पिछले महीने ही तो लगन हुआ है सुखिया का. दुल्हनियाँ का नाम है-बसन्ती. गोल-मटोल, बड़ी-बड़ी आँखों और पतले होंठों वाली बसन्ती यूँ तो ज़रा बेढब सी है पर चाल में शहरी नज़ाकत नहीं ख़ालिस देहाती ख़ुशबू है. बात बात पर नाक चढ़ाकर बोलती हुई इसी लड़की ने सुखिया के दिल पर वो छुरियाँ चलाईं कि उसने झट से हाँ कर दी, ब्याह के लिये. चट मँगनी और पट ब्याह. दस दिन में सब हो गया. More Corona Tales by Smita Karnatak
सुखिया चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर का है. बढ़िया कारीगर है. मकान बनाने का ऐसा कोई काम नहीं जो वो न जाने. पहले गाँव देहात में ठेकेदार के साथ मज़दूरी किया और जल्दी ही हेड मिस्तरी का शागिर्द बन गया. और तो और गाड़ी चलाना भी सीख गया है. एक साल तो किसी बनिये की गाड़ी ही चलाई पर उसमें ठीक से गुज़ारा न होते देख अपने पुराने काम की ओर मुड़ गया. हाथ में हुनर हो तो काम की क्या कमी. अब चार साल से दिल्ली में है. आजकल एक धन्ना सेठ की कोठी बनवाने के काम में जुटा है. ठेकेदार बूढ़ा आदमी है, सुखिया ही उसका सारा काम सँभाल रहा है. राजधानी आकर सुखिया भी पूरा शहरी हो गया है. More Corona Tales by Smita Karnatak
“उहाँ तो काम मिलत रहा न बाबू! इहाँ गाँवन में तो गुज़ारा ही मुस्किल रही.” उसकी अम्मा रामवती कहती.
“पिछली बार आए रहा तो सबके लिए लत्ता कपड़ा लाय रहा. दुई सौ रुपल्ली हमको दिये रहा अलग से.” कहते हुए उसके स्वर में बेटे के लिए ढेरों प्यार उमड़ आता.
ब्याह का कामकाज दो-तीन दिन तक चलता रहा. दिल्ली शहर में इन बरसों में कमाए पैसों से अच्छी खासी रौनक़ हो गई और पैरों में महावर रचाए, हाथभर घूँघट डाले नकचढ़ी बसंती सुखिया के जीवन में सचमुच वसंत की पहली बयार सी दाखिल हो गई.
दस दिन बाद सुखिया दिल्ली लौट आया है. सेठजी की कोठी का काम तेज़ी से चल रहा है. उनकी दिली तमन्ना है कि दीवाली तक किसी भी तरह काम पूरा हो जाए तो वे नए घर में सबको दीवाली की एक शानदार पार्टी दें.
सुखिया ने गोविंदपुरी की एक घिचपिच सी गली में एक कोठरी किराए पर ली है. न हवा आती है न धूप. सीलन से दीवारों का प्लास्टर उखड़े एक ज़माना गुज़र गया. बाहर निकलते ही गंदगी से बजबजाते नालों की दुर्गंध से चलना दूभर है. लेकिन यहाँ अपनी तरफ़ के कई लोग हैं इसलिये सुखिया भी यहीं टिका हुआ है. सुखिया को तो किसी से मिलने का समय भी नहीं है इसलिये जब तक अकेला है ठीक ही है. दुआ-सलाम हो जाती है आते-जाते सबसे. लेकिन अब कहीं और कमरा देखना पड़ेगा. आख़िर किसी दिन तो बसंती को दिल्ली लाएगा कि नहीं! ऐसी दमघोटूँ जगह पर उसकी बसंती कैसे रहेगी? More Corona Tales by Smita Karnatak
फागुन के महीने के साथ होली के रंगों ने गाँव की हवा में मादकता घोलनी शुरु कर दी. इधर सेठ के फ़ार्महाउस से आकर सारा दिन धूल से अटा पड़ा सुखिया जब रात को बिस्तर पर लेटता है तो गहरी नींद में जाने से पहले गाँव के पोखर के पास देर तक बसंती के साथ धूल में लोटता रहता है और आख़िरकार नींद में डूब जाता है.
गाँव से वापस दिल्ली आने से पहले सुखिया अपनी नकचढ़ी को एक छोटा फ़ोन दे आया था. घर के कामकाज निबटाकर बसंती किसी बहाने से दोपहर में या तो छत पर चली जाती या नीम के पेड़ के नीचे. उससे बात करते हुए वो भूल जाता है कि आज आलू की तरकारी में नमक कम हैं. परसों की ही तो बात है. दोपहर में खाना खाने की छुट्टी हुई तो सुखिया अपने बाक़ी साथियों के साथ खाना निबटाकर बैठा ही था कि महेश ने आदतन फ़ोन पर आने वाले चुटकुले सुनाने शुरु कर दिये. इन दिनों चीन में फैली एक बीमारी की बड़ी ख़बर है और उसपर चुटकुले भी ख़ूब बन रहे हैं. More Corona Tales by Smita Karnatak
“कोरोना नाम है भैय्या उस बीमारी का.” महेश ने ज्ञान बघारा.
