पशुपालक समाजों में पशु के गुण-विशेष से आत्मीयता बरती जाती रही है. नेगी जी ने गढ़वाल की प्राथमिक अर्थव्यवस्था आधारित पशुपालन पर एकाधिक गीत गाए, जिनमें ‘ढ्येबरा हर्चि गेना’ से लेकर ‘तीलु बाखरी’ तक उनका समूचा अनुभव-संसार जीवंत हो उठता है. उनके गीतों में शब्दों की प्रकृति, अर्थ-बोधन क्षमता कुछ विशेष होती है. वस्तु व्यंजना में नेगी जी अद्भुत हैं. उनकी भाषा का अद्भुत प्रवाह श्रोता को निरंतर बांधे रखता है.
(Ni Mili Meri Tilu Bakhri)
पशुचारक की तीलु नाम की प्रिय बकरी खो गई है. खोजने के लिए उसने जितने जतन किए, इस गीत में उन प्रयासों का बखान हुआ है. गढ़वाल में कस्बों-मोहल्लों-खेतों के नाम बहुसंख्यक तौर पर उनके गुण-विशेष के आधार पर निर्धारित किए जाने का विधान रहा है. शेष जातिगत बसासतों के आधार पर. प्रीविपर्स खत्म होते-होते यहां परंपरागत समाज का अस्तित्व रहा, जिसमें स्मृतिग्रन्थों आधारित ढांचे को खासी महत्ता मिलती रही.
नेगी जी के गीतों में एक विशेषता देखने को मिलती है कि वे गीत के बहाने पूरे लैंडस्केप का एक खाका खींचते हैं और गीत-विशेष के बहाने विषय-वस्तु का समूचा कोलाज रचते हैं.
खोज ली, खोज ली, सारी मुंथा खोज ली. छान लिया छान लिया सारा सिंधु (समुंदर) छान लिया. नहीं मिली, नहीं मिली, मेरी तीलु बकरी. दुनिया से न्यारी मेरी तीलु बकरी. प्राणों से प्यारी मेरी तीलु बकरी. नहीं मिली तो नहीं मिली मेरी तीलु बकरी.
(Ni Mili Meri Tilu Bakhri)
हर भाषा का एक मुहावरा होता है. गढ़वाली में अधिकतम प्रयास को अभिव्यक्त करने के लिए अतिशयोक्ति पर अच्छा-खासा जोर रहता है. गीत की पहली ही पंक्ति में कवि कहता है कि उसने सारी मुंथा(सारे संसार में) खोज लिया. ज्योतिष गणना में वर्षफल लगाते समय मुंथा का खासा महत्त्व रहता है. वर्ष-विशेष में जहां पर मुंथा पड़ती है, वह स्थान/ग्रह विशेष उस वर्ष के लिए गवर्निंग फैक्टर हो जाता है. इस गीत में ‘सारी मुंथा खोज ली’ का आशय संपूर्ण जगत् से है. सारा सिंधु(समुद्र) छान लिया पर नहीं मिली तो नहीं मिली कवि की प्यारी तीलु बकरी.
मकई के खेतों में खोज लिया. मिर्चा के खेतों में खोज लिया. आलू के खेतों में खोज लिया. भांग के खेतों में खोज लिया. खोज लिया खोज लिया, घर-बार में खोज लिया. नहीं मिली तो नहीं मिली मेरी प्यारी तीलु बकरी. झंगोरा (सांवा) के खेतों में खोज लिया, धान के खेतों में खोज लिया. गेहूं के खेतों में खोज लिया. कोदों के खेतों में खोज लिया. सारे सिंचित खेतों में खोज लिया. नहीं मिली तो नहीं मिली कवि की प्रिय तीलु बकरी.
गढ़वाल में धान को साठी कहा जाता है. क्रॉप वैरायटी के साठ दिन में पकने के कारण उसको यह नाम दिया गया. वादकों के मोहल्ले में खोज लिया. दर्ज़ियों के मोहल्ले में खोज लिया. ब्राह्मणों के मोहल्ले में खोज लिया. जोगियों के मोहल्ले में खोज लिया. ‘धर्मधाद’ मार ली. नहीं मिली तो नहीं मिली कभी की तीलु बकरी.
(Ni Mili Meri Tilu Bakhri)
स्मृति ग्रन्थों से लेकर चाणक्य नीति तक ‘उपधा परीक्षण’ सत्यता का परीक्षण करने की एक विशेष प्रक्रिया थी. व्यक्ति-विशेष की सत्यता और निष्ठा का परीक्षण करने के लिए धर्म-दरबार में सच्चाई की पुकार लगाई जाती थी, जिसे ‘धर्मधाद’ कहा जाता था.
गाड़-गधेरों के किनारे खोज लिया. धारों के मरोड़ों में खोज लिया. घर-बाहर, गांव-आंगन, आबाद, गैर-आबाद मकानों में खोज लिया. आते-जाते सबसे पूछ लिया. नहीं मिली तो नहीं मिली मेरी तीलु बकरी.
सब्जी के खेतों में खोज लिया. केले के कदली-वन में खोज लिया. तिलहन के खेतों में खोज लिया. मिट्टी की मठखाणी में खोज लिया. खोज लिया, मैंने सारी मुंथा में खोज लिया. सारे सिंधु को छान लिया. नहीं मिली तो नहीं मिली मेरी तीलु बकरी.
मठखाणी- पर्वतीय इलाकों में परंपरागत शैली के मकानों में मिट्टी की लिपाई-पुताई की जाती थी. गांव में कुछ विशेष स्थल होते थे जहां से समूचा गांव मिट्टी खोदकर ले जाता. मिट्टी प्राय: लाल होती थी. कहीं-कहीं सफेद मिट्टी का भी चलन होता था. मिट्टी की खान होने के चलते स्थान-विशेष को ‘मठखाणी’ संज्ञा से जाना जाता था.
(Ni Mili Meri Tilu Bakhri)
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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