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महंगे प्याज को सस्ता बताने का षडयंत्र

महंगे को सस्ता बनाने का खेल कैसे होता है? हल्द्वानी मंडी समिति की इस धोखेबाजी वाली पहल से समझ में आता है. इस तरह का खेल राज्य के अनेक शहरों, कस्बों में आजकल खेला जा रहा है. जिस मंडी समिति को प्याज की जमाखोरी रोकने का काम करना चाहिए था, वह सस्ती लोकप्रियता वाले काम में लगी है. जिस भाव में मंडी समिति ने सस्ता प्याज बेचने का दावा किया, उस भाव में बड़ी मंडी में वैसे ही प्याज मिल जा रहा है. क्या 70 रुपए किलों प्याज सस्ता है? अगर हॉ तो फिर महंगा क्या है? Column by Jagmohan Rautela

आमतौर पर इस समय प्याज की कीमत 20-25 रुपए किलो होती है. पर मंडी समिति को भी प्याज 70 रुपए किलो सस्ता लग रहा है. महंगाई को सस्ता बताने का इस तरह का खेल जिम्मेदार संस्थाएँ सरकार, सत्ता, प्रशासन व मंडी समिति इसी तरह से खेलती रहती हैं और मुनाफाखोरों के साथ खड़ी रहती हैं चुपचाप. पहले ये जिम्मेदार संस्थाएँ कीमतें आसमान पहुँचने पर कोई कार्यवाही नहीं करती हैं. उसे चुपचाप एक षडयंत्र के तहत देखती रहती हैं. अगर कुछ आवाजें उठती भी हैं तो यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से किनारा कर लेती हैं कि हमारी नजर बढ़ती कीमतों पर है, किसी को भी जमाखोरी नहीं करने दी जाएगी. ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी.

ऐसे बयान जनता को बड़ी राहत देते हैं, उन्हें लगता है कि अब चीज महंगी नहीं होगी. प्रशासन की नजर है. पर वह बयान केवल बयान तक ही सीमित रह जाता है. दो-चार दिन सख्त कार्यवाही,  किसी को भी नहीं छोड़ेंगे वाले बयानों से निकल जाते हैं. इस बीच कीमतों में बहुत तेजी से उछाल आता है. मुनाफा व जमाखोर बाजार में मॉग की अपेक्षा आपूर्ति कम करते हैं. जो एक तरह से प्रशासन, सत्ता का बचाव भी करता है, क्योंकि इसके बाद सत्ता व प्रशासन का बयान आता है कि कहीं भी जमाखोरी नहीं हो रही है.  अलॉ, फलॉ जगह से ही प्याज या वह वस्तु कम आ रही है. जिसकी वजह से फलॉ चीज महंगी हो गई है. चिंता की कोई बात नहीं है. कुछ दिन में हालात सामान्य हो जायेंगे.  कुछ में हालात सामान्य होने वाले बयान का मतलब जमाखोरों के लिए एक सन्देश होता है कि वे कुछ दिन और कालाबाजारी कर सकते हैं, उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होने वाली है.

इस बीच ही फिर जनता का गुस्सा महंगी होती चीज के खिलाफ होता है तो थोक मंडी के  कथित भाव पर उस अचानक महंगी हुई वस्तु को कुछ स्थानों पर स्टॉल लगाकर बेचा जाता है और जरूरत से ज्यादा प्रचार कर के सस्ते दाम पर बेचने की बात कहकर जनता की वाहवाही लूट ली जाती है. इससे एक तो वह वस्तु महंगी ही बनी रहती है, दूसरी ओर लोगों का गुस्सा भी प्रशासन के खिलाफ कम हो जाता है. उसे लगता है कि मंडी समिति, व्यापार सभा व प्रशासन ने उनके लिए कितना बड़ा काम किया.

कुछ साल पहले जब अरहर की दाल जमाखोरी के कारण अचानक बहुत महंगी हो गई थी तो पूरे देश में सत्ता, सरकार व प्रशासन ने ऐसा ही किया था, जैसा आजकल प्याज को लेकर किया जा रहा है. तो ऐसे में हल्द्वानी की मंडी समिति भी क्यों पीछे रहे? उसे भी तो जनहित में कुछ न कुछ करना है ना? पर जनता सत्ताओं व जिम्मेदार संस्थाओं के इस षडयंत्र को कब समझेंगी? सबसे बड़ा सवाल तो यही है? Column by Jagmohan Rautela

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काफल ट्री के नियमित सहयोगी जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं. अपने धारदार लेखन और पैनी सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि के लिए जाने जाते हैं.

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