अलू कहा जाता था इसे बंगाल में पेश किया. भारत में आलू को बढ़ावा देने का श्रेय वारेन हिस्टिंग्स को जाता है जो 1772 से 1785 तक भारत के गवर्नर जनरल रहे. अठ्ठारहवीं शताब्दी तक आलू का पूरी तरह से भारत में प्रचार-प्रसार हो चुका था.
उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में भारत के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती की जाने लगी. सन 1830 के आसपास देहरादून की सीढ़ीदार ढलानों वाले खेतों पर आलू के खेत लगाए गए थे. कुमाऊं में सर रैमजे ने अपने कार्यकाल के दौरान (1840-1884) आलू के फसल की खेती आरम्भ करवाई आलू की फसल को उगाने के लिए उन्होंने कुमाऊं में कृषकों को प्रोत्साहित किया व इसकी खेती को करने का प्रसार किया.
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मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले डा. नागेश कुमार शाह वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं. डा. नागेश कुमार शाह आई.सी.ए.आर में प्रधान वैज्ञानिक के पद से सेवानिवृत्त हुये हैं. अब तक बीस से अधिक कहानियां लिख चुके डा. नागेश कुमार शाह के एक सौ पचास से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्र व लेख राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं.
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Very informative..
Thanks for sharing this with us.