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स्थानीय फूलों से रंग बनाकर पिथौरागढ़ के युवा आजीविका और प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा दे रहे हैं

हर वर्ष की तरह इस बार भी होली के आगमन पर बाजार में तरह-तरह के रासायनिक रंग और प्लास्टिक की बनी पिचकारिया, खिलौने, मास्क इत्यादि आ चुके हैं. आधुनिकता की इस चमक-धमक के बीच हरेला सोसायटी, पिथौरागढ़ द्वारा स्थानीय तौर पर मिलने वाले फूलों से निर्मित प्राकृतिक रंग तैयार किए हैं. (Fagun Organic Holi Colors)

यह रंग ब्रूज (बुरांश), प्योली, हल्दी बिच्छू घास (सिन्ना), हजारी (गेंदा), डहेलिया, पालक, मूली, चुकुन्दर आदि के इस्तेमाल से तैयार किए गए हैं. इन रंगों को बनाने के पीछे हरेला सोसायटी के वॉलिंटियर्स का हाथ है जो अपने इन प्रयोगों द्वारा आजीविका और प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देना चाहते हैं.

यहां यह बताना आवश्यक है कि रंगों के निर्माण एवं स्थानीय संसाधनों का दोहन एक सस्टेनेबल मैनेजमेंट प्लान के अंतर्गत किया गया है,  जिसके अंतर्गत निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है :

1.रंग बनाने से पहले वनों का सर्वेक्षण कर संसाधनों की उपलब्धता आंकी जाती है, जिसके बाद रंग बनाने की एक न्यूनतम कुल निश्चित मात्रा तय कर ली जाती है. ऐसा करने से सिमित संसाधनों पर अनुचित दबाव नहीं पड़ता .

2.एक ख़ास विधि द्वारा जंगली पौधों से फूल या पत्तियां चुनी जाती है. इसके अंतर्गत जमीन पर गिरे हुए फूल इकट्ठे किये हैं, और इन फूलों मे भी सिर्फ आधे फूल ही उठाए जाते हैं, ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि जमीन में ह्यूमस की मात्रा बनी रहे तथा उस फूल-पत्ती पर आधारित वन्य-जीवन को भी नुकसान न हो. इन पेड़ों और पौधों से जो ताजा फूल चुने जाते हैं, उनकी संख्या भी सिर्फ एक चौथाई होती है, ताकि पौधे को प्राकृतिक रूप से रीजनरेट करने का मौका मिलता रहे. (Fagun Organic Holi Colors)

3.सम्पूर्ण वन क्षेत्र में सिर्फ एक चौथाई क्षेत्र में मिलने वाले पेड़ों और पौधों को इस कार्य के लिए चुना जाता है. और यह क्षेत्र हर वर्ष एक रोटेशन पैटर्न में बदलता रहता है. 

4.रंगों की पैकेजिंग के लिए कपड़ों की थैलियों का प्रयोग कर, प्लास्टिक के प्रयोग से बचा जाता है.

ये रंग पूर्ण रूप से आर्गेनिक, हैवी मेटल फ्री और त्वचा के लिए लाभकारी हैं. स्थानीय और संपूर्ण देश भर के अलग-अलग क्षेत्रों से लोगों द्वारा इन रंगों की गुणवत्ता एवं पहल को सराहा जा रहा है . हरेला सोसायटी के अन्य मॉडलों की भांति इस प्रयोग द्वारा प्राप्त सहयोग का एक भाग स्थानीय वनों के संवर्धन एवं प्रबंधन पर भी खर्च किया जाएगा. जिसके अंतर्गत आने वाले माह में वनों में लगने वाली आग, खरपतवार एवं कचरा प्रबंधन, रंगों मे प्रयुक्त पेड़-पौधों के नर्सरी निर्माण जैसे मुद्दों पर हरेला सोसायटी के इन्हीं वॉलिंटियर्स द्वारा ग्रामीणों एवं स्थानीय जन-सहभागिता के सहयोग से कार्य किया जाएगा. (Fagun Organic Holi Colors)

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पिथौरागढ़ के रहने वाले मनु डफाली पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही संस्था हरेला सोसायटी के संस्थापक सदस्य हैं. वर्तमान में मनु फ्रीलान्स कंसलटेंट – कन्सेर्वेसन एंड लाइवलीहुड प्रोग्राम्स, स्पीकर कम मेंटर के रूप में विश्व की के विभिन्न पर्यावरण संस्थाओं से जुड़े हैं.

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Girish Lohani

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