उत्तराखंड के तीन व्यक्तित्वों – बछेंद्री पाल, प्रीतम भरतवाण और अनूप साह को इस वर्ष पद्म सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा हुई है. इन तीनों ही व्यक्तित्वों को बधाई. सरकारी सम्मान के बिना भी ये तीनों ही अपनी-अपनी विधाओं के उत्कृष्ट व्यक्तित्व हैं.
लेकिन इसके साथ ही उत्तराखंड में प्रख्यात लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी को पद्म सम्मान न दिये जाने को लेकर भी बहस चल रही है. इस मसले पर सितंबर 2015 के युगवाणी में एक लेख मैंने लिखा था. उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और हरीश रावत मुख्यमंत्री थे. तब से अब तक सिर्फ राज्य की सरकार में ही बदलाव हुआ,बाकी बातें जस की तस हैं. चूंकि यह बहस पुनः चल रही है, इसलिए सितंबर 2015 का लेख पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ :
पद्म के छद्म में नरेंद्र सिंह नेगी को मत घसीटिए
-इन्द्रेश मैखुरी
12 अगस्त को उत्तराखंड के प्रख्यात लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के जन्मदिन के अवसर पर देहरादून में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री हरीश रावत की मौजूदगी में नेगी जी को पद्मश्री से अलंकृत करने की मांग मंच से उठायी गयी. इस तरह की मांग कोई पहली बार नहीं उठायी गयी. तकरीबन हर वर्ष जब पद्म पुरुस्कारों के लिए नाम, राज्य सरकार द्वारा केंद्र को भेजे जाते हैं तो यह मांग भी सुनाई देती है. जैसे हर वर्ष यह मांग अनिवार्यतः सुनाई देती है, वैसे ही हर वर्ष इसका अनसुना किया जाना भी एक अनिवार्य रस्म है. फेसबुक पर इस मांग के लिए एक ग्रुप भी बनाया गया है.
उत्तराखंड के लोकसंगीत में नरेंद्र सिंह नेगी का अवदान अद्वितीय है. वे लोक के सौन्दर्य, प्रेम, स्नेह, ममत्व से लेकर उसके दुःख-दर्द तक अपने गीतों में उकेरने वाले गीतकार और गायक हैं. लुटेरी सत्ता के बरक्स मजबूत प्रतिपक्ष या जनता का पक्ष भी, उन्होंने अपने गीतों को बनाया है. लोक के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के चलते बहुतेरी बार नरेंद्र सिंह नेगी ने अपनी व्यावसायिक सीमाओं का अतिक्रमण किया है. इस तरह देखें तो वे गीतों और गायकी में उत्तराखंडी लोक के सच्चे प्रतिनिधि हैं. यदि लोक के प्रति अवदान या जनता के पक्ष में मजबूती से खड़े रहने के लिए कोई नागरिक सम्मान मिलता हो तो नरेंद्र सिंह नेगी उसके निर्विवाद हकदार हैं.
सवाल तो यहीं से खड़ा होता है कि पद्म पुरुस्कार जैसे पुरुस्कार क्या लोक या जन के पक्ष को मजबूत करने वालों को दिए जाते हैं? यदि ऐसा होता तो अटल बिहारी वाजपयी के प्रधानमंत्रित्व काल में उनके घुटने का ऑपरेशन करने वाले और मनमोहन सिंह के दिल का ऑपरेशन करने वाले डाक्टरों को ये पुरुस्कार कैसे प्राप्त होते?
समाज के लिए विशिष्ट योगदान करने के नाम पर दिए जाने वाला पद्म पुरुस्कार 2010 में अमेरिका में रहने वाले एक सिख व्यवसायी संत सिंह चटवाल को दिया गया. ये हजरत केवल नाम से संत हैं. देश में बैंकों के साथ धोखाधड़ी,जमीन कब्जाने समेत तमाम मामले इन पर, यह सम्मान दिए जाते समय चल रहे थे. अब एक प्रकरण में अमेरिका में इन पर अभियोग सिद्ध हो चुका है.
