आब ओढ़ तै चशमः पहाड़ी बुबू की हाज़िर जवाबी

परकास दिल्ली की एक कंपनी में मैनेजर के तौर पर काम करने लगा था. परिवार चंपावत के लोहाघाट में ही रहता था और परकास पिछले कुछ सालों से अकेला दिल्ली में. ईजा-बाबू ने परकास की अकेली ज़िंदगी के पहिये में एक और पहिया जोड़ने की सोची और उसके सामने लोहाघाट के इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य रहे त्रिलोचन मास्साब की बेटी से शादी का प्रस्ताव रखा. कुछ दिन तो परकास ना नुकुर करता रहा लेकिन ईजा के बहुत समझाने के बाद शादी के लिए मान गया. परकास की बस एक शर्त थी कि बारात दिल्ली से जाएगी और वापस दिल्ली ही आएगी. सुनने में घर वालों को यह शर्त अजीब लगी लेकिन बेटे की खुशी के लिए शादी तक उन्होंने डेरा दिल्ली में ही जमा लिया. परकास दिल्ली से बारात सिर्फ इसलिए ले जाना चाहता था क्योंकि उसके कुछ शहरी दोस्त लोहाघाट शादी में आने को तैयार नहीं थे. उनका कहना था कि अगर दिल्ली से बारात नहीं गयी तो वो शादी में नहीं आएँगें. शहर जाकर आदमी अपने घर गाँव को याद करे न करे लेकिन अपने यार दोस्तों, ऑफिस के साथियों और शहरी दिखावट का ढिंढोरा इस कदर पीटता है कि यदि इनमें से एक भी पीछे छूट जाए तो उसकी इज्जत का फालूदा हो जाने वाला हुआ.
(Pahadi Bubu Story Kamlesh Joshi)

शादी की तारीख तय हुई. शहरी दोस्तों और ऑफिस के साथियों के लिए स्पेशल अंग्रेजी में कार्ड छपवाए गए. दोस्तों को हिदायत दी गई कि अपने-अपने ऑफिसों में समय रहते छुट्टी की अर्जी डाल दें. शादी के दिन कोई बहाना नहीं चलेगा. दोस्तों ने शादी से कुछ दिन पहले शॉपिंग की और पहाड़ की शादी में जाने का एक्साइटमेंट दिल में लिए मौज मारने की फुल प्लानिंग कर ली. परकास शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गया. तयशुदा तारीख को तमाम दोस्त सज-धज कर परकास के फ्लैट पर पहुँचे. दिल्ली के इन बारातियों के लिए स्पेशल गाड़ी बुक की गई थी और लोहाघाट से बारात में शामिल होने वाले बारातियों के लिए लोकल से ही एक काम चलाऊ बस का इंतजाम परकास के बड़े भाई ने पहले ही कर दिया था. जेठ की गर्मी में दिल्ली से निकली बारात के शुरूआती कुछ घंटों तक तो दिल्ली के इन लौंडों ने खूब हो हल्ला मचाया लेकिन मुरादाबाद आने तक वो सब गाड़ी में ऐसे पड़े थे जैसे गाड़ी बारात की न होकर मुर्दाघर की हो.

भरी दोपहर में गाड़ी चाय नाश्ते के लिए रुद्रपुर में रूकी. मुर्दा पड़े लौंडों में मानो गाड़ी में लगे ब्रेक ने जान फूंक दी. एक अंग्रेजीदा लौंडा दूल्हे की गाड़ी के पास पहुँचा और बोला “हाउ फार इज लोहाघाट प्रकाश?” (लोहाघाट कितनी दूर है प्रकाश?). परकास ने कहा भाई अभी तो हाफ-वे क्रॉस किया है. “स्टिल टु गो हाफ”(अभी आधा और जाना है). एक दूसरे लौंडे की दिलचस्पी यह जानने में थी कि पहाड़ कब शुरू होंगे. इन लौंडों में से अधिकतर ऐसे थे जो पहाड़ की घुमावदार सड़क में पहली बार सफर करने वाले थे. बारात चलकर टनकपुर पहुँची. हाफ टी-सर्ट, रेबन के गौगल और जीन्स में आए इन लौंडों ने जैसे ही सूखीढांग रोड पर चढ़ना शुरू किया तो सबके मुँह से एकाएक निकला “वाओ”. कुछ ही मिनट बीते होंगे की तेज घुमावदार मोड़ों में दिल्ली के इन लौंडों का “वाओ” “वाक्क-वाक्क” में बदल गया. गाड़ी एक-दो किलोमीटर भी आगे नहीं बढ़ी होती कि कोई न कोई बोल देता “प्लीज स्टॉप. आई हैव टू वोमिट” (प्लीज रोको. मुझे उल्टी करनी है). पहाड़ों में मौज काटने की इन लौंडों की प्लानिंग में फिलहाल भुस भर गया था. लगभग 90 किलोमीटर के इस पहाड़ी सफर के दौरान वो 180 बार ड्राइवर से पूछ चुके थे “भाई! कब आएगा लोहाघाट?” आखिर में ड्राइवर ने भी चिढ़ कर बोल ही दिया “घड़ी-घड़ी ऐसे ही गाड़ी रुकवाते रहोगे तो कल शाम तक पहुँच ही जाओगे”.
(Pahadi Bubu Story Kamlesh Joshi)

