कॉलम

सार संसार एक मुनस्यार

मुनस्यारी को जानने के लिए इसके नाम का अर्थ जान लेना ही काफी है. मुनस्यारी का मतलब है ‘बर्फ वाली जगह’. अपने नाम के ही अनुरूप मुनस्यारी को उसकी खूबसूरती और आबोहवा के कारण ‘सार संसार एक मुनस्यार’ की उपमा भी दी जाती है यानि सारे संसार की खूबसूरती एक तरफ और मुनस्यारी की खूबसूरती एक तरफ. एक प्रकृति प्रेमी की दृष्टि से मुनस्यारी पर उपरोक्त उपमा एकदम सटीक बैठती है क्योंकि मुनस्यारी का कुदरती नजारा आपको अपनी ओर आकर्षित ही नहीं करता बल्कि मानो चुंबक की तरह आपको अपनी तरफ खींचता है.

फोटो: जयमित्र सिंह बिष्ट

मुनस्यारी उत्तराखंड के दूरस्थ जिले पिथौरागढ़ में दिल्ली से लगभग 620 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मुनस्यारी का सबसे बड़ा आकर्षण इसके ठीक सामने स्थित पंचाचूली पर्वत श्रृंखला है जो दरअसल पांच अलग-अलग हिमालयी चोटियां हैं. ये एक तरह से मुनस्यारी की जान हैं. अगर आप मुनस्यारी में हों और आपको अपने ठीक सामने नीले खुले आसमान में बर्फ से ढकी पंचाचूली श्रृंखला देखने को मिल जाए तो आप प्रकृति के हिसाब से वाकई किस्मत के धनी हैं. कई लोग तो पंचाचूली के नजर आ जाने मात्र से मुनस्यारी की अपनी यात्रा को सार्थक मान लेते हैं. लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि मुनस्यारी में और कुछ भी नहीं और आप केवल वहां पंचाचूली पर्वतों को ही देखने के लिए जाएं. खालिस प्रकृति प्रेमियों और आम सैलानियों, दोनों के ही लिहाज से वहां देखने व करने को इतना कुछ है कि आप आसानी से वहां हफ्ताभर गुजार सकते हैं.

बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के विद्यार्थी और गंभीर बर्ड वाचर रूपेश गोम्स, जो कि पिछले डेढ़ साल से निरंतर मुनस्यारी और इसकी पारिस्थितिकी और उसमें भी खास तौर पर वहां रहने वाली और वहां प्रवास के लिए आने वाली चिडिय़ाओं पर अध्ययन कर रहे हैं, के अनुसार मुनस्यारी के इकोसिस्टम में नौ विभिन्न प्रकार के हैबिटाट (पर्यावास) मुनस्यारी को एक अनूठी जगह बनाते हैं जहां इतने सारे प्राकृतिक पर्यावरण एक ही जगह पर एक साथ मौजूद हैं.

यहां के वनों में मुख्य रूप से बांज, भोजपत्र, बुरांश, देवदार, हॉर्स चेस्टनेट और जूनीपट के पेड़ हैं. दुर्लभ जीव जतुंओं में यहां कस्तूरी मृग, काकड़, घुरल, यैलो थ्रोटेड मार्टेन आदि शामिल हैं. पक्षियों व चिडिय़ाओं के लिए भी मुनस्यारी स्वर्ग से कम नहीं है. पक्षी विशेषज्ञों ने यहां पांच करह के फेजेंट, पांच तरह के लाफिंग थ्रशेज, पांच तरह के रैप्टर्स (बाज), पांच किस्म के वार्बलर्स, पांच तरह के रोजफिंच, पांच तरह के थ्रशेज, और कई तरह के टिट्स, फिंच, बुलबुल, मैगपाई व मोनाल देखने को मिलते हैं. चिडिय़ाओं की इतनी तरह की किस्में बरबस ही बर्ड वाचिंग के किसी भी शौकीन को मुनस्यारी की ओर खींच लेती हैं.

मुनस्यारी की एक और खूबी यह है कि आप समुद्र तल से 7200 फुट की ऊंचाई से तकरीबन 11,500 फुट की ऊंचाई तक का सफर महज दो से तीन घंटे की ट्रैकिंग के जरिये तय कर सकते हैं. जी हां, हम ‘खलिया टॉप’ ट्रैक की बात कर रहे हैं. यह जगह मुनस्यारी से महज 8 किलोमीटर के सड़क मार्ग और 6 किलोमीटर के ट्रैक के फासले पर है. इसे केवल मुनस्यारी नहीं, बल्कि समूचे उत्तराखंड की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक माना जाता है. यही वजह है कि उत्तराखंड पर्यटन ने खलिया टॉप को वर्ष 2016 का ‘ट्रैक आफ द ईयर’ घोषित किया था.

खलिया टॉप के एल्पाइन नेचर की शुरुआत मुनस्यारी के भुजानी से हो जाती है जहां पर पहुंचकर आपको लगता है मानो आप वाकई बादलों से भी ऊपर ऊंचे पहाड़ों में पहुंच गए हैं. दरअसल खलिया टॉप एक बहुत बड़ा बुग्याल है. बुग्याल उच्च हिमलायी क्षेत्रों में स्थित बुग्गी घास के एक बड़े विस्तार में फैले मैदान को कहते हैं जो कहीं-कहीं समतल होते हैं अऔ कहीं असमतल. खलिया की अधिकतम ऊंचाई तकरीबन 13000 फुट की है और यहां से पंचाचूली, नंदा देवी, नंदा कोट, नामिक आदि हिमालयी चोटियों का नयानाभिराम नजारा देखने को मिलता है. खलिया टॉप पर कई तरह के साहसिक खेलों का भी आयोजन होता रहता है, जैसे कि स्कीइंग, डाउन हिल माउंटेन ट्रैल बाइकिंग (साइक्लिंग), पैराग्लाइडिंग वगैरह यहां होते रहते हैं.