इस वर्ष के पुरुस्कारों की सूची में रजत शर्मा का नाम भी शामिल है. उनका समाचार चैनल जिस तरह के प्रसारण करता है क्या उसे देश के लिए किसी योगदान की श्रेणी में रखा जा सकता है? यदि उनका चैनल जो प्रसारित करता है वह देश के लिए योगदान है तो सारे झाड-फूंक करने वाले, तांत्रिक, ओझा इन पुरुस्कारों के हकदार हैं. रजत शर्मा को पद्म श्री दिए जाने से कुछ ही माह पूर्व उनके चैनल में काम करने वाली एक महिला न्यूज़ एंकर ने आत्महत्या करने की कोशिश की. अपने सुसाइड नोट में उक्त एंकर ने रजत शर्मा और उनकी पत्नी पर ऐसे गंभीर आरोप लगाए,जिनकी चर्चा तक सभ्य समाज में संभव नहीं है. वे आरोप रजत शर्मा और उनकी पत्नी को जेल पहुंचाने के लिए पर्याप्त थे. लेकिन वक्त का फेर देखिये,देश में भाजपा की सरकार आई और जेल के बजाय रजत शर्मा राष्ट्रपति भवन गए पद्म श्री लेने. उक्त उदाहरण अपवाद नहीं हैं, बल्कि नाकाबिल लोगों की यह फेरहिस्त उतनी ही लम्बी है, जितना इन पुरुस्कारों का इतिहास.
उक्त उदाहरणों से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि पद्म पुरुस्कार घोषित तौर पर भले ही समाज के लिए उत्कृष्ट योगदान करने वालों को दिए जाते हों परन्तु वास्तव में इनके पीछे लॉबिंग, राजनीतिक वरदहस्त आदि-आदि अनेक फैक्टर काम करते हैं. जब इन पुरुस्कारों के लिए नामों की संस्तुति राज्य सरकार करती है तो यह स्पष्ट है कि वह अपने राजनीतिक गुणा-भाग के हिसाब से ही नाम अग्रसारित करेगी.
यह तो हुई पद्म सम्मानों के पीछे की राजनीति. अब नरेंद्र सिंह नेगी पर वापस लौटते हैं.
राज्य बनने से पहले भी उत्तराखंड के लोगों को पद्म पुरुस्कार मिले हैं. राज्य बनने के बाद मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों वाली रफ़्तार से ही पद्मश्रीयों की संख्या भी उत्तराखंड में बढ़ी है. ये जितने पद्म पुरुस्कार धारी हैं, इनमें से कौन ऐसा है जिसे उत्तराखंडी जनमानस में नरेंद्र सिंह नेगी जैसा सम्मान और स्नेह हासिल है? बहुत जोर देने पर भी नरेंद्र सिंह नेगी से अधिक या उनके आसपास के सम्मान वाले पद्म पुरुस्कार धारी का नाम सोच पाना मुश्किल है. नरेंद्र सिंह नेगी के पास तो यह हौसला था कि वे भ्रष्ट सत्ता के खिलाफ “नौछ्म्मी नारेण” गाने के लिए सरकारी नौकरी का त्याग कर आये. ऐसा साहस या दुस्साहस हमारे ‘पद्म’ धारियों के बूते का नहीं है. इसलिए जनमानस की निगाह में जो सम्मान नरेंद्र सिंह नेगी का है, वह सम्मान देश भर में प्रचलित सारे पुरुस्कार अपने झोली में भर लेने से भी हासिल नहीं हो सकता.
जरा कल्पना करिए कि यदि नरेंद्र सिंह नेगी ने राजनीतिक सत्ता पर सीधे हमला करते गीत “नौछ्म्मी नारेण” और “अब कथगा खैल्यो” -नहीं लिखे होते तो क्या उत्तराखंड के लोगों के मन में उनके प्रति सम्मान और स्नेह कुछ कम होता? निश्चित रूप में इन दो गीतों को लिखे बगैर भी वे उत्तराखंड के सर्वकालिक महान गीतकार और गायक होते. लेकिन समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए, उन्होंने उक्त दोनों गीत लिखे. ऐसे गीत लिखने और गाने वाले से क्या सत्ता प्रेम करेगी?
