अल्मोड़ा में पिछले कई दशकों से मुहर्रम के अवसर पर ताज़िये बनाये जाते हैं जिसे अंजुमन सेवा समिति द्वारा आयोजित किया जाता है. ये ताज़िये बेहद कलात्मक और सुंदर होते हैं जिनके अंदर तरह-तरह लाइट्स भी लगायी जाती है. शाम के समय में इन ताज़ियों की परेड शहर में निकाली जाती है. अंधेरे में ताज़ियों के अंदर लगी लाइट्स चकमनी शुरू हो जाती हैं जो एक अद्भुत वातावरण की सर्जना कर देती हैं. इन ताज़ियों को करबला में ले जाकर सुपुर्देखाक करके दिया जाता है.
कहा जाता है कि ताज़िये हजरत इमाम हुसैन की करबला की समाधि की झलकियां हैं जिसका प्रचलन भारत में 1338 में तैमूरलंग बादशाह के शासन के दौरान शुरू हुआ.
-विनीता यशस्वी की रिपोर्ट. उन्हीं के फ़ोटोग्राफ़.
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=कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्र में ताज़िया (मुहर्रम) जुलूस निकलने की प्राचीन परंपरा =====
(1 ) ऐतिहासिक सन्दर्भ --कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्र में मुख्य रूप से अल्मोड़ा,पिथौरागढ़,रानीखेत और नैनीताल में ताज़िया बनाने की परंपरा है | अल्मोड़ा नगर में ताज़िये बनाने और ताज़िये के जुलूस को नगर के विभिन्न मार्गों,मोहल्लों से होते हुए अंत में करबला में दफ़न किये जाने की परंपरा दो सौ वर्षों से भी अधिक पुरानी है इसका प्रमाण है नगर के दक्षिणी छोर पर स्थित करबला नामक स्थान जो वर्तमान में धारानौला और आकाशवाणी की ओर से आने वाली सड़को का मिलन स्थल है और यहाँ पर चाय-पानी की दुकाने हैं इन दुकानों के पीछे नीचे की और उतरने पर वास्तविक करबला, अर्थात वह स्थान जहाँ हर साल ताज़िये दफनाए जाते हैं,स्थित है | चंद-शासन काल में जब यह स्थान करबला के लिए आबंटित किया गया था उस समय यहां कोई मकान दुकान नहीं थे | हल्द्वानी-अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ पैदल/अश्वमार्ग जो घुराड़ी-लोधिया-बर्शिमी होते हुए करबला पहुँच कर दो मार्गों में बट जाता था सीधा चढ़ाई वाला मार्ग वर्तमान छावनी क्षेत्र होते हुए लाल मंडी किले पहुँचता था दूसरा मार्ग जिसे पिथौरागढ़ जाने वाले यात्री प्रयोग करते थे वह दुगालखोला,नरसिंहबाड़ी, राजपुर,नियाज़गंज होते हुए चीनाखान, बल्ढौटी की और जाता था | दो शताब्दियों से अधिक समय से यह सम्पूर्ण क्षेत्र राजस्व भूअभिलेखों में करबला के नाम से दर्ज है | बिना ताज़ियों के करबला नहीं होती |इसी प्रकार ऐटकिंसन ने कुमाऊं के गज़ेट में लिखा है कि पहले अर्थात 1815 में अंग्रेज़ों के आने से पहले ताज़ियों को पब्लिक में लाने की मनाही थी जबकि हक़ीक़त में ऐसा नहीं था क्यों कि बिना सार्वजनिक प्रदर्शन के ताज़िये करबला तक नहीं पहुँच सकते थे | ऐसा ऐटकिंसन ने अंग्रेजी शासन को न्यायप्रिय व लोकप्रिय साबित करने के लिए लिखा है | 1861 की दुर्भाग्यपूर्ण घटना जिसमे अखाड़े की तलवार से एक व्यक्ति का हाथ कट गया था जिससे पूर्व जुलूस कचहरी बाजार से पल्टन बाजार तक बाजार होकर गुज़रता था | इससे सिद्ध होता है कि अल्मोड़े की ताज़ियेदारी दो सौ वर्षों से अधिक पुरानी है | पूरा लेख मेरी फेस-बुक वाल में 11 /09 /2019 में उपलब्ध है यदि उचित समझें तो Kafal Tree में प्रयोग कर सकते हैं