“हमने तो करीना सुनी है या कटरीना, ये कोरोना वरोना ना जानते हम,” और रामखिलावन ज़ोर से हो हो कर अपने काले दाँतों के साथ ठहाका मारकर हँस दिया. तभी सुखिया का फ़ोन बजा. उसके होंठों पर मुस्कान तैर गई. थोड़ा अलग जाकर सुखिया बात करने लगा, पीछे से हँसी की आवाज़ें आ रही थीं.
“का बात है, आज बड़ा हँसी ठठ्ठा चल रहा है?” बसंती ने कहा.
“हाँ, कोरोना का बात चल रहा है.” सुखिया ने हँसते हुए जवाब दिया.
“कौन कोरोना?”
“तुम्हारा सौत है,” कहकर सुखिया ज़ोर से हँस दिया.
“जाइए, ऐसा ही मज़ाक़ करते रहते हैं.”
“अरे मज़ाक़ का बात ही है. अच्छा ई बताओ कि तुम अम्मा से झगड़ा उगड़ा तो नहीं की हो ना? कुछ करना नहीं वरना लगायेंगे आकर दुई लप्पड़ तुमको,” कहते हुए सुखिया का स्वर इतना मीठा हो गया कि मिसरी भी ससुरी फीकी लगे उसके आगे.
“अरे भैय्या! भौजी से बाद में बतिया लेना. तनिक हियाँ तो आव, देइखो ई महेस क्या दिखा रहा है फ़ोन पर. ग़ज़ब का चीज़ है,” रामखिलावन महेश के फ़ोन पर कोई वीडियो देखकर फिर से मुँह फाड़े हँस रहा था. More Corona Tales by Smita Karnatak
“अच्छा, तुमसे बाद में बात करते हैं रात को, ठीक है ?”
सुखिया वापस आकर अपने साथियों के साथ बैठ गया. रामखिलावन ने सुरती मलकर तैयार कर दी थी जिसे दाँतों के बीच दबाकर सुखिया भी उनकी बातों में शामिल हो गया.
***
सेठ जी का बेटा-बहू विदेश में रहते हैं. दोनों आर्किटेक्ट हैं. बहू को चार महीना पहले ही बेटी पैदा हुई है. जचगी के बाद देखभाल के लिए उसने अपनी माँ को बुलवा लिया था. दो साल से किसी न किसी वजह से दोनों इंडिया नहीं आ पाए थे. इसबार भी बहू तो आ नहीं पाई, सो बेटा आ रहा है.
सेठजी का ड्राइवर होली पर घर क्या गया, अब तक आने का नाम ही नहीं लेता. बड़ी मुश्किल है. सेठजी तो खुद ड्राइव करके चले जाते हैं लेकिन असली परेशानी तो मैडम की है. खाने पीने की शौक़ीन मैडम पिछले कई सालों से मुश्किल से ही चल पाती हैं. परहेज़ उनसे होता नहीं. आर्थराइटिस के मारे घर की दूसरी मंज़िल में जाना भी दूभर हो गया है. कहीं जाना हो तो एक भरोसेमंद ड्राइवर चाहिये.
होली के ठीक दो दिन बाद बारह तारीख़ को विनीत का विमान सुबह दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा.जब से विनीत विदेश गया है तबसे उसे धूल धक्कड़ से एलर्जी रहने लगी है इसलिये उसने होली के बाद आना बेहतर समझा है. उस दिन सेठजी सुखिया को ही बतौर ड्राइवर विनीत को लिवाने गये. सेठजी को पता है कि सुखिया गाड़ी चलाना भी अच्छी तरह से जानता है. कभी कभी ठेकेदार की पुरानी सी गाड़ी चला कर उनके घर आता है. एयरपोर्ट पर गाड़ी खड़ी करनी की मुश्किल रहती है. सुखिया रहेगा तो सुविधा रहेगी. More Corona Tales by Smita Karnatak
एक अनसुनी बीमारी के अब गुपचुप यहाँ भी दस्तक देने की ख़बर तो है लेकिन माहौल में कोई अफ़रातफ़री नहीं है, उल्टे लोगों को इसके बारे में चुटकुले सुनाने और चीन को गरियाने का अवसर मिल गया है. ख़बरें हैं कि चीन में फँसे छात्रों को देश वापस लाया जा रहा है. बाक़ी सब ठीक है. देखा नहीं अभी होली पर कितनी भीड़ थी बाज़ारों में? इतना बड़ा देश है, दो-चार लोगों को ये बीमारी हो भी गई तो क्या? उससे ज़्यादा तो हर साल हमारे यहाँ डेंगू और टीबी से लोग मर जाते हैं. चिंता की कोई बात नहीं है. ये चीनी लोग तो जाने क्या अंड-बंड साँप, बिच्छू, चमगादड़ खाते रहते हैं. अब भुगतो!
ज़िंदगी आराम से कट रही है. सब कुछ अपनी रफ़्तार से चल रहा है. बस एक सेठजी की कोठी के काम में और तेज़ी आ गयी है. बेटे को बीस दिन में वापस जाना है. वो चाहता है कि फ़िनिशिंग के काम में कोई गड़बड़ न हो.
