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अफवाहों का ज़माना है, अफवाहों से बचो!

अफवाहों के न सिर होता है न पैर. पल में तोला पल में माशा, अफवाहें न जाने कितने ही रूप बदलती हैं. ऐसा नहीं है कि अफवाहों का बाजार हालिया तौर पर गर्म होना शुरू हुआ है. अफवाहें तो महाभारत काल से चली आ रही हैं जिसमें युद्ध के दौरान गुरू द्रोण के वध के लिए यह अफवाह फैलाई जाती है कि अश्वत्थामा मारा गया है. जब तक गुरू द्रोण को इस खबर की सच्चाई का पता चलता तब तक अर्जुन के बाण, पुत्र वियोग में धनुष-बाण छोड़ चुके, द्रोण को छलनी कर देते हैं. अफवाहों का परिणाम हमेशा उन्हें ही भुगतना होता है जिनका उससे कोई लेना-देना नही होता. (Life in Time of Rumours)

गौ तस्करी की अफवाह से लेकर बच्चा चोरी की अफवाह तक ने न जाने कितने ही लोगों की जान ले ली और कितनों को भीड़ की मार का शिकार होना पड़ा. इससे पहले कि इस विषय पर बात हो चलते हैं अफवाहों के फ्लेशबैक पर. बात है साल 2002 की. उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड के मैदानी जिलों में यह अफवाह आग की तरह फैल गई कि रात में मुँहनोचवा आता है और किसी का भी मुंह नोचकर चला जाता है. मई-जून की भीषण गर्मी के दिन थे और इस अफवाह ने लोगों के दिमाग में ऐसा असर किया कि रात में बिजली जाने पर भी कोई घरों से अकेला बाहर नहीं निकलता था. यहॉं तक कि लोग छत में सोने या टहलने तक नहीं जाते थे. मुंहनोचवा देखा किसी ने नही था लेकिन अफवाह की वजह से पता सबको था कि जब वह आता है तो लाल और जाता है तो नीली बत्ती जलती है. अखबार मुंहनोचवा को लेकर आए दिन कुछ न कुछ ऊल-जलूल छापते रहते जिससे लोगों का शक और गहरा जाता. (Life in Time of Rumours)

कुछ लोगों ने यह अफवाह फैला दी कि मुंहनोचवा एक इलेक्ट्रानिक डिवाइस जैसा है जिसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है और हमारे लिए विदेशी ताकत का सिर्फ एक ही मतलब था-आईएसआई. बाद में पता चला कि मुंहनोचवा जैसी कोई चीज नहीं है यह सिर्फ एक अफवाह थी जो कुछ शरारती तत्वों द्वारा डर का माहौल पैदा करने के लिए लोगों तक पहुँचाई गई थी.

अगली घटना साल 2004-5 के आसपास की है जब मैदानी जिलों खासकर नैनीताल व ऊधम सिंह नगर में यह अफवाह फैली कि शहर में कच्छा-बनियान धारी गैंग घूम रहा है जो घरों में डकैती डालकर भाग जाता है. इस गैंग ने अब तक न तो कोई लूटपाट मचाई थी और ना ही यह गैंग पुलिस की रडार में था लेकिन अफवाह जोरदार थी कि सतर्क रहें यह गैंग कभी भी किसी के घर में डकैती डाल सकता है. इस गैंग को देखा किसी ने नहीं था लेकिन बच्चा-बच्चा यह बोलते हुए सुना जा सकता था कि कच्छा-बनियान धारी मुँह में काला कपड़ा बाँधते हैं और शरीर में ग्रीस लगाकर आते हैं ताकि जब भी कोई उन्हें पकड़ने की कोशिश करे तो हाथ फिसल जाए. लोग रात-रात भर जागकर पहरा दिया करते थे. नानकमत्ता में रात को कुछ लोग हाथ में लाठियाँ लिए सड़कों में घूमा करते थे और जोर-जोर से चिल्लाया करते थे-जागते रहो, जागते रहो. लोगों के दिमाग में ऐसा डर बैठा हुआ था कि वो रात भर सो नही पाते थे और उनके इस डर की आग में घी का काम करता था सुबह आने वाला अखबार जो कच्छा-बनियान गैंग की न जाने कितनी ही खबरें समेटे होता था. कुछ दिनों तक यह अफवाह खूब चली और अंत में यह कह कर समाप्त करवा दी गई कि शायद गैंग अन्य जगह शिफ्ट कर गया है.

