शाखें रहेंगी तो फूल भी पत्ते भी आयेंगे,
ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आयेंगे
(Munsiyari Dhapa Village Children’s Painting)
शायद कुछ यूं ही कहना चाह रहे हैं ये कल के नन्हें पौंधे, अपने इन्हीं जज़बातों को सुनहरे रंगों से पन्नों में उतारा है. अपने आंखों से तबाही के बादलों को फटते देखने के बावजूद भी इन बच्चों की आंखों में उम्मीद के बादल मौजूद हैं कि शायद समाज की कोई तो ऐसी व्यवस्था होगी जो फिर से इनको इनके घरों में सुरक्षित पनाह देने में सक्षम हो.
जीवन के जिस प्रारंभिक दौर में बच्चे अपनी खुले आंखों से सुनहरे भविष्य के सपने संजोते है, उन्हीं खुली आंखों से हरे भरे खेत-खलिहान और खुशहाल गांव को यकायक जमीनोदस्त होते हुए इन बच्चों ने देखा है..
अपने घरों को छोड़कर जंगलों, टैंटों, स्कूल और पंचायत घरों में रह रहे ये 52 से अधिक परिवार के होनहार बच्चे पिथौरागढ़ के तिब्बत सीमा से लगा हुआ सीमांत गांव धापा से संबंध रखते हैं, जिनका भविष्य अधर में न पड़ जाये यह सरकार और समाज की अहम जिम्मेदारी है. अपने ही गांव में शरणार्थियों की तरह रह रहे इन बच्चों ने अपनी आपबीती को पेंटिंग के माध्यम से बताने की कोशिश की है.
(Munsiyari Dhapa Village Children’s Painting)
भौतिकवाद का शिकार मनुष्य ने विकास के नाम पर या तो प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया या फिर पर्यावरण के खिलाफ गैरजिम्मेदाराना रुख अख्तियार किया. जिसके परिणामस्वरूप आज मनुष्य विनाशकारी परिणामों को भुगत रहा है और इस विनाश के जीते जागते उदाहरण को इन मासूम बच्चों ने अपने आंखों के सामने देखा है. अत: धापा गांव की तरह और गांवों के घर, बस्तियां खेत खलिहान तबाह न हो, इस हेतु इन नन्हे बच्चों ने अपने हाथों में कलम उठाई और पर्यावरण के प्रति जागरूक और उदार रहने का संदेश हम सभी को दिया है.
(Munsiyari Dhapa Village Children’s Painting)
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