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स्प्रिंग्स मात्र जल का साधन नहीं उससे कहीं अधिक हैं

भूमि की अंदरूनी सतह में स्थित टेक्टोनिक प्लेट्स के हिलने तथा एक दूसरे से टकराने के कारण पहाड़ों और पथरीली चट्टानों में पड़ी दरारों से निकल रहे जल स्रोतों को कहते हैं स्प्रिंग्स. पहाड़ों मे इन प्राकृतिक जल स्रोतों का पानी पीने के लिए सबसे अधिक शुद्ध तथा उत्तम माना जाता है. (Natural Springs are Important to Himalayas)

पहाड़ों में नदियों से दूर बसे अनेक गांवों में पीने का पानी का मुख स्रोत ये स्प्रिंग्स ही हैं और शायद इसीलिए पहाड़ों में जिंदगी बसर कर रहे लोगो के जीवन में इन स्प्रिंग्स का महत्व एक मात्र जल स्रोत ही नही अपितु उससे कही अधिक बढ़ कर है. (Natural Springs are Important to Himalayas)

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पूर्ण भारत मे लगभग पाँच मिलियन स्प्रिंग्स हैं, जिसमे से तीन मिलियन स्प्रिंग्स हिमालयी क्षेत्र के 12 राज्यों में पाए जाते हैं. इस रिपोर्ट के इन आंकड़ों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पहाड़ों मे पीने के जल हेतु स्प्रिंग्स क्या और कितना महत्व रखते हैं.

ये स्प्रिंग्स न केवल हम मनुष्यों के लिए अपितु अनेकों नदियों के जल प्रवाह तथा जंगली जानवरों के लिए भी अत्याधिक महत्वपूर्ण हैं. स्प्रिंग्स का पानी न केवल साल भर बहने वाली नदियों मे मिल कर उनके जल प्रवाह को बढ़ाने में सहायता करता है अपितु अनेकों छोटी नदियों को भी जन्म देता है साथ ही जंगलों में जंगली जानवरों के लिए भी जल स्रोत का मुख आधार हैं.

परंतु आज अवैज्ञानिक ढंग से पहाड़ों मे होते विकास तथा लगातार होते जलवायु परिवर्तन का सीधा असर इस प्राकृतिक स्रोतों (स्प्रिंग्स) के जल बहाव पर पड़ा है. विकास के लिए लगातार कटते हरे जंगल तथा तेजी से होते कंक्रीट के जंगलों का विकास, स्प्रिंग्स के जल बहाव मे आने वाली कमी के प्रमुख कारण हैं.

आज हालत ये है कि वर्षा तो होती है परंतु वर्षा का जल भूमि मे रिसने की बजाए यूं ही सतह के उपर तेजी से बहकर नष्ट हो जाता है, क्योंकि जो वृक्ष वर्षा जल के बहने की गति को कम करते हैं तथा अपनी जड़ों की सहायता से वर्षा जल को ज़मीन की गहराइयों में रिसने मे मदद करते हैं आज वे वृक्ष तेज़ी से कट रहे हैं. जिस कारण न केवल भू जल स्तर घट रहा है साथ ही जंगलों की उपजाऊ मिटटी भी पानी के तेज बहाव के साथ बह जाती है. इस घटते भू जल स्तर के कारण आज कई स्प्रिंग्स या तो सूख गये हैं या फिर उनका जल बहाव घट गया है.

इसका असर पहाड़ों मे जिंदगी बसर कर रहे लोगो के जीवन शैली पर पड़ा है. आज पहाड़ में महिलाओं को अपने पीने के पानी की जरूरत को पूर्ण करने हेतु अधिक परिश्रम करना पड़ रहा है. स्प्रिंग्स से पीने के पानी को भरने के लए अत्यधिक समय तथा दूरी तय करनी पड़ रही है.

उत्तराखंड राज्य में स्थित अल्मोड़ा शहर की खोज सन 1563 में हुई थी. अल्मोड़ा अपने जल मांग के लिए हमेशा से प्राकृतिक जल स्रोतों (स्प्रिंग्स) पर ही निभर था. एक वक़्त था जब अल्मोड़ा शहर में लगभग 360 प्राकृतिक जल स्रोत हुआ करते थे परन्तु आज उन स्रोतों की संख्या घट कर मात्र 60 रह गयी है. पिछले 150 वर्षों में होते अवैज्ञानिक ढंग से इस शहर के विकास तथा तेजी से नष्ट होते आस पास के बांज के जंगलों का असर इस शहर के प्राकृतिक जल स्रोतों पर पड़ा है साथ की कोसी नदी का जल स्तर भी घट रहा है. हालत ये आ गये हैं कि आज इस अल्मोड़ा शहर को ग्रीष्म ऋतु में पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है. जिसका असर इस शहर के लोगों की जीवन शैली तथा उनकी खेती पर पड़ा है.

आज पहाड़ों में स्थित हर प्राकृतिक जल स्रोत का लगभग यही हाल है. नैनीताल जिले में भी स्प्रिंग्स की संख्या घट रही है.

स्प्रिंग्स के बहाव मे कमी का असर न केवल मनुष्यों के जीवन पर अपितु नदियों और जंगली जानवरों के जीवन पर भी पड़ा है, क्योंकि साल भर बहने वाली अनेको नदियाँ अपनी जल स्तर तथा बहाव के लिए स्प्रिंग्स पर निर्भर रहती हैं. स्प्रिंग्स के सूख जाने तथा उनके जल बहाव मे कमी आने के कारण नदियों का व्यास भी घट रहा है तथा उनके जल स्तर में भी भारी गिरावट आ रही है.

जंगलों के बीच स्थित स्प्रिंग्स भी सूख रहे हैं, जिस कारण पानी की तलाश मे जंगली जानवर अपनी प्यास को बुझाने हेतु जंगलों के नजदीक बसे गांवों मे घुस रहे हैं, जिस कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है.

अब सवाल यह उठता है कि क्या उपाय अपनाये जाएं जिनकी सहायता से हम इन सूख गये स्प्रिंग्स को पुनः जीवित कर सकें तथा उनके जल प्रवाह को पुनः बढ़ा सकें.

उपाय बहुत ही सरल है. हमें स्प्रिंग्स के रिचार्ज ज़ोन्स (जल भंडार केंद्र) के आसपास अधिक से अधिक मात्रा में वृक्ष लगाने होंगे ताकि वर्षा का जल जमीन में दोबारा से संचयित होकर भू जल-स्तर को पुनः बढ़ने में सहायता कर सके, जिसके माध्यम से सूख चुके जल स्रोत को पुनः जीवित किया जा सकता है साथ ही उनका जल बहाव की क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है.

इसके साथ हमें लोगों को भी जागरूक करना होगा कि अपने बहुमूल्य जंगलों की सुरक्षा करें तथा स्प्रिंग्स के आस पास की जगह को कंक्रीट का न बनाएं ताकि जल जमीन में स्थित स्प्रिंग्स के जल भंडार तक वर्षा का जल रिस सके.

डिसक्लेमर : यह लेखक के निजी विचार हैं.

यह लेख काफल ट्री की ईमेल आईडी पर यशी गुप्ता ने भेजा है. यशी वर्तमान में Centre for Ecology Development and Research (CEDAR) में जूनियर रिसर्च एसोसिएट हैं.

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