देवेन मेवाड़ी

पोषक तत्वों से भरपूर चौलाई की हरी सब्जी

ग्रीष्म ऋतु में हरी सब्जी खाने की ललक के कारण कल सब्जी मंडी से हरा सोना खरीद लाए और उसकी स्वादिष्ट सब्जी बनाई. ग़जब का स्वाद था. अब तक तो हम इसे चुआ, चौलाई या मार्छा ही कहते थे लेकिन कल इसे खरीदने के बाद इसे इस आम प्रचलित नाम से पुकारने में संकोच हो रहा है. हो भी क्यों नहीं, क्योंकि कुछ वर्षों पहले तक हम इसे पच्चीस-तीस रूपए किलो तक के हिसाब से खरीदते रहे हैं.
(Chaulai Sag Uttarakhand)

सन् 1984 में मैं और पत्रकार-कथाकार साथी नवीन जोशी गढ़वाल की यात्रा पर थे तो टिहरी के धरियांज गांव में बुजुर्ग दादा-दादी ने खेत से ताजा मार्छा तोड़ कर हमारे लिए स्वादिष्ट सब्जी बनाई थी. और, अपने गांव में तो हम बचपन से चुआ का साग खाते ही रहे हैं. खूब बड़ी, लाल, मोटी, झमक्याली बाल निकलने पर मंडुवा के खेतों में दूर से ही चुआ की लाल रंगत दिखाई देने लगती थी. बाल पक जाती तो हाथों से ही मांड़ कर छोटे-छोटे दाने यानी रामदाना निकाल लेते थे. उसकी स्वादिष्ट खीर बनती थी. सन् 2015 में गुप्तकाशी के डॉ. जैक्स वीन नेशनल स्कूल के बच्चों को विज्ञान की कहानियां सुनाने गया तो लखपत राणा जी के घर पर रहा. उन्होंने सुबह मार्छा की बहुत ही स्वादिष्ट रोटियां ताजा मक्खन के साथ खिलाईं. आह, क्या स्वाद था! वह स्वाद कभी भूल नहीं सकता.

यह तो कभी कल्पना ही नहीं की थी कि हमारी चुआ या मार्छा एक दिन सोने के भाव बिकने लगेगी. लेकिन, वक्त का क्या भरोसा कि चीजों के दाम कब कहां पहुंच जाएं. यह सोच कर चिंता होती है कि दिन भर मजदूरी करने वाले आम मजदूर तथा अन्य लोग शाम को क्या हरी सब्जी के साथ भी सूखी रोटी खा पाते होंगे? चुआ या चौलाई की हरी सब्जी तो बिल्कुल नहीं खरीद पाते होंगे. हम ही कौन-सा बार-बार खरीद पाएंगे? कल 1.708 किलो चौलाई की सब्जी रू.98 की दर पर रू. 167.38 को मिली. जल्दबाजी में तब रेट नहीं पूछ पाए थे और न कल्पना थी कि वह सोने के भाव बिक रही होगी. घर आकर देखा, हरी और लाल चौलाई दोनों का एक ही रेट है. हालांकि अब तक लाल चौलाई महंगी मिलती थी. वैसे आपको बताऊं, छोटी-छोटी पत्तियों वाली जो चौलाई हमें मिली है, वह खरपतवार यानी वीड की श्रेणी में आती है. कई देशों में इसे पिग-वीड कहा जाता है! 
(Chaulai Sag Uttarakhand) 

खैर यह सब तो हमारे फिक्र करने की बात है. मध्य और दक्षिण अमेरिका की मूल निवासी चौलाई को भी भला कहां पता होगा कि एक दिन भारत में मैं भी सोने के भाव बिकूंगी? उसने तो अपनी उस जन्म भूमि में 15-16 वीं सदी का एज़्टेक सभ्यता का वह काल देखा था जब वहां के निवासी अपने खेतों में मक्का और सेम के अलावा इसी की खेती करते थे. वह तो बुरा हो स्पेनी आक्रमणकारियों का, जिन्होंने वह महान सभ्यता नष्ट कर दी. एज़्टेक लोग अपने तमाम धार्मिक अनुष्ठानों में चौलाई के बीज यानी रामदाना चढ़ाते थे, उसी के व्यंजन बनाते थे. और उसी का प्रसाद भी बंटता था. स्पेनी आक्रमणकारियों ने उनकी इस परंपरा को नष्ट करने के लिए चौलाई की खेती पर पाबंदी लगा दी. धीरे-धीरे लोग अपनी ही उस प्यारी फसल को भूलने लगे. जब लातिन अमेरिकी देश आजाद हुए तो उन्हें अपनी उस प्यारी और पौष्टिक फसल की याद आई और लोग फिर से चौलाई उगाने लगे. कई लोग उसे फूलों की तरह फुलवारियों में भी उगाते लेकिन खेतों में वह फसल की तरह उगाई जाने लगी. फिर शुरू हुआ चौलाई का दुनिया का सफर. आज यह दुनिया के तमाम देशों में उगाई जा रही है. 

यह तो दुनिया को बाद में पता लगा कि चौलाई की फसल कितनी पौष्टिक है. पता लग चुका है कि इसमें शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. मक्का और चावल की तुलना में इसमें दुगनी प्रोटीन होती है. प्रोटीन के अलावा आयरन, सेलेनियम, रेशा, विटामिन-बी, विटामिन बी-6 आदि पोषक तत्व भी पाए जाते हैं. इसमें मैग्नीशियम, मैंग्नीज और फास्फोरस खनिज भी पाए जाते हैं. हरी सब्जी के साथ-साथ आप रामदाने का दलिया और खीर भी बना सकते हैं.

यह सब जानकर हम भी सोच रहे हैं कि चलो सोने के भाव ही सही हरा सोना तो मिला लेकिन जितना भी मिला, वह शरीर को बेशकीमती पोषक तत्व तो सौंप ही देगा.
(Chaulai Sag Uttarakhand)

देवेन्द्र मेवाड़ी

वरिष्ठ लेखक देवेन्द्र मेवाड़ी के संस्मरण और यात्रा वृत्तान्त आप काफल ट्री पर लगातार पढ़ते रहे हैं. पहाड़ पर बिताए अपने बचपन को उन्होंने अपनी चर्चित किताब ‘मेरी यादों का पहाड़’ में बेहतरीन शैली में पिरोया है. ‘मेरी यादों का पहाड़’ से आगे की कथा उन्होंने विशेष रूप से काफल ट्री के पाठकों के लिए लिखना शुरू किया है.

इसे भी पढ़ें: दूर पहाड़ों में बसे मेरे गांव में भी आ गया होगा वसंत

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

3 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

5 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

2 weeks ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago