समाज

अंग्रेजों के ज़माने में पटवारी अपनी पट्टी का राजा होता था

पहाड़ में अब भी बड़े बुजुर्ग कहते हैं सबका बैर झेला जा सकता है पटवारी का बैर नहीं. अब भले पटवारी की शक्ति उतनी नहीं है फिर भी वह अपनी पट्टी में राजा से कम नहीं है. आज भी कई ऐसे मामले हैं जहां पटवारी के बिना पत्ता नहीं हिल सकता.
(Patwari Post in Uttarakhand)

कुमाऊं में 1819 में कमिश्नर ट्रेल पटवारी पद की शुरुआत की थी. इस बरस ट्रेल ने पटवारियों के 9 पद सृजित किये. यह 1830 संख्या 63 पहुंच गयी. ट्रेल द्वारा सृजित पटवारी का यह पद बहुउद्देशी था. पटवारी को लगान वसूली, गावों की पैमाइश, विवादों, लड़ाई-झगड़ों का स्थानीय स्तर पर निपटारा, विवाद बढ़ने पर कोट कचहरी, तहसीलदार को सूचना देना, गोपनीय सूचना देना जैसे कार्य करने होते थे.

ब्रिटिश शासन के लिये पटवारी का पद एक फायदे का सौदा साबित हुआ. शुरुआत में एक पटवारी की की नियुक्ति पांच रुपये मासिक तनख्वाह पर होती थी. 63 पटवारियों पर होने वाला वार्षिक खर्च 3680 था जिसके बदले इतने बड़े भू-भाग पर न केवल शान्ति स्थापित होती बल्कि शासन करना भी आसान हो गया था. अंग्रेजों को न्यूनतम खर्च पर अधिकतम लाभ हो रहा था.
(Patwari Post in Uttarakhand)

पहाड़ में पटवारियों को मैदान की तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त थे. ये एक प्रकार के सर्किल अधिकारी होते थे अंदर पटवारी के अंदर आने वाली पट्टी में अस्सी-अस्सी गाँव हुआ करते थे. मूलतः एक राजस्व अधिकारी होने के बावजूद पटवारी को एक पुलिस उपनिरीक्षक के समान अधिकार प्राप्त थे. बाद में उसका वेतन 8 से 10 रूपये कर दिया गया.

ब्रिटिश कुमाऊं में पुलिस का मुख्य काम थोकदारों और पधानों ने किया. थोकदार और पधान न केवल अपराधियों को पकड़ने का काम करते थे बल्कि उनका पहरा करने का काम भी वही करते थे. पधान अपराधियों को गिरफ्तार करते थे और अपराध की सूचना पटवारी को देते थे. पधान द्वारा अपराधों की अनदेखी करने की सूचना देने का काम थोकदार के जिम्मे था.
(Patwari Post in Uttarakhand)

सामान्यतः गांव में पटवारी महीनों में आता पटवारी के बैठने का ठिकाना पधान का आंगन ही होता. वहीं पूरे गांव वाले पटवारी को अपनी मर्जी से नजराना भी देते. ख़ास मौकों पर पटवारी के लिये बकरे की व्यवस्था भी खूब की जाती थी.
(Patwari Post in Uttarakhand)

काफल ट्री डेस्क

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  • पटवारी का बड़ा रुतवा हुआ करता था। अल्मोड़ा के जिलाधीश रहे आ०के० सिंह साहब ने एक मजेदार वाकया सुनाया कि एक दिन द्वाराहाट के किसी दूरस्थ गांव १५ कि०मी० पैदल चल कर गये। लोगों की शिकायतों का निराकरण किया। एक बुजुर्ग महिला ने जाते समय आशीर्वाद दिया कि तुम तरक्की कर जल्दी पटवारी बन जाओ भला हो तुम्हारा।

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