पहाड़ में पूर्णिमा का खूब महत्त्व है फिर इसे धर्म की आस्था से जोड़कर देखा जाय या लोकजीवन से. चांद की रौशनी कुमाऊनी में ज्यून कहलाती है और चांदनी रात ज्यूनाली रात. ढ़ेरों लोकगीत हैं जिसमें ज्यूनाली रात का जिक्र है.
(Photos of full moon in the mountain)
पहाड़ में पूर्णिमा की रात उत्सव की रात है. अक्सर पूर्णिमा की रात पहाड़ के लोग हुड़के की थाप पर कदम मिलाते अपने गीत गाते नजर आते हैं. पहाड़ में जीवन एक संघर्ष है और पूर्णिमा की रात आगे के संघर्ष के लिये फिर से उर्जा भरने वाली रात है. ऊंचे शिखरों में गाये जाने वाले हल्की धुनों के उनके गीत ज्यूनाली रात को दुनिया की सबसे खूबसूरत रात में बदल देते हैं.
(Photos of full moon in the mountain)
देवताओं, अपने पुरखों, दूर परदेश में रह रहे अपने बंधु-बांधवों आदि को समर्पित उनके ये गीत चांद में भी चार चांद लगा देते हैं. पहाड़ में पूर्णिमा का चांद छोटे बच्चे के चेहरे सा मुस्कुराता नज़र आता है शांत और निश्चल. वह रात भर यूं ही चलता रहता है जैसे वह पहाड़ में रहने वालों का सारा संघर्ष जानता है.
चांद, पहाड़ के लोगों का संघर्ष समझता होगा तभी तो पहाड़ के किसी न किसी हिस्से से झांकता हुआ उन्हीं के पीछे डूबता है. रवि वल्दिया के कैमरे से देखिये पिथौरागढ़ में पूर्णिमा की एक रात में ढलते हुये चांद की कुछ तस्वीरें :
(Photos of full moon in the mountain)
पेशे से फोटोग्राफर रवि वल्दिया पिथौरागढ़ के रहने वाले हैं. रवि के कैमरे का कमाल उनके फेसबुक पेज Ravi Valdiya Photography पर भी देखा जा सकता है.
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रवि वल्दिया की फोटो अंतर्राष्टीय गुणवत्ता का स्तर रखती है . समाज में दर्शकों को उनके काम पर गौरव है . पर सरकार को चाहिए कि हमारे बीच प्रतिभाशाली फोटोग्राफरों को समय पर सहायता और प्रोत्साहन मिले . कोरोना के इस संकट काल में क्या उनकी कोई सोच रहा है ?