सेठजी के साथ विनीत रोज़ ही कोठी के काम को देखने आता रहा है पर इधर दो दिन से नहीं आ पाया. चार-पाँच दिनों से बुखार के साथ थोड़ी खाँसी है. मौसम भी तो बदल रहा है. ऊपर से दस साल से विदेश में रहते-रहते धूल फाँकने की आदत भी नहीं रही. सेठजी को भी इस बीच किसी काम से दो-तीन दिन के लिये मुम्बई जाना है. दरियादिल आदमी हैं. सबका ख़याल रखते हैं. ड्राइवर न आने से परेशान हैं. किसी भी अनजान आदमी को काम पर रखते हुए डरते हैं. आजकल तो ऐजेंसी से आने वालों का भी कोई ठिकाना नहीं रहता. सोच रहे हैं जब तक कोई पुख़्ता इंतज़ाम नहीं होता तब तक अगर सुखिया को ही कुछ दिनों के लिए ड्राइवर रख लें तो कैसा रहे. सीधा- सादा, भरोसेमंद आदमी है. ज़िम्मेदारी से काम करता है. कल ही ठेकेदार से उसे कुछ दिनों के लिये काम से छुट्टी दिलवा देंगे ताकि वो रोज़ बंगले पर आ सके. आज शाम बुलाया है उसे बंगले पर. कल से ही आ जाय तो ठीक है. उनको तो वैसे ही फ़ुर्सत नहीं होती.
कौन कह सकता था कि दिनभर काम पर रहने के दौरान धूल में सना ये दुबला-पतला ही सही पर बाँका नौजवान सुखिया ही है. साइट के काम से निपटकर नहा-धोकर अच्छे कपड़े पहने जब तक सुखिया बँगले पर पहुँचा तब तक अँधेरा हो गया था. गार्ड ने बताया कि साहब छोटे सर जी को लेकर डॉक्टर के पास गये हैं, आते ही होंगे. गार्ड भी ज़िला हरदोई का रहने वाला है इसलिये परदेस दोनों को इलाकाई आत्मीयता से पास ले आया है. More Corona Tales by Smita Karnatak
सुखिया गार्ड के साथ गेट पर बैठकर बतियाता सेठ और उनके बेटे की प्रतीक्षा करने लगा. मानवती बंगले में अपना शाम का काम ख़त्म कर बाहर निकली और ब्लाउज़ में खोंसा हुआ गुटखा निकालकर एक ही बार में पूरा गटक कर उसका रैपर वहीं हवा में उछालती अपनी लाल चप्पलें फटकारती हुई सामने से निकल गई. गेट पर बैठे दो फ़ालतू आदमियों को देखने की न उसे फ़ुर्सत थी न उसने ज़रूरी समझा. उसका मरद भी लौटता होगा किसी ठेके पर से झूमता हुआ. क्या पता लौटे ही ना.
देर होती देख बसेसर ने जेब से बीड़ी का एक बंडल निकाला ही था कि सामने से सेठजी की गाड़ी आती दिखाई दी. हड़बड़ाकर बसेसर ने बंडल वापस जेब में ठूँसा और तत्परता से गेट खोलने दौड़ा. सुखिया भी इतनी देर से बैठा अलसा रहा था. नींद से अचानक जागता हुआ वो भी गेट का दूसरा सिरा पकड़कर खड़ा हो गया. सेठजी ने गाड़ी पोर्च में ले जाकर खड़ी कर दी. सुखिया भी पीछे पीछे चला गया.
“नमस्ते सर जी!” सुखिया छोटे साहब से मुख़ातिब हुआ.
“कैसे हो सुखिया?” विनीत ने कुछ थकावट से कहा.
कितने कमजोर हो गये हैं चार ही दिन में, सुखिया ने सोचा.
विनीत अपनी सीट से उठने लगा तो गोद में रखी दवाइयों का एक छोटा पैकेट नीचे गिर गया. सुखिया की सहज देहाती संवेदना ने झट से दवाइयाँ उठाकर एक हाथ से विनीत की कमजोर बाँह को थाम लिया.
“मैं ठीक हूँ.” विनीत ने कृतज्ञता से उसकी हथेली को दबाते हुए कहा.
बाप-बेटे घर के भीतर दाखिल हो गए. सुखिया बाहर टहलता रहा. थोड़ी देर में सेठजी को अचानक याद आया तो बाहर सुखिया के पास आये.
“अरे, मैं तो भूल ही गया था. ऐसा करो तुम कल से यहीं आ जाना सुबह. ठेकेदार से मैंने बात कर ली है. दस-पंद्रह दिन गाड़ी चला लोगे ना?” सेठजी ने सुखिया से अनुकूल उत्तर पाने की आशा में पूछा.
सुखिया पहले थोड़ा हिचकिचाया लेकिन उससे ना कहते नहीं बना. “जी, ज़रूर आ जाएँगें.” हाथ जोड़े हुए सुखिया ने कहा. मन में फ़ार्महाउस में बने नौकरों के कमरों का लालच भी है. बंगले पर सीधा आयेगा तो सेठजी से बात कर सकता है. पिछले महीने ही एक कमरा ख़ाली हुआ है, अगर वो सुखिया को मिल जाए तो उस बदबूदार कोठरी से छुटकारा मिले. ऐसा हो गया तो समझो जै गंगा मैया की! More Corona Tales by Smita Karnatak
“तो ठीक है, तुम सुबह नौ बजे तक आ जाना. आज तो डॉक्टर साहब को अचानक एक इमरजेन्सी केस देखने जाना पड़ा. कल विनीत का ठीक दस बजे का अपॉइंटमेंट है. मुझे तो सुबह फ़रीदाबाद जाना है एक मीटिंग में. तुम दिखाकर ठीक से ले आना.”