फोटो: जयमित्र सिंह बिष्ट

मुनस्यारी से जो लोग खलिया तक नहीं जा सकते, उनके लिए बुग्याल का अनुभव लेने के लिए एक छोटा बुग्याल मुनस्यारी में भी आईटीबीपी प्वाइंट के पास स्थित है. जानवरों व पक्षियों को देखने के लिए एक उपयुक्त स्थान हुमान मंदिर के पास ‘बेटुली धार’ नाम से है. बेटुली धार का ढलान भी स्नो स्कीइंग के लिए उपयुक्त माना जाता है. यहां समय-समय पर स्कीइंग के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते रहते हैं. खलिया टॉप व बेटुली धार के अलावा मेसर कुंड व थामरी कुंड भी मुनस्यारी के प्रमुख ट्रैकिंग मार्गों में से हैं. इन सारे रास्तों पर चलते हुए पंचाचूली की चोटियां लगातार आपके साथ बनी रहती हैं. अगर आप मुनस्यारी में हैं तो यहां की प्राकृतिक सुंदरता के अलावा जनजातीय (ट्राइबल) म्यूजियम को भी जरूर देखने जाएं. यह म्यूजियम यहां के एक स्थानीय निवासी शेर सिंह पांगली के निजी प्रयासों से सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बन गया है. इस म्यूजियम में प्राचीन स्थानीय वस्तुओं का संग्रह किया गया है. इनमें यहां के स्थानीय मूल निवासियों, जिन्हें ‘शौका’ भी कहा जाता है, से जुड़ी वेशभूषा, खान-पान का साजो-सामान, धातुओं, बर्तनों, आभूषणों व रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी वस्तुओं को प्रदॢशत किया गया है. यह म्यूजियम यहां आने वाले सैलानियों को तो आकर्षित कर ही रहा है, साथ ही यहां के जनजीवन पर अनुसंधान करने वाले शोधार्थियों को भी फायदा पहुंचा रहा है.

मुनस्यारी दरअसल मिलम, रालम व नामिक जैसे ट्रैकों की शुरुआत का बेस भी है. ‘मिलम’ तो यहां से किया जाने वाला सबसे लोकप्रिय ट्रैक है जो आपको इस इलाके की सुंदरतम जोहार घाटी की सैर कराता है. इस ट्रैक का रास्ता भारत-चीन सीमा के काफी नजदीक है. सुरक्षा कारणों से आप सीमा तक तो नहीं जा सकते लेकिन मिलम गांव तक जरूर जा सकते हैं. लेकिन उसके लिए मुनस्यारी में एसडीएम कार्यालय से इसके लिए पहले परमिट लेना होता है. चीन से हुई लड़ाई से पहले तो यहां के स्थानीय निवासी व व्यापारी चीन-तिब्बत सीमा के उस पार स्थित ‘ज्ञानमा’ मंडी से बेरोकटोक व्यापार किया करते थे. लेकिन 1962 में हुई लड़ाई के बाद से यह व्यापार बंद हो गया.

मुनस्यारी जाने वाले सैलानियों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है. इसी वजह से स्थानीय लोग भी पर्यटन व्यवसाय और साहसिक गतिविधियों से जुड़ रहे हैं. इनमें बीरेंद्र बृजवाल और सुरेंद्र पवार जैसे लोग प्रमुख हैं.

फोटो: जयमित्र सिंह बिष्ट

कैसे व कहां

दिल्ली की तरफ से आने वाले सैलानियों के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जहां से मुनस्यारी 275 किलोमीटर दूर है. निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर का है. यहां से हफ्ते में पांच दिन एयर इंडिया की उड़ानें उपलब्ध हैं. सड़क मार्ग से मुनस्यारी पहुंचना भी एक रोमांचकारी अनुभव है और आजकल बाइकर्स व साइक्लिंग के शौकीनों के बीच यह रास्ता काफी लोकप्रिय हो गया है. सड़क मार्ग से काठगोदाम के बाद अल्मोड़ा-सेराघाट-चौकोड़ी व थल होते हुए मुनस्यारी पहुंचा जा सकता है. रास्ता लंबा है इसलिए चौकोड़ी में रात्रि विश्राम किया जा सकता है. चौकोड़ी से आगे थल से नामिक व हीरामणि ग्लेशियरों से निकलने वाली रामगंगा नदी यात्रा में शीतलता प्रदान करती है. अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीनों में इस नदी का पानी फिरोज़ी हरा हो जाता है. थल के आगे और मुनस्यारी से पहले बिर्थी जलप्रपात भी एक प्रमुख पर्यटक स्थल है. यहां रुकने के लिए कुमाऊं मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस भी है.

मुनस्यारी में रुकने के इंतजाम के लिए आप

www.kmvn.gov.in और www.himalayanglamping.com को टटोल सकते हैं. इसी तरह खलिया टॉप में रुकने के लिए 10,400 फुट की ऊंचाई पर एल्पाइन रिजॉर्ट है. इसके अलावा आप www.cosmostrek.com और www.khaliyatop.com पर बुकिंग करा सकते हैं.

(यह आलेख पहले ‘आवारा मुसाफिर’ पत्रिका में छप चुका है. पत्रिका ने संपादक मंडल ने इसे प्रकाशित करने की अनुमति दी, इसके लिए उनका आभार.)

वाट्सएप पर हमसे जुड़िये : काफल ट्री वाट्सएप्प

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago