हिन्दू धर्मग्रंथों में परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना गया है. अक्षय तृतीय को इनकी जयंती भी मनायी जाती है. मान्यता है कि कार्तवीर्य के पुत्र द्वारा परशुराम की गैरमौजूदगी में आश्रम पर हमला कर जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया गया था तब परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रीयविहीन करने की प्रतिज्ञा की थी. उन्होंने 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन किया था.
परशुराम को शंकर भगवान से दिव्य अस्त्र प्राप्त थे. महाभारत काल में भीष्म व करण परशुराम के ही शिष्य थे, उन्हें परशुराम ने ही धनुर्विद्या का ज्ञान दिया था.
कम संख्या में ही सही परशुराम के मंदिर भी पाए जाते हैं, इन्हीं मंदिरों में से एक है उत्तरकाशी का परशुराम मंदिर. यह मंदिर मुख्य कस्बे में मौजूद भगवान दत्तात्रेय के मंदिर के ही पास स्थापित है. उत्तरकाशी में भगवान शिव
पुराणों के अनुसार परशुराम ने इस जगह पर तपस्या की थी.
यहाँ मौजूद मूर्ति पर अंकित ब्यौरे के अनुसार राजा सुदर्शन शाह के शासनकाल में मंत्री रहे धर्मदत्त द्वारा 1842 में इसका जीर्णोंद्धार कराया गया था.
स्थानीय लोग बताते हैं कि इस मंदिर के गर्भगृह में पहले भगवान विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति भी विराजमान हुआ करती थी.इसके अलावा उनकी दशावतार व नवग्रह मूर्तियाँ भी यहाँ हुआ करती थीं. संरक्षण के भव में इन मूर्तियों को चोरों, तस्करों ने गायब कर दिया.
2016 में परशुराम मंदिर तब चर्चा में आया था जब इसके दरवाजे दलितों के लिए खोल दिए गए थे. उत्तराखण्ड के जौनसार बावर क्षेत्र के दरवाजे शताब्दियों से दलितों के लिए बंद हुआ करते थे. इस क्षेत्र के दलितों द्वारा एक दशक से भी ज्यादा समय से मंदिरों में प्रवेश के लिए आन्दोलन भी चलाया जा रहा था.
2016 की शुरुआत में परशुराम मंदिर कमेटी के अध्यक्ष जवाहर सिंह ने घोषणा की कि परंपरा के नाम पर दलितों और महिलाओं को मंदिर प्रवेश से रोकना ठीक नहीं है. अतः मंदिर के द्वार दलितों व महिलाओं के लिए खोल दिए गए थे. काशी विश्वनाथ मंदिर उत्तरकाशी से मयंक आर्या की तस्वीरें
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