“जी ठीक है. हम सुबह ही पहुँच जाएँगे, आप फ़िकर न करें, हम दिखा लाएँगे सर जी को.” कहकर सुखिया अपने घर के रास्ते लगा.
अगले दिन सुखिया ठीक नौ बजे बंगले पर हाज़िर था. उसका पहुँचना और सेठजी का गेट से बाहर निकलना. उसे देखकर सेठजी को तसल्ली हुई. हाथ हिलाकर उसके अभिवादन का जवाब देते हुए वे निकल गये.
तीन-चार घंटे तो डॉक्टर के यहाँ दिखाने और कुछ जाँच करवाने में ही चले गये. आधे मरीज़ तो ज़ुकाम-खाँसी और बुखार के ही थे क्लीनिक में. एक तो बदलता मौसम ऊपर से होली का त्योहार. खाने-पीने की गड़बड़ी और पानी में भीगने से मरीज़ों की तादाद इन दिनों ज़्यादा ही रहती है. डॉक्टर माथुर सेठजी को पहले से जानते हैं. ठीक से विनीत को देखकर बोले, “वैसे तो कोई घबराने की बात फ़िलहाल नहीं है. वायरल फीवर है, फिर भी एज ए प्रिकॉशनरी मेजर, मैं कुछ टेस्ट लिख रहा हूँ. ये करवा लो, फिर मुझे दिखाओ.”
विनीत डॉक्टर के कमरे से बाहर निकला तो वेटिंग लाउंज में ही सुखिया इंतज़ार करता मिल गया.
एक लंबा यू- टर्न लेकर दूसरी तरफ़ एक जाना-माना आधुनिक टेस्ट लैब है. डॉक्टर माथुर के यहाँ से फ़ोन कर दिया गया था इसलिये विनीत का नंबर जल्दी आ गया. रिपोर्ट मिलने में अभी तीन घंटे बाक़ी थे. विनीत को कमजोरी महसूस होने लगी तो टेस्ट करवाकर सुखिया अपने सर जी को लेकर घर आ गया.
“आप कुछ खाकर दवाई ले लीजिये सर जी! रिपोर्ट तो मैं ले आऊँगा जाकर.” सुखिया ने विनीत को सँभालकर ड्राइंगरूम में लाते हुए कहा.
शाम को सुखिया विनीत की रिपोर्ट लेने चला गया. पहले तो ऐसा नहीं होता था, या क्या पता होता हो. सुखिया कौन सा ऐसे लैब में रोज़ आता है. लेकिन उसने सुबह भी देखा कि हर किसी को भीतर घुसने नहीं दे रहे थे. सारा स्टाफ़ दस्ताने पहने और मुँह पर मास्क लगाये हुए था. एक मोटी सी महिला बार बार सबको एक दूसरे से थोड़ी दूरी पर खड़े होने या बैठने को रह रही थी. गेट पर ही दरबान सबके हाथों को सैनेटाइज करवाकर ही अंदर आने दे रहा था. बड़े लोगों के यहाँ कितनी सफ़ाई रखी जाती है. एक लड़का तो वाइपर से पोछा ही लगाता रहता है यहाँ. More Corona Tales by Smita Karnatak
सुखिया ने रिसैप्शन पर जाकर विनीत का नाम बताकर टेस्ट रिपोर्ट के बारे में पूछा.
“आपकी रिपोर्ट तैयार है लेकिन आप दो मिनट ठहरिये. डॉक्टर साहब आपको खुद देंगे.” रिसैप्शनिस्ट ने जानकारी दी.
सुखिया वहीं स्टील की कुर्सी पर बैठ गया. थोड़ी देर में विनीत का नाम पुकारा गया. रिसैप्शन पर खड़ी एक स्कूली बच्ची सी दिखने वाली नर्स ने उसे डॉक्टर के कैबिन में जाने को कहा. सुखिया भीतर दाखिल हुआ. डॉक्टर साहब भी मुँह पर मास्क लगाए बैठे थे. देखकर उसे थोड़ा अजीब लगा. कल डॉक्टर माथुर के यहाँ तो ऐसे कोई भी नहीं था. यहाँ ज़्यादा ही चोंचले हैं.
“विनीत आनन्द?”
“जी, हमारे मालिक साहब हैं. रिपोर्ट लेने हमें भेजे है.” सुखिया ने कहा.
“ओह,” डॉक्टर ने कुछ सोचते हुए कहा. “ऐसा है, रिपोर्ट तो तुम ले जाओ. मैं डॉक्टर माथुर से बात करता हूँ.” कहकर उन्होंने सुखिया को रिपोर्ट पकड़ा दी.
“और सुनो, ये विनीत अभी घर पर ही होंगे?”
“जी, साहब तो घर पर ही हैं. बुखार तेज रहा उनको.” सुखिया ने बताया.
डॉक्टर एक पल को रुके और फिर सुखिया से बोले, “घर जाकर उनसे कहना कि लोगों से मिले-जुलें नहीं. उन्हें अलग कमरे में रखना.”