सत्ता की बखिया उधेड़ने वालों को, सत्ता अपने हाथों सम्मानित करेगी? यह प्रश्न इसलिए विचारणीय है क्यूंकि जो लोग निरंतर नरेंद्र सिंह नेगी को पद्म श्री देने का अभियान चलाये हुए हैं, उन्हें इस सवाल का जवाब तो देना ही होगा कि क्या वे चाहते हैं कि नरेंद्र सिंह नेगी उसी सत्ता से सम्मान प्राप्त करें, जिसने उन्हें “नौछ्म्मी नारेण” और “अब कथगा खैल्यो” लिखने के लिए विवश किया.
“नौछ्म्मी नारेण” और “अब कथगा खैल्यो” के नित नए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संस्करण पैदा करने वाली सत्ता नरेंद्र सिंह नेगी को पद्म श्री दे भी दे,तो क्या यह नेगी जी को लोक में जो सम्मान प्राप्त है उसमें किसी तरह की अभिवृद्धि करेगा? आखिरकार ऐसी ललक क्यूँ है कि जिसको हम अपने लोक का सर्वोत्कृष्ट रचनाधर्मी मानते हैं उस पर सत्ता से श्रेष्ठता की मोहर लगवाना चाहते हैं!
हम लोकतंत्र में भले ही रहते हों,लेकिन हमारी सोच-समझ का प्रतिनिधित्व सत्ता करती हो,यह जरुरी नहीं है. सत्ता चाहती है कि जिसे वह श्रेष्ठ घोषित करे वह अव्वल तो विरुदावलियाँ गाने वाला हो. यदि चारण-भाट न भी हो तो कम से कम नुकसानदायक तो न हो. यही बात नरेंद्र सिंह नेगी के पक्ष में नहीं है. कांग्रेस और भाजपा, दोनों की ही सत्ता के विरुद्ध गीत लिख कर वे यह तो दर्शा ही चुके हैं कि वे अपनी फनकारी का इस्तेमाल सत्ता का नकाब उतारने के लिए बखूबी कर सकते हैं. तो कोई सत्ता ऐसे व्यक्ति को पुरुस्कार क्यूँ दे जो किसी भी समय उसका शत्रु हो सकता है?
जैसा कि शुरू में ही कहा गया है कि नरेंद्र सिंह नेगी के जन्मदिन के मौके पर जहाँ मंच से नेगी जो पद्मश्री देने की बात उठायी गयी वहां प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत मंच पर विराजमान थे. घोषणावीर मुख्यमंत्री ने अपने वक्तव्य में नरेंद्र सिंह नेगी को पद्म श्री के सवाल पर चुप्पी ही बरती. जो कुछ उन्होंने कहा,उसका लब्बोलुआब यही था कि लोक को ही अपने कलाकारों का सम्मान करना चाहिए.
नरेंद्र सिंह नेगी के प्रति सत्ता प्रतिष्ठान के नजरिये को प्रदर्शित करने के लिए क्या यह पर्याप्त इशारा नहीं है? वरना तो घोषणाओं की बरखा-बहार लाने वाले हरीश रावत यह भी घोषणा कर सकते थे कि वे अगले वर्ष नरेंद्र सिंह नेगी का नाम पद्म श्री के लिए अग्रसारित कर देंगे. लेकिन हरीश रावत ने ऐसा नहीं किया तो इसके निहितार्थ समझिये. साफ इशारा है कि सत्ता, नेगी जी में “अपना आदमी” नहीं पाती है. वह हर समय “नौछ्म्मी नरेण” और “अब कथगा खैल्यो” की पीड़ा और भय महसूस करती है.
आखिरकार नरेंद्र सिंह नेगी का पूरा रचना कर्म लोक के लिए ही तो है. लोक उन्हें सिर-माथे पर बैठाए हुए हैं. जुगाड़बाजी और राजनीतिक लल्लो-चप्पो करके मिलने वाला कोई पुरुस्कार लोक के इस सम्मान से बड़ा किसी हाल में नहीं हो सकता है.
(इन्द्रेश मैखुरी की फेसबुक वॉल से साभार)
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