उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी में भारत तिब्बत सीमा पर एक गांव है जादुंग. जादुंग, नेलांग घाटी में स्थित एक गांव है. नेलांग घाटी एक इनरलाइन एरिया है जो कि भारत चीन के बॉर्डर पर पड़ता है, पर्यटकों के लिए केवल दिन में जाने कि अनुमति मिलती है. नेलांग घाटी, जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर है.
1962 में भारत चीन युद्ध के पहले नेलांग घाटी का जादुंग एक आबाद गांव था. इस गांव में रहने वाली जाड़ जनजाति छः महीने यहाँ रहती. यह जनजाति इस क्षेत्र में भारत-तिब्बत व्यापार किया करती थी.
युद्ध के बाद पूरा गांव उजड़ गया. जब भारत और चीन के बीच शन्ति वार्ता हुई तो जादुंग गांव के लोगों से पूछा गया कि वे किस देश में रहना चाहते हैं?
जाड़ जनजाति कै लोगों ने भारत को चुना. इनकी आबादी को हरसिल के पास बसाया गया और फिलहाल ये सभी लोग बगोरी में रहते हैं.
इस युद्ध के बाद नेलांग घाटी पर्यटकों के लिये हमेशा के लिये बंद कर दी गयी. जिसे कुछ ही वर्षों पहले खोला गया है. जाड़ जनजाति के लोग केवल साल में केवल एक बार पूजा करने के लिये लिये जोडोंग आते हैं.
नेलांग घाटी को उत्तराखंड का लद्दाख कहा जाता है. समुद्र तट से 11,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित नेलांग घाटी में जाड़गंगा नदी बहती है. जाड़गंगा आगे चलकर भैरो घाट में भागीरथी नदी से मिल जाती है.
नेलांग जाने वाले रास्ते पर सबसे रोचक गरतांग गली है. इसका प्रयोग पुराने समय में जाड़गंगा को पार करने में किया जाता था . वर्तमान में इसका प्रयोग नहीं किया जाता है, इसके बावजूद पठारों के बीच बना यह ब्रिज आज भी पर्यटकों के लिये आकर्षण का केंद्र है.
नेलांग से आगे जादुंग, और उससे भी आगे नीलापानी पड़ते हैं. नेलांग से आगे सिविलियन को नहीं जाने दिया जाता विशेष अनुमति पर ही नेलांग से आगे जाने दिया जाता है.
उत्तराखंड का यह इलाका वृष्टि छाया क्षेत्र में आता है इसलिए यहां बारिश नहीं होती है. यह लद्दाख और स्पीति की तरह है. नीलापानी के पास का इलाका बिल्कुल स्पीति जैसा दिखता है.
नेलांग घाटी में अब सेना और आई.टी.बी.पी. के जवानों के अलावा कोई नहीं रहता.
अगस्त 2017 की हमारी इस यात्रा की कुछ तस्वीरें देखिये.
मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
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