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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक – मिर्ज़ा ग़ालिब के बारह महान शेर

उर्दू से सबसे सफल शायर

सब मानते हैं कि उर्दू एक बेहद मीठी ज़बान है. इस भाषा में लिखी गयी कविता भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे लोकप्रिय काव्य विधा मानी जा सकती है. पीढ़ियों से लोग देश, काल और परिस्थिति के हिसाब से अपनी बातचीत में शेर और शायरी को जगह देते आये हैं. उर्दू के सबसे बड़े कवियों में शुमार होने वाले ग़ालिब (Mirza Ghalib) हो सकता है अपनी भाषा के निर्विवाद महानतम शायर न हों लेकिन एक बात सच है कि वे सबसे सफल उर्दू शायर तो हैं ही. Mirza Ghalib

जीवन, मृत्यु, प्रेम, विरह, पीड़ा जैसी शाश्वत विषयवस्तुओं पर लिखे उनके लाजवाब शेर उनके चले जाने के इतने वर्षों बाद भी दुनिया की ज़बान पर चढ़े रहते हैं और उनकी प्रासंगिकता आज तक बनी हुई है. साहित्य के अध्येता उन पर नए नए शोध करते हैं, एक से एक गवैये उनकी ग़ज़लों को गाते हैं और दुनिया जहान के फ़कीर और माशूक अपनी भावनाओं का प्रतिविम्ब उनकी कविता में पाते हैं.

ग़ालिब के शेर

ग़ालिब 27 दिसंबर 1797 को जन्मे थे जबकि 15 फरवरी 1869 को दिल्ली में उनका इंतकाल हुआ.

मिर्ज़ा ग़ालिब के दर्ज़न भर बेहतरीन शेर नोश फरमाइए:

1.
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और

(सुख़नवर=शायर)

2.
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था

3.
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

4.
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

5.
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन

6.
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

(विसाल-ए-यार= माशूक का दर्शन)

7.
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है

8.
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

9.
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले

(बाद-ए-क़त्ल= हत्या के बाद, ख़ल्क़= लोगबाग)

10.
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती

11.
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे

(माशूक़-फ़रेबी= प्रेमी/प्रेमिका को धोखा देना, मिरा=मेरा)

12.
जी ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किये हुए 

(तसव्वुर: कल्पना)

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