हैडलाइन्स

बागेश्वर हादसे से सबक लेते हुए सरकार अपनी कुंभकरणी नींद तोड़े

शुक्रवार रात जैसे ही ये ख़बर मैंने सोशल मीडिया पर देखी तो एक बार के लिए मैं सन्न रह गया. ख़बर की पुष्टि करने के लिए तुंरत मैंने स्थानीय अख़बारों की वेबसाइट और न्यूज़ चैनल देखने शुरू कर किए. वहां भी ख़बर की पुष्टि हो चुकी थी. दरअसल उसी समय मेरे दिमाग में एक अनहोनी की आशंका हो रही थी लेकिन मैंने ख़ुद को काबू रखते हुए ईश्वर से प्रार्थना कि इस हिला देने वाले हादसे में किसी की जान ना जाए. लेकिन मेरा अंदेशा सही निकला और अब तक 3 लोगों के मरने की ख़बर है, जिसमें दो बच्चे हैं.

दरअसल बागेश्वर के कपकोट में बास्ती गांव में बारात का खाना खाने से 350 लोग बीमार हो गए. कहीं ये आकंड़े 250 हैं. इनमें से कई लोग गंभीर रूप से बीमार हो गए. बताया जा रहा है कि ये दुखद हादसा फूड प्वॉजनिंग से हुआ. अधिकारियों ने जांच के आदेश दे दिए हैं. कई लोगों का स्थानीय अस्पतालों में इलाज चल रहा है. इसमें बेरीनाग, कांडा, अल्मोड़ा और कुमाऊ का सबसे बड़ा हॉस्पिटल सुशीला तिवारी भी शामिल है. मृतकों की संख्या में इजाफ़ा होने की संभावना है. कई लोग गंभीर बताए जा रहे हैं.

सरकार ने मरीजों के लिए एयरलिफ्ट तक करवाया पर जो सबसे बड़ा सवाल ये है कि लगातार पहाड़ के अस्पतालों की बदहाल स्थिति पर मीडिया का एक वर्ग, सोशल मीडिया में लोग और बुद्धिजीवी चिंता लंबे समय से जताते रहे हैं. तंज के तौर पर इन्हें रेफरल सेंटर का नाम भी दिया जाता रहा है. बागेश्वर की घटना ने फिर एक बार प्रशासन और हुक्मरानों को सोचने का मौका दिया है कि इस और फोकस रखो वरना भविष्य मे़ कोई बड़ी अप्रिय घटना इंतज़ार कर रही है.

पहाड़ में अस्पतालों की हालत बहुत दयनीय है. बस बड़ी बड़ी बिल्डिंग और होर्डिग ही दिखाई देते हैं. अ़दर हालात नारकीय हैं. डॉक्टरों की कमी से ये हॉस्पिटल जूझ रहे हैं. जो हैं भी उन पर बोझ ज्यादा हैं. मशीनें कहीं है नहीं, कहीं हैं तो ऑपरेट करने वाले लोग नहीं है वो धूल खा रही हैं. अमीर तो बाहर इलाज करवा लेगा पर ग़रीब कहां जाएंगा?

यह घटना इसका साक्षात उदाहरण है. ज्यादातर लोग ग्रामीण है और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. सोचिए हालात कितने बिके हैं कि एयरलिफ्ट की नौबत आ गई. इसकी चपेट मे़ं खुद वहां के पूर्व विधायक आ गए हैं. उन्हें आनन फानन में बागेश्वर से अल्मोड़ा रेफर करना पड़़ा. उनके अलावा कुछ बीमार लोगों को हल्दवानी शिफ्ट किया गया है. इससे पता चलता है कि हॉस्पिटल पहाड़ में नाम मात्र को हैं.

जिस सुशीला तिवारी को कुमाऊं क्षेत्र का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता है. सूबे के 6 ज़िले जिसके भरोसे हैं उसकी बदहाल हालात पर भी समय समय पर रिपोर्ट छपती रहती हैं. लेकिन हमारे रहनुमा इससे सबक नहीं लेते हैं.

अब समय आ गया है कि वो इस हादसे से सबक लेते हुए सरकार अपनी कुंभकरणी नींद तोड़े. पहाड़ खासकर दुर्गम इलाकों के लिए ठोस स्वास्थ्य नीति बनाएं. डॉक्टरों की पोस्टिंग और उनके टिकने के लिए ठोस ब्लूप्रिंट तैयार करें. जब एक तरफ हम राज्य के युवा होने मतलब 18 वर्ष बनने का जश्न मना रहे हैं उसके ठीक डेढ़ महीने बाद हुआ यह हादसा बताता है कि अब तक हमारी सरकारों ने क्या काम किया है.

यह सबके कर्मों का चिट्ठा भी है. अब भी अगर ना सुधरे तो आए दिन ये खबरें आएंगी और हम संवेदना और शोक प्रकट करने के अलावा कुछ ना कर पाएंगे.

विविध विषयों पर लिखने वाले हेमराज सिंह चौहान पत्रकार हैं और अल्मोड़ा में रहते हैं.

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Girish Lohani

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