समाज

उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों तक नहीं पहुंच पाती हैं बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं

महात्मा गांधी ने कहाँ है कि ‘असली भारत गाँवों में बसता हैं’, मगर हमारे गाँव अब बीमार हो रहे हैं. हमारा देश एक लोकतान्त्रिक और लोक कल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) है. प्रत्येक नागरिक को बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करवाना सरकार का पहला मौलिक कर्तव्य है. मगर आज़ादी के 73 वर्षों बाद भी हम एक बहुत बड़े क्षेत्र-आबादी तक आधारभूत सुविधाओं मुहैया नहीं करवा पाए हैं. अपनी सदूर ग्रामीण क्षेत्रों की यात्राओं के दौरान मैंने जाना कि अभी तक हम सभी को स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क (यातायात सुविधा) जैसी मौलिक सुविधायें भी नहीं दे पाए हैं. आखिर क्यों?
(Health facilities in rural areas Uttarakhand)

कोविड – 19 महामारी के दौरान हमारे बड़े से बड़े महान धार्मिक स्थल बंद है और गिने चुने स्वास्थ्य केंद्र की इंसानी जमात को बचाने में लगे है. इस दौर ने हमें निष्पक्ष रूप से यह सोचने को विवश किया है कि आखिर भविष्य में हमें ज्यादा आवश्यकता किसकी है.

देश में स्वास्थ्य स्थिति के सम्बन्ध में मैं अपने अनुभव साझा करना चाहता हूँ. ये अनुभव सदूर ग्रामीण क्षेत्रों के हैं –

रातिर गाँव बागेश्वर

हम बागेश्वर जनपद की सीमा तय करने वाली रामगंगा नदी के साथ – साथ आगे बढ़ रहे थे. घाटी के ऊपर, पहाड़ की चढ़ाई पर सड़क है. मगर दिन में 1 – 2 गाड़ी ही इसे शहर से जोड़ती हैं. कभी – कभी वो भी नहीं चलती. हम नदी पार होकरा देवी से आ रहे थे अतः हमारे लिए यही पैदल चलने का विकल्प था. पैदल चलते हुए, आज दुसरे दिन की शाम थी.

अब तक कई छोटे – छोटे गांवों से गुज़रे थे. पहाड़ों में पलायन का असर साफ़ नज़र रहा था. देर शाम हम रातिर गाँव तक पहुचे. एक महिला, आशा देवी ने हमारी सहायता की और रात बीताने को अपने घर में आसरा दिया. रात को खाना खाने के बाद हम सभी आपस में बातें कर रहे थे. तभी आशा देवी को एक अन्य महिला बुलाने आई. पता चला कि उनकी बच्ची को पेट में जोर का दर्द है और इलाज के लिए वो आशा देवी को बुलाने आई है.

बातचीत में पता चला कि यहाँ दूर – दूर तक कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. आशा देवी ही लोगों का देशी इलाज करती है. सुबह जब इसी मुद्दे पर आगे बात हुयी तो जो स्थिति सामने आई वो और भी कष्टमय थी. हमे पता चला कि स्वयं आशा देवी भी अनेक रोगों से ग्रसित और गंभीर चोटिल है. वहाँ एकत्र हुयी अन्य महिलाओं ने भी बताया कि जानवरों के चारे के लिए पहाड़ों पर चढ़ते, पेड़ पर लकड़ियाँ काटते, रात के अँधेरे में आते – जाते वक़्त वो कई बार गिर जाती हैं. शारीर में कई चोटे आती है और कई बार अंगुलियाँ तक टूट जाती है.

रातिर गाँव

हमने देखा कि आशा देवी सहित बहुत सी महिलायों की हाथ और पैर की अंगुलियाँ टेढ़ी – मेढ़ी थी और जगह – जगह से फूली हुयी भी. ऐसा टूटी अँगुलियों के ठीक से न जुड़ पाने के कारण हुआ है. पैरों में पंजे से घुटने तक चोट के कई निशान थे.
(Health facilities in rural areas Uttarakhand)

यहाँ आस – पास कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है और जनपद मुख्यालय जाकर इलाज करवाने के पैसे भी नहीं है. अतः ये लोग टूटी अँगुलियों पर पुरानी साड़ी के कपडे कस कर बांध लेती है और फिर पहाड़ों पर निकल जाती हैं.

