आज इंटरनेट पर उत्तराखंड की जानकारी से जुड़े सैकड़ों पोर्टल हैं. इन सभी पोर्टल में सबसे पुराने और विश्वसनीय पोर्टल का नाम ‘मेरा पहाड़ डॉट कॉम‘. एक दशक से अधिक समय से चल रहे इस पोर्टल की विश्वसनीयता का नाम है पंकज सिंह महर. पंकज सिंह महर से हर कोई न मिला हो पर इस वेबसाईट में मिलने वाली पहाड़ से जुड़ी हर ठोस जानकारी बता देती है कि पंकज सिंह महर के भीतर पहाड़ किस कदर बसा था. कोरोना की दूसरी लहर जाते जाते पहाड़ के लिए एक दुःखद ख़बर छोड़ गयी.
(Obituary for Pankaj Singh Mahar)
वह किसी के लिये दा थे, किसी के लिये भुला थे तो किसी के लिये भाया थे. पहाड़ से सरोकार रखने वाले हर शख्स का पंकज सिंह महर से कोई न कोई नाता जरुर था. जीआईसी देवलथल से देहरादून विधानसभा में नौकरी तक के सफ़र में पंकज हमेशा साहस के साथ पहाड़ के लिये बोलते रहे. अनुभवों से भरे अपने जीवन में पंकज ने कई साथी जोड़े जिनको ताउम्र साथ लेकर चले.
पहाड़ में ऐसे विरले लोग मिलते हैं जिनके भीतर मैदान में नौकरी के बाद भी पहाड़ अपनी ख़ास ठसक के साथ जिंदा रहता है. पद मिलने के बाद तो भीतर का पहाड़ और कमजोर होने लगता है पर पंकज सिंह महर इससे अलग थे उनके भीतर पहाड़ हमेशा जिंदा रहा. समय पर समय आने वाली उनकी निडर टिप्पणियों में उनका पहाड़ से सरोकार झलकता था. दैनिक हिन्दुस्तान, कुमाऊं के सम्पादक राजीव पांडे द्वारा लिखे संदेश से पंकज सिंह महर के पहाड़ से सरोकार को समझा जा सकता है-
(Obituary for Pankaj Singh Mahar)
जब भी फोन करते या मैं करता आवाज आती हां भाया… इसके बाद बातों में केवल हमारा गांव देवलथल होता. देहरादून में शानदार नौकरी कर रहे उस आदमी को पता होता देवलथल की तरफ जाने वाली सड़क में कितने गड्ढे हैं. किस गांव में पानी कब से नहीं आया. देवलथल के अस्पताल में कब से दवा नहीं है वे सब जानता था. ऐसे थे उनके पहाड़ से सरोकार.
काफल ट्री परिवार की ओर से पंकज सिंह महर को विनम्र श्रद्धांजलि.
(Obituary for Pankaj Singh Mahar)
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श्रद्धांजली। ॐ शान्ति: ।
उनसे "म्यार पहाड़ " - नमक वेबसाइट (पहले ब्लॉग था) के द्वारा थोड़ा जान पहचान हुई थी।