“जी, हम मैडम जी को बतला देंगे.” कहकर सुखिया रिपोर्ट लेकर वापस आ गया. विनीत सिगरेट पीने का शौक़ीन है. हमेशा बढ़िया ब्रांड की सिगरेट उसके पास रहती है लेकिन जबसे खाँसी, बुखार ने जकड़ा है तब से मन होते हुए भी नहीं पी सकता. जितनी पास में थीं सब ख़त्म हो गईं हैं. आने से पहले उसने सुखिया को पैसे देकर चुपचाप सिगरेट लाकर देने को कहा है इसलिये अभी सुखिया को ये ख़रीददारी भी करनी है.
आधे घंटे में सुखिया विनीत का सामान लेकर उसके कमरे में हाज़िर था. मैडम को दे नहीं सकता था. रिपोर्ट देने के बहाने वो सीधा विनीत के कमरे में ही चला गया. मानवती को देता तो मैडम से चुग़ली कर देती.
“साहब ये रखी है रिपोर्ट आपकी. डॉक्टर साहब कहे कि वो डॉक्टर माथुर से बात कर लेंगे.” फिर इधर उधर झाँकता हुआ विनीत के पास आया. जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर उसने तकिये के नीचे सरका दिया. विनीत उसके इस दोस्ताने पर मुस्करा दिया. उठकर बैठने की कोशिश में अचानक खाँसी आने लगी तो सुखिया ने उसे सहारा देकर बैठाया. फ़्लास्क में गरम पानी रखा हुआ था.
“गिलास में पानी देना सुखिया! दवाई का टाइम भी हो रहा है.” विनीत ने कहा.
“जी, ये लीजिये.” पानी देते हुए सुखिया ने महसूस किया कि विनीत की हथेलियाँ बुखार से तप रही हैं. उसने दवाई मुँह में डालकर पहला घूँट भरा ही था कि खाँसी का एक ज़ोरदार झटका आया. सारा पानी और दवाई सब एक पिचकारी की तरह मुँह से निकला. सुखिया विनीत को सँभालने लपका. उसकी पैंट और शर्ट भी थोड़ी भीग गई थी लेकिन इस समय मरीज़ को सँभालने की ज़रूरत अधिक थी. वहीं पर रखे एक हैंड टॉवेल से विनीत के कपड़ों पर गिर गए पानी को पोंछकर उसने विनीत को तकिये का सहारा देकर बैठा दिया. More Corona Tales by Smita Karnatak
“ये शर्ट आप बदल लीजिए सर! गीला हो गया है.” सुखिया ने अपने गीले कपड़ों की तरफ़ ध्यान न देते हुए कहा.
“हाँ, तुम ज़रा अलमारी खोलना, सामने ही जो पड़ी हो निकाल दो.” विनीत ने खाँसी से हाँफते हुए सुखिया से कहा.
सुखिया ज़रा हिचकिचाया. लेकिन फिर मरीज़ की हालत देख अलमारी से एक शर्ट निकालकर विनीत को दे दी और गीली शर्ट लेकर विनीत के कहने पर बाथरूम में रख दी.
खाँसी का दौर थम गया गया था. “दवाई खाइयेगा?” सुखिया ने विनीत से पूछा.
“हाँ, लाओ पानी दे दो.” फिर से नई टैबलेट निकालते हुए विनीत ने कहा.
“और कुछ चाहिये आपको? चाय पीजियेगा? मानवती से कह देते हैं.” सुखिया ने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा. गाँव में तो अम्मा बुखार मे अदरक, तुलसी वाली मीठी चाय देती थी बुखार में. उसके साथ डबलरोटी भिगोकर खाने में कितना मज़ा आता था रे! और दिन तो डबलरोटी कोई लाता ही नहीं था घर में. अंग्रेज़ी खाना कहकर बाबूजी खाने ही नहीं देते थे.
“ठीक है, उससे कहना चीनी ज़रा कम डाले.” विनीत ने सुखिया को जाते हुए ताक़ीद की.
“जी, अभी कहे देते हैं.” कहकर सुखिया विनीत के कमरे से उतर कर नीचे आ गया. मैडम अपनी आराम कुर्सी पर बैठी कुछ पढ़ रही थीं.
“अरे सुखिया! तुम कब आये? रिपोर्ट ले आये? कुछ बताए डॉक्टर साहब?” उन्होंने एकसाथ कई प्रश्न सुखिया से पूछ डाले.
“जी, रिपोर्ट ले आये हैं. सर जी चाय के लिये बोले हैं मानवती को.” सुखिया ने मैडम को बताया.
“अरे, मानवती को तो मैंने अभी कुछ सामान लेने भेजा है.” फिर कुछ सोचते हुए बोलीं, “चलो मैं बना देती हूँ, तुम विनीत को दे आना.” मुश्किल से अपनी कुर्सी से उठकर वॉकर के सहारे किचन तक जाकर चाय बनाई और सुखिया को थमा दी.
सेठजी लगभग नौ बजे फ़रीदाबाद से आये. दिनभर मीटिंग्स में इतना व्यस्त रहे कि घर आकर फ़ोन ही स्विच ऑफ़ कर दिया. अमूमन ऐसा वो सोने से पहले करते थे.
उधर डॉक्टर माथुर सेठजी को फ़ोन मिलाते रहे.
