[सीमांत जिला पिथौरागढ़ हमेशा से प्रतिभाओं का धनी रहा है. यहां के लोगों ने लगभग सभी क्षेत्रों में अपना नाम किया है लेकिन खेल एक ऐसा क्षेत्र जिसमें यहां के लोगों ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की है. फुटबाल हमेशा से पिथौरागढ़ का सबसे लोकप्रिय खेल रहा है. पहाड़ में प्रभात उप्रेती के छपे लेख ‘मेरा पिथौरागढ़’ से पुराने दिनों के फुटबाल पर संस्मरण पढ़िये : सम्पादक] Old Footballers of Pithoragarh
यहां के लोगों की लम्बाई और स्वास्थ्य पर मैं फ़िदा था. अभावों के बावजूद भी यहां के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर के थे. उन्हें जब मौका मिलता तो वह गोल्ड मैडलों के ढेर लगा देते. फुटबाल यहां का प्रिय खेल था. Old Footballers of Pithoragarh
जीवानन्द पांडे उर्फ़ जिबुवा अपनी टूटी टांग में मारफिया का इंजेक्शन लगा के खेलते थे. सुना, उनकी टांग बंगालियों ने डूरंड में तोड़ दी थी. उनका क्या बॉडी-डॉज था? ऐसा साफ़-सफ़ाई से खेलने वाला मैंने नहीं देखा. उन्हें जिबुवा अड़ान कहते थे, यानी अड़ जाने वाला.
त्रिलोक सिंह डूरंड और भारत से खेले थे. महेंद्र सिंह महर उर्फ़ ‘महू’ का हैड का कोण ग़जब था तो नीली आंखों वाले नीलवरन की शॉट और संतोष चंद, महेश जोशी का दमदार खेल एक आनन्द था.
फुटबाल यहां दन्तकथा सा था और खिलाड़ी यहां के देवता. हरि सिंह, हरिदत्त कापड़ी, ओ.पी.वर्मा, हरिप्रिया, उमेद सिंह, धरम सिंह और ग़जब के फारवर्ड दिनेश पांडे.
एक थे मध्यम भारत. काले लम्बे. क्या गोली थे? बस यही था, अगर कोई दर्शक कह दे – “यमराज!” तो गोलपोस्ट छोड़कर मारने आ जाते थे. उनके रहते गोल हो ही नहीं सकता था.
एक दिन चैलेंज किया, कोई गोल मार दे तो सौ रुपया. कोई नहीं मार पाया. फिर एक बच्चे को कहा तू मार. बच्चे ने मारा तो बॉल जाने दी और उन्होंने सट्ट से उसे वह नोट दे दिया.
सुना वो दो जुड़वां भाई थे. बाक्सिंग के फाइनल में दोनों पहुंचते, फिर फोड़म-फोड़ खुन्योल. इस पर मां ने कहा – “एक फुटबाल खेलेगा, एक बाक्सिंग.”
‘पहाड़‘ में छपे प्रभात उप्रेती के लेख ‘मेरा पिथौरागढ़’ से.
लेखक के बारे में एक लंबा लेख इस लिंक पर देखें: पॉलीथिन बाबा का प्रभात
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Ese lekh aur bajte rahe puranibyaad taja hoti hai danywad