उन्होंने बताया कि यूँ तो आदत हो गयी है मगर रात में जब कभी बहुत दुखता है तो कहराने के सिवा कोई और विकल्प नहीं होता. यहाँ से चलते वक़्त हमने गर्म पट्टी, कुछ पैन किलर और एक सोलर टोर्च उन्हें दिया ताकि कुछ दिन ही सही मगर इस दर्द का थोडा निवारण हो सके. ऐसे क्षेत्रों में दवाओं का मूल्य, पैसो से कही अधिक होता है. (आशा देवी, बदला हुआ नाम है)

रातिर गाँव के लोग

नामिक गाँव पिथोरागढ़

हम नामिक गाँव में ठहरे थे. नदी पार इस घाटी में पिथौरागढ़ जनपद का यह आखरी गाँव है. नामिक गाँव नामिक ग्लेशियर के कारण प्रसिद्ध है मगर यहाँ सड़क नहीं, बिजली नहीं, कोई दूर संचार सेवा नहीं और सबसे जरुरी कोई स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं. विद्यालय है, इसमें बच्चों के साथ कुछ काम करने के सिलसिले में हम 2 – 3 दिन यही एक मास्टर जी के घर में रुके थे.

जिस छोटी सी दुकान से जरुरी सामान लेते थे, एक रोज वो बंद थी. पता चला कि दुकानदार के बच्चे की तबियत ज्यादा ही ख़राब है. बच्चे का हाल लेने हम भी उनके घर पहुचे. हमें देखकर दुकानदार थोडा उत्साहित हुआ. परदेशी होने के कारण उन्हें मुझसे मदद की कुछ उम्मीद थी. घर के एक कोने में उनका लड़का कई सारे कपडे ओढ़े ओंधे मुह पड़ा था. आस – पास गाँव के ही 10 – 12 पुरुष और महिलाएं बैठी थी. यहाँ इलाज की कोई व्यवस्था नहीं थी मगर संवेदना देने के लिए आस – पास के लोग थे. शायद यही वो कर सकते थे.
(Health facilities in rural areas Uttarakhand)

हम अंदर गए तो लड़के की माँ और अन्य लोग हमें आश भरी नज़रों से देखने लगे. उस वक़्त न चाहते हुए भी हम उनकी नज़रों में किसी डॉक्टर से कम नहीं थे. मैंने अपने बेहद अल्प चिकित्सीय ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए जब लड़के को जांचा तो बस इतना समझ आया कि उसे बहुत तेज बुखार है.

यहाँ से सबसे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र जाने के लिए पहले 4 लोगों को पलग सहित उस लड़के को लेकर पहाड़ से नीचे गहरी खाई में उतना पड़ेगा. पुल से नदी पार कर फिर पहाड़ चढ़ना पड़ेगा. नदी पार अगले गाँव तक पैदल जाने के बाद अगर किस्मत अच्छी हुयी तो कोई गाड़ी मिल जाएगी अन्यथा अगले दिन तक इंतज़ार करना होगा. गाडी से  5 – 6 घंटे का सफ़र करने के बाद वो किसी नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र तक पहुच पायेगे. ऐसे हालत में ये करना लगभग असंभव सा था.

हम बिना बीमारी को जाने दवा नहीं देना चाहते थे क्योंकि इससे समस्या और गंभीर भी हो सकती थी. फिर इस सदूर क्षेत्र में किसी तरह के साइड इफ़ेक्ट का कोई समाधान मिल पाना भी मुश्किल होता. मगर स्थिति ऐसी बनी की हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा. वहा उपस्थित लोगों की उम्मीदे सिर्फ हमसे ही थी. लड़के के पिता को सारी संभावनाएं बताने के बाद उनकी सहमती पर हमने अपने मेडिकल किट से बुखार की कुछ दवाइयां उन्हें प्रदान की.

