समाज

अल्मोड़ा के नन्दा कौतिक की ताजा तस्वीरें

आज से अल्मोड़ा ने नन्दा देवी मंदिर में कौतिक शुरु हो गया है. आज विभिन्न स्कूलों के बच्चों की झांकियों के साथ मेले शुरुआत हुई. (Photos of Nanda Devi Fair in Almora 2019)

स्कूल के बच्चों की इन तस्वीरों से जाहिर है कि यूं ही अल्मोड़ा को उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी नहीं कहा जाता है. भाद्र महीने की पंचमी तिथि से मेला प्रारंभ होता है. 

विभिन्न स्कूलों के बच्चों के द्वारा आज कौतिक के पहले दिन नंदा राजजात की अलग-अलग भव्य झांकियां निकाली गयी. इन तस्वीरों दिखता है कि अभी भी पहाड़ी जिले अपनी परम्परा और संस्कृति के कितने करीब हैं .

अल्मोड़ा के नन्दा देवी मंदिर को लेकर कुमाऊनी के आदि कवि गुमानी पन्त ने एक जगह लिखा है:

विष्णु का देवाल उखाड़ा ऊपर बंगला बना खरा
महाराज का महल ढवाया बेढ़ीखाना तहां धरा
मल्ले महल उड़ाई नंदा बंगलों से भी वहां भरा
अंग्रेजों ने अल्मोड़े का नक्शा और ही और करा

अल्मोड़ा नंदादेवी के संबंध में यह माना जाता है कि सन् 1670 में चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा लाये और उसे अल्मोड़ा के मल्ला महल में स्थापित कर दिया. तब से उन्होंने मां नंदा को कुलदेवी के रूप में पूजना शुरू किया. सन् 1690 में तत्कालीन राजा उद्योत चंद ने पार्वतीश्वर और उद्योत चंद्रेश्वर नामक दो शिव मंदिर नंदादेवी मंदिर में बनाये. मल्ला महल में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को भी सन् 1815 में ब्रिटिश हुकुमत के दौरान तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर में रखवा दिया.

आज नंदादेवी कौतिक के पहले दिन की कुछ अद्भुत तस्वीरें काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी जयमित्र सिंह बिष्ट ने भेजी हैं :

फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट
फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट

जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच

मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…

2 days ago

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

6 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

6 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

1 week ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 week ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 week ago