उत्तराखंड के पहाड़ों में आज फूलदेई मनाई गयी.
फूलदेई वसंत के आगमन पर व्यक्त की जाने वाली प्रसन्नता का उत्सव है. यह समय शीत की सिहरन से बाहर निकल कर धूप के स्वागत और फूलों के पल्लवित होने का समय होता है.
सामूहिक प्रसन्नता के उत्सव के मौके पर घरों के छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियां समूह बना कर अलग-अलग रंगों-रूपों के फूल तोड़ थाली में सजाते हैं.
थाली में फूलों के साथ चावल भी रखे रहते हैं.
पूरी तैयारी के बाद बच्चों के समूह “फूल देई, छम्मा देई! फूल देई, छम्मा देई!” कहते हुए अपने सम्बन्धियों और पड़ोसी-परिचितों के घरों की देहरियों पर फूल और चावल बिखेर कर परिवार की समृद्धि की कामना करते हैं.
घरों की स्त्रियाँ इन बच्चों का टीका लगा कर स्वागत करती हैं और इन्हें आशीष के रूप में थोड़े से पैसे भी देती हैं.
हर घर में ऐसी अनेक टोलियाँ आती हैं.
शाम को इन बिखेरे गए चावलों को बुहार कर एकत्र किया जाता है और उन्हें पीस कर घी और चीनी के साथ भून-पका कर ‘साई’ अथवा ‘सै’ कहलाया जाने वाला प्रसाद रूपी व्यंजन पकाया जाता है.
यह सिलसिला चैत्र संक्रांति से शुरू होकर अष्टमी तक लगातार आठ दिनों तक चलता है. फूलदेई में आने वाले बच्चों का मुंह गुड़ व पकवानों से मीठा भी किया जाता है.
इस मौके पर हमारे साथी जयमित्र सिंह बिष्ट ने भेजी हैं एक सुदूर कुमाऊनी गाँव सैनार से इस त्यौहार की कुछ तस्वीरें. सैनार गाँव अल्मोड़ा से स्याहीदेवी-शीतलाखेत पैदल मार्ग पर अवस्थित है. –
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जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
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