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पहाड़ से निकलकर बास्केटबॉल में देश का नाम रोशन करने कैप्टन हरि दत्त कापड़ी का निधन

हरि दत्त कापड़ी का जन्म पिथौरागढ़ के मुवानी कस्बे के पास चिड़ियाखान (भंडारी गांव) में हुआ था. 1958 से उन्होंने बॉक्सिंग, फुटबॉल और बास्केटबॉल खेलना शुरू किया, लेकिन बास्केटबॉल को ही अपनी जिंदगी बना लिया. 1965 से 1980 तक वह सर्विसेज के लिए खेले और 1978 तक भारतीय टीम का हिस्सा रहे. 11 साल पहले 73 साल की उम्र में उत्तराखंड खेल विभाग ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया. हरि दत्त कापड़ी ने न सिर्फ पहाड़ से निकलकर एक अंजान खेल में अपनी पहचान बनाई, बल्कि अपना पूरा जीवन ही इस खेल के नाम कर दिया.
(Obituary to Hari Datt Kapri)

सेना में भर्ती से शुरू हुआ सफर

हरि दत्त कापड़ी ने मात्र 14 साल की उम्र में सेना की बॉयज कंपनी में भर्ती होकर देश सेवा की राह चुनी. सेना में रहते हुए उन्होंने अनुशासन और खेल दोनों को आत्मसात किया. बॉस्केटबॉल, फुटबॉल जैसे खेलों से परिचय हुआ, लेकिन उनकी असली रुचि बास्केटबॉल में जगी. अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर उन्होंने जल्द ही सेना की टीम में जगह बना ली. सेना से शुरू हुआ यह सफ़र भारतीय बास्केटबाल टीम के कप्तान बनने के बाद भी नहीं रूका. सेना से लौटने के बाद पहले नैनीताल और फिर अपने जिले पिथौरागढ़ में हरि दत्त कापड़ी युवाओं के बीच ‘कापड़ी सर’ नाम से ख़ूब मशहूर रहे.

सर्विसेज की टीम से भारतीय बास्केटबाल टीम में हिस्सा लेते कैप्टन हरि दत्त कापड़ी

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन

1963 से 1979 तक, केवल 1968 को छोड़कर, हरि दत्त कापड़ी की टीम राष्ट्रीय बास्केटबॉल चैंपियनशिप में लगातार विजेता रही. इस दौरान उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत का प्रतिनिधित्व किया और कई देशों में अपने खेल से सभी को चकित कर दिया. 1969 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल प्रतियोगिता में भाग लेते हुए उन्होंने एशियाई देशों के बीच भारत को पांचवां स्थान दिलाया. इसके बाद 1971 में टोक्यो में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में भी उन्होंने भारतीय टीम का नेतृत्व किया.
(Obituary to Hari Datt Kapri)

थाईलैंड के मैच को आज भी किया जाता है याद

1975 में थाईलैंड में आयोजित 7वीं एशियन बास्केटबॉल प्रतियोगिता में हरि दत्त कापड़ी का एक मैच हमेशा याद किया जाता है. थाईलैंड के खिलाफ मुकाबले में गेंद छीनने के दौरान विपक्षी खिलाड़ी की कोहनी से उनका जबड़ा कट गया. वह मैदान पर गिर पड़े और स्ट्रेचर से बाहर लाए गए. हालत गंभीर होने के बावजूद, कोच और टीम मैनेजर के मना करने के बाद भी वह अपनी जिद पर अड़े रहे. मैदान पर वापस लौटकर उन्होंने भारत को छह अंकों से जीत दिलाई. मैच के बाद उनके जबड़े में सात टांके लगे. यह जज्बा ही था जिसके लिए उन्हें 1969 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.

टोकियो एशियन गेम्स में कैप्टन हरि दत्त कापड़ी

बच्चों को सिखाने का जुनून

अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित हरि दत्त कापड़ी को बच्चों को खेल सिखाने का गहरा जुनून था. 1980 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और अपने गृह जनपद पिथौरागढ़ लौट आए. 1985 से 2002 तक नैनीताल में रहकर उन्होंने खिलाड़ियों को बास्केटबॉल की बारीकियां सिखाईं. पिथौरागढ़ लौटने के बाद उन्होंने स्पोर्ट्स स्टेडियम, कुमाऊं रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट और कुमाऊं स्काउट के खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया.
(Obituary to Hari Datt Kapri)

उपलब्धियों का स्वर्णिम अध्याय

1970: मनिला में एशियन इन्विटेशन टूर्नामेंट में कांस्य पदक.
1971: टोक्यो में एशियन चैंपियनशिप में भारतीय बास्केटबॉल टीम के कप्तान.
1979: श्रीलंका में आयोजित प्रतियोगिता में आर्मी टीम के कप्तान.
1969: भारत सरकार ने अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया.
1985-2002: नैनीताल के बिरला विद्या मंदिर में बास्केटबॉल प्रशिक्षक.
2014: उत्तराखंड सरकार ने देवभूमि लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया.

कैप्टन हरि दत्त कापड़ी

सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के डीडीहाट क्षेत्र के एक छोटे से गांव से निकलकर कैप्टन हरि दत्त कापड़ी ने बास्केटबॉल के क्षेत्र में ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया, जिसे आने वाली पीढ़ियां हमेशा याद रखेंगी.
(Obituary to Hari Datt Kapri)

काफल ट्री डेस्क

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