उत्तराखण्ड की सीमान्त जोहार घाटी में मिलम के करीबी गांव जलथ में रहने वाले प्रयाग रावत बचपन से ही हिमालय और प्रकृति के प्रेमी हैं. खुद को हिमालय पुत्र कहने वाले प्रयाग रावत के जीवन के शुरुआती 18 साल अपने गांव में कृषि कार्यों में हाथ बंटाते और भेड़-बकरियों के रेवड़ों के साथ बुग्यालों में बीते. शिक्षा पूरी करने के बाद उत्तराखण्ड सरकार में भर्ती हुए तो भी हिमालय और अपने राज्य के लिए कुछ करने का विचार उनके मन में पनपता रहा. (Munsyari House Pahari Products)
साल 2003 से 2010 तक जब वे नैनीताल में पोस्टेड थे तो अक्सर उनके सहयोगी, पर्यटक और जानने वाले उनसे मुनस्यारी की राजमा और जम्बू, गंद्रायणी जैसे मसाले प्राप्त करने की इच्छा रखते. तभी प्रयाग रावत के मन में यह विचार पलना शुरू हुआ कि जोहार घाटी के अनाज, मसालों, जड़ी-बूटियों और हस्तशिल्प को किस तरह देश दुनिया के सामने लाया जा सके. जिससे ये उत्पाद आसानी से अपने चाहने वालों तक पहुंच सकें और सीमांत के ग्रामीणों को आय भी हो.
अपनी सरकारी नौकरी के साथ इस काम को कर पाना प्रयाग रावत के लिए संभव नहीं था. लेकिन जहां कुछ करने की इच्छा हो वहां रास्ते निकल आना ज्यादा मुश्किल नहीं होता. प्रयाग ने इस दिशा में ठोस कदम बढ़ाते हुए जोहार घाटी के ग्रामीणों को जागरूक करना शुरू किया. उनकी माता चन्द्र देवी के संरक्षण में जल्द ही महिला स्वयं सहायता समूह गठित किये जाने लगे. इस तरह पंचाचूली स्वयं सहायता समूह, बुरांश स्वयं सहायता समूह, जय मां काली स्वयं सहायता समूह, कृष्णा स्वयं सहायता समूह गठित हुए. इन समूहों ने स्थानीय उत्पादन, संग्रहण व वितरण का काम शुरू किया. इस तरह ‘मुनस्यारी हाउस’ के ब्रांड ने आकार लेना शुरू किया.
इन स्वयं सहायता समूहों का ब्लॉक में रजिस्ट्रेशन कराया गया और आज ये ट्राइब्स इंडिया के साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी काम कर रहे हैं. दसेक साल पहले इन स्वयं सहायता समूहों ने नैनीताल में प्रदर्शनी लगाकर स्थानीय उत्पादों का प्रसार शुरू किया. आज ये समूह उत्तराखण्ड के कई मेलों में अपने उत्पादों के स्टाल लगते हैं और ट्राइब्स इंडिया इन्हें हर साल दिल्ली हाट के जनजातीय मेले में अपने उत्पादों के प्रदर्शन व बिक्री के लिए आमंत्रित करती है. इस मेले का आयोजन भारतीय जनजाति मंत्रालय द्वारा किया जाता है.
इन स्वयं सहायता समूहों के गठन व ‘मुनस्यारी हाउस’ तक की परिकल्पना में प्रयाग रावत की भूमिका महत्वपूर्ण रही. वे नौकरी से बचे समय में और अपनी यात्राओं के दौरान भी स्थानीय जैविक उत्पादों के शोध में लगे रहते हैं. वे विभिन्न उत्पादों को इकठ्ठा करने से लेकर बीजों का आदान-प्रदान भी करते हैं. उन्होंने स्थानीय उत्पादों को आकर्षक पैकिंग में प्रस्तुत करने की शुरूआत की. उनके हस्तक्षेप से पहले इस इलाके से दाल-मसालों की ही ज्यादा तिजारत होती थी. उन्होंने सुगन्धित पौधों और जड़ी बूटियों के विपणन की दिशा में भी प्रयास किये— रोज मैरी, स्टीविया, कैमेमाइल, कूट, चिरायता, बालछड़ी, हर्बल टी अतीश इत्यादि. वे सुगन्धित पौधों और जड़ी-बूटियों से इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा भी तैयार कर बेचते हैं.
प्रयाग रावत बताते हैं कि विगत सालों में मुनस्यारी के ऊनी उत्पादों में अंगूरा की मांग में काफी तेजी आई है. पहले अंगूरा सिर्फ सफेद रंग का ही हुआ करता था. काले-भूरे अंगूरा की मांग को देखते हुए कुछ लोगों ने जंगली भूरे खरगोश के साथ सफेद पालतू खरगोश की ब्रीडिंग की कोशिश की और इसमें कामयाब भी रहे. नतीजे के तौर पर काला-भूरा अंगूरा मुनस्यारी में भी बनने लगा. वे बताते हैं कि आज मुनस्यारी घाटी के दर्जन भर गाँवों के कई परिवार अंगूरा टोपियों, मोजों, दस्तानों, मफलर, पश्मीना, पंखी, स्वेटरों का उत्पादन कर ही आजीविका कमा रहे हैं. ये सभी उत्पाद हथकरघों या हाथ द्वारा बुने जाते हैं.
प्रयाग रावत ने उत्तराखण्ड के विभिन्न इलाकों से 65 तरह की राजमा ढूंढने में कामयाबी पायी. वे बताते हैं कि इनमें से 10 किस्म की राजमा ही बाजार के लिए उपलब्ध हो पाती है. प्रयाग अपनी माता द्वारा संचालित इन प्रोजेक्ट्स की रीढ़ हैं. पहाड़ी उत्पादों के लिए अपने उल्लेखनीय कामों के बदौलत वे कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं.
प्रयाग रावत द्वारा विकसित ब्रांड ‘मुनस्यारी हाउस’ के पास आज कई तरह की दालों, मसलों के अलावा, थुलमा, दन, कालीन, चुटका और ढेरों ऊनी उत्पाद हैं. इसके अलावा ताम्बे, रिंगाल के उत्पादों के साथ ऐपण चित्रकला और तिब्बती कुत्ते भी. मुनस्यारी हाउस आज हर उस उत्पाद को अपने चाहने वालों को उपलब्ध करवाता है जो की उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं.
अब प्रयाग रावत इको टूरिज्म की दिशा में गंभीर प्रयास कर रहे हैं. वे जोहार घाटी में ट्रेकिंग, माउन्टनियरिंग, बर्ड वाचिंग जैसी गतिविधियों को भी बढ़ावा दे रहे हैं. उनके सभी कार्य उत्तराखण्ड के दुर्गम गाँवों में स्वावलम्बन के मॉडल हैं. इस तरह के मॉडल बड़े पैमाने पर विकसित किये जाएँ तो सुदूर गाँवों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है और पलायन को भी रोका जा सकता है.
मुनस्यारी हाउस के जैविक उत्पादों के लिए इन नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है : +91-9557777264, +91-8394811110
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…