अगले दिन हमें भी लौटना था. रात भर यही डर रहा कि कोई अनर्थ न हो जाये. वापस निकलने से पहले हम उस लड़के का हाल जानने दुबारा उनके घर पहुचे. अब तबियत कुछ ठीक जान पड़ रही थी. हमें भी मदद की एक संतुष्टि थी.
(Health facilities in rural areas Uttarakhand)

नामिक गाँव के लोग

अन्य गांवों के भी ऐसे अनेक अनुभव हमारे पास है. आपके पास भी होंगे. स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों में कितने ही लोगों की अकाल मौत हो जाती है. साथ ही साथ मौजूदा स्वास्थ्य केन्द्रों में निम्न गुणवत्तापूर्ण व्यवस्था के कारण भी लोगो को सही इलाज नहीं मिल पाता और मौते होती रहती है.

इसका भयावह सच यह भी है कि विश्व के प्रख्यात मेडिकल जर्नल लांसेट (The Lancet, 2018) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 16 लाख लोगों की मौत सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं की निम्न गुणवत्ता के कारण ही होती है. मतलब रोज 4,300 मौतें होती है. यह आकड़ा स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पाने से होने वाली मौतों (8,38,000) से दुगुनी भर है.

आश्चर्य है कि स्वास्थ्य सेवा न मिल पाने के कारण जितने लोग मरते है उससे ज्यादा मौते निम्न स्वास्थ्य सेवाए मिलने से होती हैं. इन 16 लाख मौतों का कारण गंदे हॉस्पिटल, असंवेदनशील व अकुशल चिकित्सा कर्मी, डॉक्टरों की कमी, उपयुक्त इलाज व जाँच सुविधा न मिलना आदि है. सिर्फ मौसमी बुखार से ही गांवों – शहरों में हर साल हजारों बच्चों की मौत हो जाती है. वास्तव में हम यह भूल बैठे है कि यह सब संख्याएँ आकड़ें बनने से पहले इंसान भी हुआ करते थे.

केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत आगामी बजट 2020 – 21 में स्वास्थ्य सेवाओं पर कुल 67,484 करोड़ खर्च किये जाएंगे जबकि सैन्य – सुरक्षा पर इससे 5 गुना अधिक 3,23,053 करोड़. ऐसे तो निम्न स्वास्थ्य सेवाओं में कोई सुधार नहीं होगा.
(Health facilities in rural areas Uttarakhand)

हमें जल्द ही अपनी प्राथमिकता तय करनी होगी कि हमें राफेल चाहिए या वेंटिलेटर. शायद चाँद और मंगल पर जाना, मंदिर – मस्जिद और मूर्तियाँ बनाना, राजनैतिक सभाओं पर लाखों खर्चना आदि भी आवश्यक हो सकता है मगर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा और उचित सार्वजनिक यातायात उपलब्ध होने के बाद.

ये सब प्राप्त करना हमारा अधिकार है और एक लोकतांत्रिक, लोक-कल्याणकारी सरकार का कर्तव्य.

जीतेन्द्र ‘जीत’,

लेखक, शिक्षा-शिक्षण से जुड़े हैं तथा भ्रमण, अध्ययन और लेखन में गहरी रुचि रखते हैं. राजस्थान और उत्तराखंड में विभिन्न शैक्षणिक कार्यों एवं शिक्षक – प्रशिक्षण कार्यक्रमों से संबद्ध हैं.

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स्रोत –

https://www.deccanherald.com/opinion/panorama/4300-indians-die-daily-due-692128.html

https://www.business-standard.com/article/current-affairs/more-indians-die-of-treatable-diseases-than-lack-of-access-to-healthcare-118090600102_1.html

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Girish Lohani

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  • अत्यंत कष्टपूर्ण जीवन हैं पहाड़ में। ना शिक्षा हैं और ना स्वास्थ्य और ना रोजगार। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण हर चीज़ पहुँच से दूर हैं क्षेत्रीय शिक्षित युवाओं को पैरा मेडीकल की शिक्षा देकर नियुक्त करना चाहिए।

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