जिन भारतीय कवियों ने बड़े पैमाने पर बीसवीं शताब्दी के परिदृश्य को प्रभावित किया, नामदेव लक्ष्मण ढसाल उनमें प्रमुख हैं. वे 1949 में आज ही के दिन जन्मे थे. मूलतः मराठी में रचनाएं करने वाले नामदेव (जिन्हें उनके दोस्त प्रेम से नाम्या कहा करते थे) ने दलित समाज के जीवन को अपनी धारदार कविता की विषयवस्तु बनाया और इस के लिए एक बेहद बोल्ड और नूतन भाषा का आविष्कार किया.
एक कवि के अलावा वे एक सामाजिक चिन्तक और कार्यकर्ता भी थे. उन्होंने सत्तर के दशक में दलित पैंथर्स की स्थापना भी की थी.
उनके बारे में मशहूर हिन्दी कवि विष्णु खरे ने एक बार लिखा था – “नामदेव ढसाल मराठी कविता के सर्वकालिक बड़े कवियों में है. आज उसका महत्व अपने समय के तुकाराम से कम नहीं, जबकि तुका ने अंततः ईश्वर-भक्ति के जरिये कुछ सहना ही सिखाया. सवर्णों ने आज तुका को पूर्णतः को-ऑप्ट कर लिया है. नामदेव ढसाल की क्रांतिकारी दलित कविता ने सारी भारतीय भाषाओं की आधुनिक दलित कविता को जन्म दिया. उसने सारे दलित ही नहीं, सवर्ण साहित्य को प्रभावित किया और कर रहा है. यह उसका एक अमर योगदान है.”
15 जनवरी 2014 को उनका कैंसर से निधन हो गया. पहले पढ़िए उनकी एक विख्यात कविता:
डॉ० अम्बेडकर के लिए
-नामदेव ढसाल
आज हमारा जो भी कुछ है
सब तेरा ही है
यह जीवन और मृत्यु
यह शब्द और यह जीभ
यह सुख और दुख
यह स्वप्न और यथार्थ
यह भूख और प्यास
समस्त पुण्य तेरे ही हैं
विष्णु खरे ने अपने अंदाज़ में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा था:
“दिलीप चित्रे ने यूरोप, विशेषतः जर्मनी, को नामदेव और दलित साहित्य से परिचित करवाने का बीड़ा उठाया. इसमें हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय के प्राध्यापक-द्वय ग्युन्टर ज़ोंठाइमर तथा लोठार लुत्से और फ़िल्मकार-फ़ोटोग्राफ़र श्टेगम्युलर ने अपने अनुवादों और चित्र-पुस्तकों के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
दिलीप चित्रे का तो मानना था कि यदि भारत से किसी कवि को नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए तो एकमात्र नामदेव ढसाल को.
यदि उसके अनुवाद कुछ और यूरोपीय भाषाओँ में हो जाते तो शायद वह संभव भी था. स्वयं मेरी धारणा यह है कि आज के भारत में नामदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर से बड़ा प्रासंगिक कवि है.”
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