नेपाल के मजदूर सालों से पिथौरागढ़ के लोगों का बोझा ढो रहे हैं. मजदूरी करने वाला नेपाल का प्रवासी पिथौरागढ़ में अपने से बड़ी महिलाओं को ‘ओ दिदी’ कहता है और अपने से छोटी को ‘ओ बैनि’. ऐसे ही अपने से बड़े पुरुषों को ‘ओ स्याप’, ‘हुजूर’, ‘दाज्यू’ और छोटों को ‘भाया’ कहता है उनके संबोधन में ही अपनेपन की माया है. Hardworking Nepali Laborer
नेपाल के ढेर सारे मजदूर पिथौरागढ़ आकर मजदूरी करते हैं. न जाने कितने कम उम्र में घर से भागकर यहां आते हैं आँखों में सपना लिये की पैसा कमाकर घर लौटेंगे. कम उम्र में आने वाले लगातार पांच से छः साल बाद ही घर जाते हैं. कुछ वापस पिथौरागढ़ लौटते हैं कुछ नहीं.
पैसा कमाने के जिस सपने के लिये अपना घर छोड़कर आने वाले मजदूरों की ध्याड़ी क्या होती होगी, इस बात का अंदाजा इससे होता है कि पिथौरागढ़ जैसी छोटी सी बसासत में कई घरों के निजी नेपाली मजदूर हुआ करते थे. बाजार से राशन लाना हो, सिलेन्डर लाना हो, खेत में गोबर सारना हो सब इनके हिस्से हुआ करता था. Hardworking Nepali Laborer
हमारे घर में काम करने वाले नेपाली मजदूर का नाम खड़क सिंह था. घर के बड़े उसे खड़कू कहते थे बच्चों के लिये वह खड़कू दा था. सालों तक घंटाकरण के किसी पुराने घर में रहने वाले खड़क सिंह से हम में कभी किसी ने पूछने की जहमत नहीं समझी कि उसके दोनों हाथों की उंगलियां उसकी हथेली से चिपक कैसे गयी हैं. पिथौरागढ़ में जब कंक्रीट का जंगल बसना शुरु हुआ तो सीमेंट के कट्टे सारने और नंगे हाथों से घंटों गारा बनाने से बहुत से नेपाली मजदूरों के इस तरह हाथ खराब हुए थे.
पीठ में बोरा और कंधे में रस्सी डालकर चलने वाले नेपाल के मजदूरों का घर जाना साल में एक बार ही हो पाता है. शुरुआत में पिथौरागढ़ के उड्यारों को इन्होंने अपने रहने की जगह बनाई अब पुराने घरों के एक-एक कमरे में सात आठ लोग रहते हैं. बड़े लालाओं के आहते या उनकी दुकानों के सामने की छोटी-छोटी चौखटें आज भी बहुतों के सोने का ठिकाना हैं. अंधेरे बंद कमरों में एक पराद में भात और उसके ऊपर बुराया सफेद नमक डालकर खाने वाले दुनिया के ये सबसे मेहनती मजदूर हैं. Hardworking Nepali Laborer
कल वाट्सएप्प पर पिथौरागढ़ के किसी क्वारंटाइन सेंटर का वीडियो आया था. बहुत से नेपाल के प्रवासी एक सरकारी स्कूल में हिमचूली मा गीत बड़े मनोयोग से सुन रहे थे. हर किसी के चहरे में हिमालय का भोलापन और आँखों में अपनों की याद से आई नमीं साफ नज़र आ रही थी.
गोरी और काली के बीच बसे जौलजीबी के मेले में सालों से मंच से यह गाना सुनते आ रहे हैं. मंच से गाने वाले के सुर भले उन्नीस-बीस हो जायें सामने बैठी हज़ारों की भीड़ उसे मांफ करती है और खोयी रखती है
हिमचूली मा घाम लाग्यो घामिलो
आफने गांव आफने ठाओ लगछा नि रामाइलो
मन की रानी एल्बम का यह गीत नेपाल के सबसे लोकप्रिय गीतों में है. जिसका अर्थ है
चोटियों पर गिरी बर्फ पर सूरज चमक रहा है
अपना गांव, अपनी जगह अच्छी लगती है.
इस कस्बे के हज़ारों मकानों की नींव का पहला पत्थर रखने वाली इस मेहनती कौम के लिये लिखा गया कुछ भी कम है.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…