बारात लोहाघाट पहुँची. लौंडों को फ्रेश होने और कुछ देर आराम करने के लिए परकास के घर का एक कमरा दे दिया गया और परकास के बड़े भाई को उनकी आवभगत में लगा दिया गया. सफर की थकान और उल्टियों से बेहाल इन लौंडों ने तय किया कि रात की इस बारात में दिल्ली से लाई गई स्पेशल व्हिस्की का टॉनिक लिये बिना जाना मुश्किल होगा. शाम को लोहाघाट का मौसम इतना सुहाना हो गया कि दिल्ली की नरक ज़िंदगी झेल रहे इन लौंडों को लगा कि भले ही सफर में परेशान रहे लेकिन जन्नत सच में कहीं है तो इन पहाड़ों में ही है. शाम ढलते ही लोहाघाट वालों की स्वेटरें निकल आई थी. तमाम बाराती गर्म कपड़े पहने बारात में शामिल हुए थे. दिल्ली की भट्ठी में तपे इन लौंडों के अंदर जेठ की गर्मी ने ऐसी तबाही मचाई हुई थी कि वो एक शर्ट-पेंट में ही सारी ठंडक खुद में समेट दिल्ली ले जाना चाहते थे. बारात के पैदल मार्च से पहले लौंडों ने मुर्गे के साथ व्हिस्की की बोतल का भोग लगाया और नशे में धुत्त विलायती चश्मा पहने नाचते हुए पैदल मार्च में शामिल हुए. देर रात बारात त्रिलोचन मास्साब के घर पहुँची. पारा तेजी से गिरने लगा था. हवा में ठंडक काफी बढ़ चुकी थी.

दिल्ली के लौंडों के अंदर की व्हिस्की का असर अभी खत्म नहीं हुआ था. मसकबीन की धुन और छोलियों के साथ गौगल पहने ये लौंडे लगातार नाच रहे थे. गाँव के एक बुजुर्ग बुबू कोने में मोटी पंखी ओढ़े इन लौंडों की हरकतों को काफी गौर से देख रहे थे. छोलिया नृत्य के बाद लौंडों ने डीजे में अपने शहरी पागलपन का प्रदर्शन जारी रखा. धीरे-धीरे डीजे की आवाज मद्धम होती गई और देर रात लोग थके हारे सोने के लिए बिस्तरों की तलाश में निकल गए. नशे की जद में दिल्ली के लौंडों को जब ठंड अपने आगोश में लेने लगी तो उनकी नजरें परकास के बड़े भाई को खोजने लगी जो खुद नशे में धुत्त एक कोने में बेशुध पड़ा था. आधी रात को इतनी भयानक ठंड लगी कि कुछ लौंडे टेंट हाउस से लाई गई दरियों के नीचे सिमट गए. एक लौंडा खिसकते-खिसकते कोने में पंखी ओढ़े बुजुर्ग बुबू के पास जा पहुँचा और उनकी पंखी में समाने की कोशिश करने लगा. एक-दो बार तो बुबू ने उसे उलाहना देते हुए झिड़क दिया. आखिर में जब वो नहीं माना तो बुबू को गुस्सा आ गया और वो तमतमा कर बोलेः “रात भर चशम पैरि बेरे भिड़की रौ साल. आब जाड़ेलि मरन्नो त पंखी खैंचनो. अत्ति जाड़ हुन्नोत आब ओढ़ तै चशम.” (रात भर चश्मा पहन के उछल-कूद कर रहा है साला. अब ठंड से मर रहा है तो पंखी खींच रहा है. अधिक जाड़ा हो रहा है तो अब ओढ़ इस चश्मे को).

बुबू की उलाहना सुनकर परकास के पिताजी दौड़कर बाहर आए और ठंड से काँप रहे दिल्ली के इन लौंडों को एक कमरे में लेकर गए जहाँ गर्म बिस्तर में घुसने के बाद ही उनकी जान में जान आई. अगले दिन होश में आने के बाद लौंडों ने निर्णय लिया की ज़िंदगी में कभी कुछ करें या न करें लेकिन पहाड़ की किसी शादी में दिल्ली वाली होशियारी नहीं दिखाएँगे.
(Pahadi Bubu Story Kamlesh Joshi)

कमलेश जोशी

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

इसे भी पढ़ें: दर्दभरी खूबसूरत कहानी ‘सरदार उधम सिंह’

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

4 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

1 week ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

1 week ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

1 week ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

1 week ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

1 week ago