उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के समय हम स्कूल में थे. आन्दोलन से जुड़ी एक ठोस याद एक ख़बर है – पिथौरागढ़ के एक छात्रनेता ने जिलाधिकारी ऑफिस के बाहर आत्मदाह कर लिया. करीब-करीब दस-पन्द्रह दिन तक इस छात्रनेता के बारे में अलग-अलग बातें की जाती थी.
(Nirmal Pandit Rajya Andolankari Uttarakhand)
कोई कहता किसी ने मिट्टी तेल के जार में पेट्रौल मिला दिया, कोई कहता पुलिस वालों ने कम्बल नहीं डालने दिया, कोई कहता उसके किसी दोस्त ने गद्दारी कर दी, कोई कहता पुलिस ने गद्दारी कर दी.
लोगों के बीच ये चर्चायें कम हुई थी कि महीने भर बाद अचानक खबर आई, दिल्ली में छात्रनेता की मौत हो गयी. इस घटना के कई सालों तक इस छात्रनेता का नाम पिथौरागढ़ कॉलेज इलेस्कशन में लिया जाता रहा. नाम है निर्मल पंडित.
हम लम्बे समय तक निर्मल पंडित की बातें सुनते आये. जब कभी प्रदर्शन होता तो लोग कहते अभी निर्मल दा होता तो ऐसा कर देता. नब्बे के दशक में बड़े हुये पिथौरागढ़ के लोगों के लिये निर्मल पंडित एक नाम नहीं एक हीरो था. एक हीरो जिसको हमने कभी करीब से नहीं देखा.
कुछ साल पहले खबर आई थी कि निर्मल पंडित को राज्य सरकार ने अब तक राज्य आन्दोलनकारी का दर्जा नहीं दिया और इससे बुरी खबर यह थी कि एक युवा जिसने राज्य के लोगों के लिये अपनी जान दे दी उसके परिवार को वृद्धावस्था पेंशन के लिये भटकना पड़ा.
(Nirmal Pandit Rajya Andolankari Uttarakhand)
निर्मल पंडित वो नाम है जिसके नेतृत्व में कलेक्टर की एम्बेसडर राज्य आन्दोलनकारियों में अपने कब्जे में ली थी. इस एम्बेसडर कार में जिलाधिकारी के बोर्ड की जगह लिखा होता मुख्यमंत्री. एक समय निर्मल की लोकप्रियता इतनी बढ गयी कि सरकार ने उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के आदेश दे दिए.
क्या कोई इस बात पर यकीन कर सकता है कि सीमांत जिले के एक युवा के आन्दोलन के कारण उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती निरस्त की जाती है. 1996 में निर्मल पंडित ने यह भी किया था.
1998 में जब सरकार ने शराब के नये टेंडर निकाले तो निर्मल पंडित ने इसका विरोध किया. उसने विरोध में आत्मदाह करने की घोषणा की. तय तारीख के दिन अपने जिले के जिलाधिकारी कार्यालय के सामने उसने आत्मदाह किया. जब तक कि महकमें के कानों में जूं रेंगती निर्मल पंडित का 65 प्रतिशत शरीर जल चुका था.
उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के समय निर्मल पंडित के बहुत से साथी आज भाजपा-कांग्रेस की गोद में बैठे हैं. जिस ठसक से वो कहते हैं कि उन्होंने भी निर्मल पंडित के साथ लड़ाई लड़ी है, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि निर्मल पंडित का नाम राज्य आन्दोलन में कितना बड़ा है.
शराब विरोध में अपनी जान गंवा देने वाले और पिथौरागढ़ जिले में राज्य आन्दोलन की अलख गाँव-गाँव तक पहुँचाने वाले निर्मल पंडित ने ऐसे राज्य की परिकल्पना तो कभी नहीं की होगी जिसकी अर्थव्यवस्था का आधार ही शराब की बिक्री होगा.
(Nirmal Pandit Rajya Andolankari Uttarakhand)
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निर्मल पंडित जी sorry, चूंकि सरकार बहुत संवेदनशील है ।