उपरोक्त दोनों अफवाहें उस दौर में घटी जब सोशल मीडिया का बोलबाला बहुत अधिक नहीं था सिर्फ सुनी सुनाई बातों पर भरोसा कर लोगों ने एक बवंडर खड़ा कर दिया था. अब बात 2016 की. नोटबंदी के चार दिन बाद किसी ने सोशल मीडिया में अफवाह फैला दी कि देश में नमक की कमी हो गई है. फिर क्या था लोगों ने आव देखा न ताव दुकानों की तरफ दौड़ना शुरू कर दिया. कोई दस पैकेट नमक खरीद रहा है तो कोई पूरा कट्टा. अमूमन दुकानदार नमक के कट्टों को दुकान के बाहर ही रखते हैं क्योंकि नमक की चोरी कोई नहीं करता लेकिन उस अफवाह का ऐसा असर हुआ कि कई दुकानों के बाहर से रातों-रात नमक के कट्टे गायब हो गए. अगले दिन पता चला कि यह सिर्फ एक अफवाह थी. देश में नमक की कोई कमी नही है.

अब बात गौ तस्करी व बीफ के नाम पर अफवाह की वजह से मौतों की. मोहम्मद अखलाक और झारखंड में सात लोगों की हत्या भीड़ ने इसलिए कर दी कि किसी ने अफवाह फैला दी कि वो गौ माँस का भक्षण कर रहे थे. पहलू खान की हत्या भीड़ ने गौ तस्करी के शक में की और सबूतों के अभाव में दोषी अंत में रिहा भी हो गए. अब तक फेक व्हाट्सऐप फॉरवर्ड के सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं जिनमें निर्दोष लोगों को हत्यारी भीड़ का शिकार होना पड़ा है. यही हाल पिछले कुछ दिनों से बच्चा उठाने की अफवाह को लेकर है. उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक पिछले कुछ दिनों में सैकड़ों ऐसी घटनाएँ दर्ज हो चुकी हैं जिसमें भीड़ शक के बिनाह पर किसी पर भी टूट पड़ती है. अकेले मेरठ जोन में ऐसी 26 घटनाएँ दर्ज की जा चुकी हैं. सहारनपुर, हापुड़, बुलन्दशहर व रामपुर में भीड़ ने बच्चा चोरी के शक में दो महिलाओं समेत चार लोगों को पीट डाला. बाद में पुलिस ने रामपुर में 14 व सहारनपुर में 70 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया.

सोशल मीडिया की क्रान्ति ने अफवाहों की बढ़ोत्तरी में प्रमुख योगदान दिया है. अफवाहों का ही आधुनिक रूप है फेक न्यूज जिसका सबसे ज्यादा प्रचार-प्रसार राजनीतिक पार्टियों के आईटी सेल ने किया है. कई बार तो मेन स्ट्रीम मीडिया भी फेक न्यूज को प्रचारित कर देता है. फेक न्यूज की वजह से भीड़तंत्र बड़ी आसानी से अपना काम कर के निकल जाता है. कहते हैं भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता लेकिन जिस तरह से मॉब लिंचिंग की घटनाएँ बढ़ती जा रही है सरकारों और पुलिस को भीड़ का चेहरा तय करना होगा. अफवाह फैलाने वालों और अफवाह को सच मानकर भीड़ का हिस्सा बनने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए. पश्चिम बंगाल की सरकार एंटी-लिंचिंग बिल को विधानसभा में लाने की बात कर रही है जिसमें दोषी को आजीवन कारावास व 5 लाख तक जुर्माने का प्रावधान है. मॉब लिंचिंग के खिलाफ इस तरह के सख्त कानून को केन्द्र सरकार द्वारा भी पूरे देश में लागू करना चाहिये ताकि इस तरह की घटनाओं में रोक लगाई जा सके.

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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  • जिस देश में नेताओं का दिमागी स्तर प्रज्ञा ठाकुर जैसा हो वहां चोटी कटवा, मुंह नोचवा, बच्चा चोरवा, गाय मरवा बहुत छोटी बातें हैं । लोग किस प्रकार के घटिया संदेश फारवर्ड करके अपना मानसिक स्तर का प्रदर्शन करते हैं ।

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