मिथुन हालदार.
कोलकत्ता से आया स्पेशल चाहा पिलाने. गर्मी उमस में निम्बू का फाइनल फ्लेवर. पेपर कप में ऊपर तक छलकती हरे भूरे काले रंग की नमकीन चुस्की. इसमें गजब्ब का हाजमोला फार्मूला है. काला लूँण, अजवैन, जीरा, पुदीना, चाय पत्ती, धनिया, अदरक, तुलसी, सा ट्री, टाटरी, गुड़, चीनी. एक कप बस पांच रुपये. (Mithun Haldar Tea Seller Haldwani )
दिन भर घूमते रहता कम से कम पांचसौ कप तो बिक ही जाते, कभी और ज्यादा भी. (Mithun Haldar Tea Seller Haldwani )
साल में चार -पांच महिने घर जाता अपने बंगाल. बीबी है बच्चे हैं. माई है. दुर्गा पूजा पे तो जाना जाना ही है.
वहां गांव में भी खाली ना रहता. आइस क्रीम बेचता घरवालों के साथ. बस आइस क्रीम थोक की फ्लेवर कोन में पांच की, बीस की.
पिछले दस साल से हल्द्वानी में सात -आठ महीने यही काम कर रहा. मेरे जैसे बारह और हैं. रुद्रपुर में बीस से ज्यादा. हमारे इलाके बंटे हैं. कोई कॉम्पिटिशन नहीं.
यहाँ बड़े खुले मन से धंधा चलता. रोक-टोक पोलीस गुंडागिरी नहीं. आराम से रोटी मिल जाती, घरपरिवार ठीकठाक चल रहा. वहां बंगाल में इतना सब चैन नहीं. सरकार बोलती बहुत पर हम जैसों को मुश्किल से नींद नसीब होती. बबाल बहुत कटता है.
अब पढ़ लिख ना पाया. अँग्रेजी नहीं आती. हिंदी बांग्ला आती.
मेरा तो जी करता यहीं परिवार ला बच्चों को पढ़ालिखा दूँ पर घर कैसे छोड़ें? बंगाल की मिट्टी में गीत हैं संगीत हैं वहा बड़ा ज्ञानी हर फन का मानुष है. सस्ता भी है गुजर बसर कम में भी होती. दिखावा भी नहीं. सूती कपडे में काम चलता.
पर बीमारी बहुत है!
एक आवाज पे दस इकट्ठे होते हैं. यहाँ लोग कटे -फटे. आबोहवा है.
यो एक कप और चलेगी. इतनी बात किसी ने ना पूछी?
जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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