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ग्यारह सितंबर का एक फोटोग्राफ़

ग्यारह सितम्बर का एक फ़ोटोग्राफ़

वे कूद रहे थे जलती मंजिलों से
एक
दो
कुछेक और
- कुछ ऊपर थे, कुछ नीचे

एक फोटोग्राफ़र ने उन्हें दर्ज़ कर लिया है
जब वे जीवित थे
धरती के ऊपर
धरती तक पहुँचते हुए -
हर आदमी साबुत
हर एक का अपना चेहरा

और हर एक का भली तरह छिपा हुआ रक्त
- अभी वक़्त है उनके बालों के बेतरतीब हो जाने में
अभी वक़्त है उनकी जेबों से चाबियाँ और रेजगारी निकल कर गिरने में
वे अब भी उपस्थित हैं हवा की वास्तविकता के भीतर
उन जगहों पर जहां अभी-अभी
उनके लिए जगह का निर्माण हुआ है

उनके वास्ते मैं सिर्फ़ दो काम कर सकती हूं -
उनकी उड़ान का वर्णन करूं
और अपनी ओर से न जोड़ूं कोई अन्तिम शब्द!

विस्वावा शिम्बोर्स्का
विस्वावा शिम्बोर्स्का ( 1923-2012 )

कविता की मोत्ज़ार्ट के नाम से जानी जाने वाली कवयित्री  विस्वावा शिम्बोर्स्का 2 जुलाई 1923 को पश्चिमी पोलैंड में पैदा हुई थीं. विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविताओं में एक अद्वितीय ह्यूमर भी पाया जाता है, जो उनकी कविताओं को महान बनाता है. ठोस वास्तविक चीज़ों की सतह के बस थोड़ा सा नीचे कितनी विद्रूपताएं छिपी रहती हैं, यह पहचानना उन्हें बख़ूबी आता है.  विस्वावा शिम्बोर्स्का में एक तटस्थ दार्शनिक की क्रूर निगाह है जो बहुत ही आम दिख रहे दृश्यों, अनुभवों को न सिर्फ़ बारीकी से उधेड़ती है, मानव जीवन की क्षुद्रता और महानता दोनों को एक ही आंख से देख-परख पाने का माद्दा भी रखती है. बेहद रोज़मर्रा दिखाई देने वाली चीज़ें शिम्बोर्स्का के यहां धर्म, समाज, विज्ञान और दर्शन से सम्बन्धित गहनतम बहसों के विषयों में तब्दील हो जाती हैं.

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Girish Lohani

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