***
गोविंदपुरी मैट्रो स्टेशन से जब सुखिया बाहर निकला तो उसने महसूस किया कि आज कल से ज़्यादा ठंडक है हवा में. इधर फार्महाउस के काम में दिनभर थकान भी हो जाती थी. फिर विनीत सर के साथ जगह जगह जाना पड़ता था. विनीत ने कुछ बदलाव किये थे टाइल्स और पेंट के कलर में. सब जगह जाकर खुद देखकर पक्का किया कि कहाँ क्या लगना है. सुखिया को भी साए की तरह साथ रहना पड़ा ताकि उन्हें कहीं दिक्कत न हो. बार बार बदलते मौसम और खाने पीने की लापरवाही से उसे भी दो तीन दिन से खाँसी होने लगी है. ये दिल्ली भी कोई रहने का जगह है? सुबह से रात तक भागते फिरो और रात को किसी तरह कुछ गटक कर सो जाओ ताकि फिर से अगली सुबह भाग सको.
तीन दिन की छुटपुट बारिश ने फिर से ठंडक बढ़ा दी है. सुखिया भी सुबह काम पर निकलता है तो उसे ठंड लगती है. मौसम कैसा तो हो रहा है. कभी अचानक तेज धूप तो कभी बारिश और फिर ठंड. ऐसे में कोई बीमार न होगा तो क्या ठीक होगा? More Corona Tales by Smita Karnatak
ब्याह के बाद पीले धागों की कढ़ाई वाला बसंती का लाल शॉल सुखिया ले आया था. आजकल काम आ रहा है, वही गले और कंधों पर लपेटकर टिफ़िन में भात, आलू की तरकारी और अम्मा का दिया अचार लेकर सुखिया चल दिया. जाने आज बदन में थोड़ी हरारत जैसी भी महसूस हो रही है. अम्मा बाबूजी ने इजाज़त दी तो अगली बार बसंती को थोड़े दिन के लिये यहाँ लेकर आयेगा. बस ज़रा कमरा बदल ले. बसंती यहाँ आयेगी तो कितना ख़ुस होगी. कुछ दिन अपनी मुटल्ली के हाथ का खाना खायेगा. किसी दिन बसंती को लेकर इंडिया गेट जाएगा आइसक्रीम खिलाने.
सुखिया मैट्रो स्टेशन के अंदर जा ही रहा था कि उसका फ़ोन बजा. देखा तो सेठजी का फ़ोन था.
“अरे सुखिया ! तुम चल दिये क्या?” उधर से सेठजी ही थे.
“जी, बस रास्ते में ही हैं साब !” सुखिया ने स्टेशन की सीढ़ियों पर बैठे एक प्रेमी जोड़े की तरफ़ उचटती हुई निगाह डालते हुए कहा.
“अरे, एक काम करो, तुम सीधा साइट पर चले जाओ. रात ललित का फ़ोन आ गया था, वो आ गया है गाँव से वापस. इसलिये अब तुम फ़ार्महाउस का काम देखो. तुम्हारे न रहने से वहाँ का काम भी ठीक से नहीं होता.” सेठजी ने कहा.
“जी, जैसा आप कहें साब !” बात तो ख़त्म हो गई लेकिन सुखिया के मन में एक अच्छे कमरे को पाने की आस कमजोर हो गई. चलो देखा जाएगा. सेठजी साइट पर आएँगे तभी ना बात करना पड़ेगा?
दो घंटे सफ़र के बाद सुखिया साइट पर पहुँचा. तीन दिन पहले जितना काम छोड़कर गया था उससे आगे कोई ख़ास काम नहीं हुआ था.
“राम राम खिलावन भय्या ! का हो, काम तो सब वैसा ही पड़ा है.” रामखिलावन को सामने देखते ही सुखिया ने पूछा.
“अरे का बताएँ, वो टाइल वाला माल लेकर आया ही नहीं. ठेकेदार साब खुद फ़ोन किये रहे. अब हम का करें बताव?” कहकर रामखिलावन क़मीज़ की जेब से सुरती निकालकर मलने लगा.
सुखिया ने तुरंत फ़ोन लगाया और कुछ देर बात करने के बाद महेश और रामखिलावन को छोड़कर टाइल्स वाले के यहाँ चला गया.
दोपहर तक गाड़ी से माल उतर गया और सब अपने अपने काम पर लग गए.
शाम को जब सब लोग निकले तो सुखिया ने भी फ़ार्महाउस के गार्ड को ज़रूरी बातें समझाकर स्टेशन की राह पकड़ी. बादल फिर घिरने लगे थे. इस समय ट्रेन में इतनी भीड़भाड़ रहती है कि तिल रखने की जगह नहीं होती. सुखिया अपने स्टॉप पर उतरा तो बारिश होने लगी थी. रोज़ तो वो एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पैदल ही नाप लेता था लेकिन आज तो चला नहीं जायेगा. दोपहर बाद से हल्का बुखार भी है, बदन भी टूट रहा है. एक-दो दिन से खाँसी भी हो रही है. राम जाने इस साल होली के बाद तक भी ये मौसम क्या खेल कर रहा है. खेतों में गेहूँ की फ़सल तो चौपट ही हो जायेगी. More Corona Tales by Smita Karnatak
सुखिया ने हाथ देकर एक ऑटो को रोका और पहले से सवार चार सवारियों के किनारे किसी तरह सिकुड़ कर बैठ गया. ऑटो चल पड़ा. बारिश से भीग तो रहा है और हवा भी लग रही है सुखिया को, लेकिन जल्दी पहुँच जाएगा कोठरी में अपनी.
