समाज

13 दिनों से किताबों और शिक्षकों के लिये आन्दोलन कर रहे हैं पिथौरागढ़ के युवा

भारत और नेपाल की सीमा पर एक छोटा सा जिला है पिथौरागढ़. इस जिले की सीमा नेपाल और चीन दोनों से लगती है. इस जिले के मुख्यालय में सत्तर के दशक में बना एक डिग्री कालेज है जिससे पास होकर न जाने कितने सफल बच्चे आज देश-विदेश के प्रतिष्ठित संस्थानों में नौकरी कर रहे हैं लेकिन आज इसी कालेज के बच्चे किताबों और शिक्षकों के अपने अधिकार के लिये लड़ने को विवश बना दिये गये हैं.

एक तरफ़ जहां आये दिन पूरे देश से युवाओं के कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर लड़ने-भिड़ने की खबर पढ़ने मिलती हैं वहीं पिथौरागढ़ के युवा किताबों और शिक्षकों के लिये आन्दोलन कर रहे हैं.

पिथौरागढ़ महाविद्यालय की लाइब्रेरी में सत्तर के दशक की किताबों से आज भी विज्ञान जैसे विषय पढ़े जा रहे हैं. पिथौरागढ़ कालेज के छात्र पिछले तेरह दिनों से किताबों की मांग को लेकर कालेज परिसर में प्रदर्शन कर रहे हैं.

कालेज परिसर में प्रदर्शन कर रहे छात्रों का कहना है कि पिथौरागढ़ महाविद्यालय में पर्याप्त शिक्षकों की नियुक्ति और पुस्तकों की आपूर्ति की मांग हेतु कुलपति, कुमाऊं विश्विद्यालय को प्रेषित ज्ञापन पर एक बार फिर कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई.

पिथौरागढ़ शहर के सभी सम्मानित नागरिकों ने इन छात्रों की मांग का समर्थन किया है. तेरह दिन के इस प्रदर्शन के बाद भी प्रशासन की ओर से छात्रों की मांग पर कोई सकारात्मक रुख नहीं अपनाया है.

पिथौरागढ़ में यह मांग पिछले डेढ़ साल से की जा रही है. इस वर्ष सत्रह जून से कालेज परिसर में छात्रों द्वारा अपनी मांगों को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया जा रहा है.

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के कालेजों में शिक्षकों और किताबों की हमेशा से कमी रही है. जब एक जिले के मुख्यालय में स्थित कालेज के यह हाल है कि वहां सत्तर के दशक से चली आ रही किताबें पढ़ाई जा रही हैं तो अनुमान लगाया जा सकता है अन्य कालेजों का क्या हाल होगा.

पिथौरागढ़ में किताबों के लिए आन्दोलन कर रहे छात्रों की कुछ तस्वीरें देखिये. सभी तस्वीरें मुकेश हौशिया की फेसबुक वाल से ली गयी हैं. मुकेश सिटी पिथौरागढ़ वेबसाइट में कन्टेन्ट राइटर हैं.

वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago