Featured

खाने की तासीर बदल देती है उत्तराखंड के मसालों की छौंक

किसी भी खाने को स्वादिष्ट बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका छौंके या तड़के की होती है. छौंक पड़ने से खाने की तासीर बदल जाती है.

छौंक से खाना न के केवल स्वादिष्ट बनता है बल्कि पौष्टिक और पाचक भी बनता है. उत्तराखंड में खान-पान की विविधता के साथ इसके छौंके में भी खूब विविधता है.

उत्तराखंड में प्रचलित कुछ प्रमुख छौंके हैं – जख्या, गंदरायण, जम्बू, काली जीरी, जीरा, धनिया, लाल मिर्च, अदरक, लहसून, प्याज, मेथी, राई, चमसूर आदि.
अलग-अलग छौंकों का प्रयोग अलग-अलग भोज्य पदार्थों में किया जाता है. (स्वाद और सेहत का संगम है गहत की दाल)

जख्या का प्रयोग आलू के गुटके, पिड़ालू के गुटके, पल्यौ (कढ़ी), तोरी, कद्दू आदि की सब्जी में किया जाता है. जख्या उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक मसाला है. उत्तराखंड में सब्जियों के अतिरिक्त इसका प्रयोग मट्ठे में भी खूब किया जाता है.

गंदरायण और जम्बू भी उच्च हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली यह जड़ी बूटी भूख बड़ाने के काम भी आता है. जम्बू के छौंके का प्रयोग जम्बू का इस्तेमाल मीट, दाल, सब्जी, सूप, सलाद और अचार आदि में किया जाता है. जम्बू प्याज या लहसुन के पौधे का हमशक्ल है.

गंदरायण राजमा, झोई (कढ़ी) और गहत, अरहर व भट के डुबके (फाणु) में इसका छौंका व्यंजन की खुश्बू और जायके को कई गुना बढ़ा देता है.

कद्दू की सब्जी में सामान्यतः अजवाइन का छौंका लगाया जाता है लेकिन उत्तराखंड में कद्दू की सब्जी में छौंके मेथी के छौंके का प्रयोग किया जा रहा है. मेथी के छौंके का प्रयोग कद्दू की सब्जी के अलावा पल्यौ (कढ़ी) में भी किया जाता है.

काले जीरा का प्रयोग भी छौंके में किया जाता है. काला जीरा सामान्य रुप से जीरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है लेकिन इसका प्रयोग छौंके के रुप में उड़द की दाल और पिड़ालू की सब्जी में किया जाता है. अरहर और मसूर में काले जीरा का प्रयोग नहीं किया जाता है क्योंकि इससे दाल कड़वी हो सकती है.(कुमाऊंनी रसोई से कुछ स्वादिष्ट रहस्य)

सूखी लाल मिर्च का छौंका उत्तराखंड में लगाया जाने वाला एक सामान्य लेकिन प्रमुख छौंका है. भूनी हुई मिर्च का प्रयोग सब्जियों के उपर डालकर किया जाता है. इसे भोजन के साथ अलग से भी खाया जात है.

हींग,धनिया और जीरा के छौंके का प्रयोग उत्तराखंड में सामान्यरूप से देश के अन्य भागों की तरह ही किया जाता है.

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

View Comments

  • पहाड़ी खाने के तड़के यानी छोंक की कहानी बहुत अच्छी लगी।क्या ये जम्बू जाखिया इत्यादि ऑनलाइन मिलते है? पहाड़ी खान पान की विशेषताएं बताते रहे।

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

2 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

4 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

1 week ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago