सी. डब्लू. मरफी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊँ’ (1906) से आप अनेक दिलचस्प विवरण पढ़ चुके हैं. आज इस किताब से पढ़िए अल्मोड़ा और नैनीताल के बीच आने-जाने की व्यवस्था के बारे में कुछ रोचक जानकारियाँ.
“काठगोदाम से अल्मोड़ा जाने के लिए पहला पड़ाव भीमताल में है. भीमताल से आगे अगला पड़ाव यहाँ से 10 मील दूर रामगढ़ में है. यहाँ एक डाक बँगला है. अगला पड़ाव करीं दस मील दूर प्यूड़ा में है. यहाँ भी एक डाक बँगला है जहाँ से हिमालय की श्रृंखलाओं का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है. प्यूड़ा से सड़क लम्बे रास्ते से होकर नीचे उतरती है और उसके बाद नंगी पहाड़ी वाली तीखी चढ़ाई से होकर अल्मोड़ा पहुंचा जा सकता है. प्यूड़ा और अल्मोड़ा के बीच की दूरी नौ मील है.”
“अल्मोड़ा सन 1815 में अंग्रेजों के अधिकार में आया. मिस्टर गार्डनर को गवर्नर जनरल द्वारा कुमाऊँ के मामलों का कमिश्नर और गवर्नर जनरल का एजेंट नियुक्त किया गया. अल्मोड़ा की ऊंचाई करीब 3500 फीट है: यह उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की तरफ घोड़े की जीन के आकार की एक रिज पर बसा हुआ है.
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“यह एक अपेक्षाकृत बड़ा सैनिटोरियम है. यहाँ यूरोपीयनों के लिए मकान उपलब्ध हैं. यहाँ बोर्डिंग हाउसेज हैं, डाक बँगला है और एक स्थानीय बाजार भी. यहाँ थर्ड गुरखा रेजीमेंट तैनात है; पहले यह हवालबाग में थी; तब इसे कुमाऊँ सिविल बटालियन कहा जाता था. हवालबाग (धुंध का उद्यान) कुमाऊँ के सबसे सुन्दर स्थानों में से एक है. यहाँ आज भी रहने के लिए मकान उपलब्ध हैं. अल्मोड़ा से नैनीताल की सड़क प्यूड़ा से होते हुए रामगढ़ से गुजरती है. रामगढ़ से नैनीताल की दूरी 13 मील है.”
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“काकड़ीघाट और खैरना से होकर एक और सड़क जाती है; यह रामगढ़ जाने वाली सड़क से घोराड़ी पुल पर अलग हो जाती है. अल्मोड़ा और खैरना के बीच की दूरी उन्नीस मील है और वहां से नैनीताल बारह मील है. इस सड़क को लोअर रोड कहा जाता है अलबत्ता इस सड़क से यात्रा करना अपर रोड से यात्रा करने की तुलना में उतना आनंददायक नहीं है. खैरना घाटी की गर्मी बहुत थका देने वाली होती है.”
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