नरेंद्र सिंह नेगी के सृजन में हिमालय की अनुगूंज प्रतिध्वनित होती है. उन्होंने पारंपरिक पटबंध शैली से अलग, संपूर्ण सार्थकता, स्वतंत्र अस्तित्व लिए गीतों का सृजन किया. उनके गीत-दर्शन में संस्कृति-संरक्षण और समृद्धि का विचार नजर आता है. उनकी अनुभूति-प्रवणता से पहाड़ी जनजीवन की अनुभूतियों को कलात्मक ऊंचाई मिली. उन्होंने वक्त की धूल में छिपे-ढ़ंके पुराने जमीनी शब्दों को धो-पोंछकर यथोचित आसन दिया और गढ़वाली शब्द-संपदा को पुनर्प्रतिष्ठित करने का श्लाघनीय कार्य किया.
(Narendra Singh Negi)
विभिन्न विषयों में बिंबों, प्रतीकों के जरिए अलग-अलग एंगल से नए प्रयोगों और नई अप्रोच, नए ट्रीटमेंट के साथ उन्होंने गढ़वाली गीतिकाव्य में रिनेसां का सूत्रपात किया.
शब्दों के जरिए वह समाज, प्रकृति और पात्रों का ऐसा शब्दचित्र खींचते हैं कि नेत्रहीन व्यक्ति भी जीवंत दृश्य अनुभव करने लगता है. उनके गीतों में छंदों की विविधता है, अलंकारों की प्रचुरता है, पर वह आग्रह के तौर पर न होकर सहज प्रयोग के रूप में सामने आते हैं. पोएटिक डिवाइसेज का वह सटीक प्रयोग करते हैं.
उर्दू काव्यशास्त्र में वर्णित खूबियां, बलाग़त (शब्द-ध्वनि, प्रवाह एवं अर्थदृष्टि से संबंद्धता), फसाहत (दोषरहित शब्द-विन्यास), मुसावात (नपे-तुले शब्द) और सलासत (सुगम-सुबोध शब्दावली) उनके गीतों की विशेषता है.
(Narendra Singh Negi)
काव्यशास्त्र और लोक-अनुभव दोनों में सिद्धहस्त वह ऐसे गीतकार हैं, जिनकी कलम से निकले शब्द अनायास ही लोगों की जुबान पर चढ़ जाते हैं. उनके लिखे बोल मुहावरों का स्थान ले लेते हैं. उनके सृजन में शब्द, संगीत और स्वर तीनों आयामों में पहाड़ी जनजीवन की आत्मा का मौलिक स्पर्श देखने को मिलता है.
काव्य-सौष्ठव अर्थगौरव के श्रेष्ठ तत्वों से संपन्न उनके गीतों में पहाड़ी जनजीवन के हर्ष-विषाद के भावों का समूचा प्रतिबिंब परिलक्षित होता है. निश्चित तौर पर उनका सृजन विश्व के श्रेष्ठ गीतिकाव्य में गिने जाने योग्य हैं.
नेगीजी के शताधिक गीतों के विश्वसनीय विश्लेषण पर आधारित पुस्तक, कल फिर जब सुबह होगी, का आज देहरादून में लोकार्पण हो रहा है. मध्य हिमालयी (गढ़वाली) संस्कृति के सरस परिचय के रूप में यह कृति निश्चित तौर पर संग्रहणीय और पठनीय है.
(Narendra Singh Negi)
गीत-संगीत सृजन के पचास साल और स्वयं के पिच्चतर साल पूरे होने पर, नरेन्द्र सिंह नेगी जी को हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएँ.
सम्प्रति राजकीय इण्टरमीडिएट कॉलेज में प्रवक्ता हैं. साहित्य, संस्कृति, शिक्षा और इतिहास विषयक मुद्दों पर विश्लेषणात्मक, शोधपरक, चिंतनशील लेखन के लिए जाने जाते हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ ( संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित), कैप्टन धूम सिंह चौहान (सैन्य इतिहास, विनसर देहरादून से प्रकाशित), घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित) और सीखते सिखाते (शैक्षिक संस्मरण और विमर्श, समय-साक्ष्य देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी प्रकाशित हैं. आकाशवाणी और दूरदर्शन से वार्ताओं के प्रसारण के अतिरिक्त विभिन्न पोर्टल्स पर 200 से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं.
इसे भी पढ़ें : मशकबीन: विदेशी मूल का नया लोकवाद्य
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…