दस मिनट में वो अपनी सीलन भरी कोठरी में खाट पर चित्त पड़ा हुआ था. आधे घंटे तक ऐसे ही पड़े रहने के बाद बदन में थोड़ी ताक़त आई तब उठकर सुखिया ने जैसे तैसे कपड़े बदले और फिर से लेट गया.
आज खाना बनाने का न तो दम है न ही खाने की इच्छा. कोई बढ़िया सी चाय पिला देता तो… उसे सहसा अम्मा की याद हो आई.
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चार दिन से सुखिया भी खाँस खाँसकर हलकान हुआ जा रहा है. एक तो सूखी खाँसी ऊपर से तेज बुखार. शुरू में तो काम पर जाता ही रहा लेकिन आज तो बिस्तर से उठा ही नहीं जा रहा. बग़ल की कोठरी में रहने वाला दीनदयाल मेडीकल की दुकान से खाँसी और बुखार की दवाई ले आया था. वही दो रोटी और तरकारी रख गया. बेमन से जैसे तैसे आधी रोटी बड़ी मुश्किल से चबाते हुए सुखिया ने दवाई खाई और पड़ रहा. ठेकेदार को परसों ही फ़ोन करके तबीयत के बारे में बतलाकर छुट्टी माँग ली थी.
जाने बुखार से टूटे बदन की कमजोरी है या दवाइयों की ख़ुमारी, सारा दिन सोता ही रहा सुखिया. शाम को आँख खुली तो देखा, सेठजी के बंगले के गार्ड बसेसर की चार पाँच मिस्ड कॉल थीं. मन तो नहीं है फिर भी बेजान हाथों से सुखिया ने बसेसर को फ़ोन लगाया. क्या मालूम कौनो ज़रूरी बात हुई है.
“अरे किधर हो भय्या! फ़ोन काहे नहीं उठाए?” बसेसर की आवाज़ में कुछ घबराहट थी.
“अरे का बताएँ भय्या! बुखार में पड़े हैं.” रुक रुककर भारी हो आई आवाज़ में ताक़त लाने की कोशिश करते हुए सुखिया ने कहा.
“कुछ ख़बर है तुमको? विनीत बाबू का तबीयत बहुते ख़राब है. अस्पताल में भरती हैं तीन दिन से.”
“ अच्छा? हमको तो नहीं मालूम. परसों तो हम साइट पर गये थे. तब भी कोई नहीं बताया.” टूटे स्वर में सुखिया ने जवाब दिया.
“अरे उनको वही बीमारी हुआ है जो बिदेस से आया है, नासपीटा कोरोना. सेठजी का परिवार को सबसे अलग कर दिए हैं. पूरे घर और आसपास पूरा कालोनी में छिड़काव हुआ है दवा का. अब सबका जाँच चल रहा है जो भी उनसे मिलत रहा इन दिनों. तुम्हारा भी तभी से तबीयत ख़राब है ना? सुने हैं बीमारी छूने से फैलता है …” बसेसर एक साँस में बोलता जा रहा था.
सुनकर सुखिया सन्न रह गया. बसेसर ने आगे क्या कहा वो कुछ सुन नहीं पाया. इतने दिनों से इस बीमारी के बारे में सुनाई तो दे रहा था लेकिन ये अपने ही दरवाज़े पर आ बैठी है किसे मालूम था. बुखार से तप रहे उसके गालों पर असहायता की दो मोटी मोटी गरम बूँदें बह आईं.
सुखिया ने सामने देखा, कील पर बसंती का लाल शॉल टँगा था. बेबसी और दर्द से उसने अपनी आँखें भींच लीं.
वो भी तो मिला था विनीत बाबूजी से, बल्कि इतने दिनों तक वो जितना उनके साथ रहा इतना तो सेठजी और मैडम भी नहीं रहे होंगे. मैडम विनीत के कमरे में जा नहीं पातीं. सेठजी को इतनी फ़ुरसत ही नहीं रहती. बस हाल चाल पूछ लेते थे. More Corona Tales by Smita Karnatak
रात को दीनदयाल खाना लेकर फिर से हाज़िर हो गया. दरवाज़े की चरमराहट सुनकर सुखिया ने धीरे से सिर घुमाकर देखा. एक देवदूत सफ़ेद कपड़ों में हाथ में कटोरा थामे मुस्कराता उसकी तरफ़ बढ़ रहा था. वो गुमसुम सा उसकी तरफ़ देखता रहा. देवदूत दो क़दम और पास आया और उसने कटोरा सुखिया के सिरहाने रख दिया. एक थकी हुई निगाह कटोरे पर पड़ी. लाल लहू से लबालब कटोरा, जैसे किसी ने उसके ही शरीर का सारा रक्त निकालकर उसमें रख दिया हो. सुखिया का हलक सूख गया. उसे अचानक ही पानी पीने की ज़रूरत महसूस हुई. उसने कहना चाहा, “पानी,” लेकिन नहीं कह पाया. ज़बान तालू से बिल्कुल ही चिपक गई थी. हाथ से इशारा किया. एक पुरानी सी पेप्सी की बोतल में पानी रखा था. दीनदयाल ने पूछा, “पानी पियेगा भाई?”
सुखिया ने सिर हिलाकर हामी भरी. दीनदयाल ने गिलास में पानी डाला और सुखिया की तरफ़ बढ़ाया. अचानक सुखिया के शरीर ने तेज हरकत की. “नहीं, नहीं, दूर रहो भय्या! दूर रहो, मेरे पास मत आना.” कहकर सुखिया ने कंबल को सिर तक पूरा लपेटकर उसमें अपना मुँह छुपा लिया. दीनदयाल पल भर को ठिठका. पानी का गिलास सुखिया के सिरहाने रखते हुए बोला, “घबराए मती भाई ! कल चलेंगे डॉक्टर के पास. खिचड़ी बणाकर भेज्जी तेरी भाब्बी ने. ये खाकर दवाई ले लियो. रात की डूटी है मेरी, नई तो अबी चले चलते. चल सुबह को आऊँगा. ध्यान रखियो अपणा.” कहकर दीनदयाल अपने पीछे दरवाजा बंद करता हुआ चला गया.
सुबह अख़बार के पहले पन्ने के एक कोने में एक ख़बर छपी. देखते देखते सभी न्यूज़ चैनल पर इस ख़बर ने पहली जगह हासिल कर ली – ‘ राजधानी दिल्ली में कोरोना की दस्तक से मचा हड़कंप. इटली से आए एक नवयुवक की कोरोना से मौत. परिवार के बाक़ी सदस्यों को भी आइसोलेशन में रखा गया. मृत युवक से हाल ही में मिले लोगों की सूची तैयार कर उनकी जाँच का काम शुरु.’
सुखिया इन सब खबरों से अनजान अपनी कोठरी में पड़ा रहा. सुबह का समय. मोहल्ले के बाक़ी लोग भी अपने कामों में रोज़ की तरह मसरूफ हैं. बच्चे बस्ता टाँगे हाथ झुलाते स्कूल जा रहे हैं. घरों में काम करने वाली औरतें अपने घरों का काम निबटाकर दूसरे घरों में काम के वास्ते निकल पड़ी हैं. आदमी साइकिल पर या पैदल ही ऑफ़िस, फ़ैक्ट्रियों, ढाबों और दुकानों के लिए टिंफिन लेकर निकल रहे हैं. More Corona Tales by Smita Karnatak
कुछ फ़ालतू क़िस्म के बूढ़े से दिखाई देने वाले छोटे बच्चों की ऊँगली पकड़कर बेवजह इधर उधर घूम रहे हैँ. अचानक ऐंबुलेंस के सायरन की पास आती आवाज़ से मोहल्ले में हलचल मच गई. चेहरे पर मास्क और हाथों में दस्ताने पहने अस्पताल के कर्मचारी सुखिया की कोठरी का पता पूछते हुए उसके दरवाज़े तक पहुँच ही गए. कुछेक निठल्ले क़िस्म के मनचले लड़के चाय के खोखो या नुक्कड़ पर समय काटने के इरादे से बैठे हुए थे. ऐंबुलेंस का आना उनके लिए किसी ब्रेकिंग न्यूज़ से कम नहीं था. सब ऐंबुलेंस की दिशा में हो लिये. पीछे-पीछे जीप से उतरे सिपाहियों को उन्हें दूर रखने में खासी मशक़्क़त करनी पड़ रही थी. आख़िरकार एक अफ़सरनुमा पुलिसवाले ने उन्हें आगाह किया कि तमाशा न बनाएँ और दूर रहें. मोहल्ले के कुछ पंच सुखिया के घर में दाखिल होने की कोशिश में थे. घेरा बनाकर जब पुलिस ने लाठी फटकारनी शुरु की तब वहाँ से हटे.अस्पताल के कर्मचारियों ने सुखिया को उठाकर स्ट्रेचर पर रखा. आधी बेहोशी की हालत में सुखिया ने कील पर टँगा बसंती के पीले धागों की कढ़ाई वाले लाल शॉल की तरफ़ हसरत भरी निगाहों से देखा. तंग गली में ऐंबुलेंस के आने जगह नहीं थी. कर्मचारी सुखिया को लादे हुए ऐंबुलेंस की तरफ़ चल पड़े. पीछे पीछे कई जोड़ी आँखें और पैर. चार पुलिसवाले अब भी सुखिया की कोठरी के बाहर डटे हुए थे और जबतक नगरपालिका के दस्ते ने आकर पूरी गली में छिड़काव नहीं कर दिया वहाँ से हिले नहीं. More Corona Tales by Smita Karnatak
दीनदयाल अभी तक तक ड्यूटी से वापस नहीं आया था.
दो दिन बाद टीवी पर एक और ख़बर आई.
‘इटली से आए कोरोना के शिकार हुए युवक के परिवार के सदस्यों की जाँच रिपोर्ट निगेटिव आई. गोविंदपुरी इलाक़े के कोरोना पीड़ित की आज सुबह हुई मौत से दिल्ली में कोरोना से मरने वालों की संख्या दो पर पहुँची.’
-स्मिता कर्नाटक
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स्मिता कर्नाटक. हरिद्वार में रहने वाली स्मिता कर्नाटक की पढ़ाई-लिखाई उत्तराखंड के अनेक स्थानों पर हुई. उन्होंने 1989 में नैनीताल के डीएसबी कैम्पस से अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया. पढ़ने-लिखने में विशेष दिलचस्पी रखने वाली स्मिता की रचनाएं काफल ट्री में लगातार छपती रही हैं.
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