समाज

‘अम टो मिस्टर हो गया अब यूरप जाना मांगटा है’ – उत्तराखंड के स्वाधीनता संग्राम का एक अनछुआ पहलू

1920 का दशक था. भारत में उन दिनों स्वतन्त्रता आन्दोलन बहुत तेजी से फ़ैल रहा था. राष्ट्रीय चेतना अपने पाँव पसार रही थी और विदेशी वस्तुओं के प्रति नकार का भाव उमड़ने लगा था. उस दौर में गढ़वाल-कुमाऊं के अनेक लेखक-कलाकार अपनी अपनी हैसियत से इस यज्ञ में आहुति देने का कार्य कर रहे थे. समूचे उत्तराखंड में अखबार और पर्चे छापे जा रहे थे. तरह तरह के साहित्यिक माध्यमों की सहायता से अंग्रेजों के शासन और उसकी क्रूरता के विरुद्ध जनता की भावनाओं को व्यक्त करने के प्रयास चल रहे थे. ऐसे समय में कुछ अंग्रेजपरस्त लोग ऐसे भी थे जिन पर अंग्रेजों की जीवनशैली को अपनाने का चस्का लग चुका था. ऐसे लोग भी उस समय के साहित्यकारों के निशाने पर आये. (Mister Chaitu Bhawani Dutt Thapaliyal)

इन्हीं में से एक थे भवानी दत्त थपलियाल. भवानी दत्त थपलियाल ने 1920 के दशक में ‘प्रहलाद’ शीर्षक एक नाटक लिखा था जिसका प्रकाशन वर्ष 1930 में हुआ. (Mister Chaitu Bhawani Dutt Thapaliyal) पेश है उस नाटक से एक गीत:

मिस्टर चैतू

अम टो मिस्टर हो गया अब यूरप जाना मांगटा है

डाल भाट सागि रोटि ये टो खावें काला लोग
अंडा मुर्गी और शराब मिस्टर खाना मांगटा है
माटा पिटा व चचा चाची ये टो पुकारें काला लोग
पापा मामा अंकिल आंट मिस्टर कैना मांगटा है

भाई बहन क्या बेटा बेटी ऐसा बोले काला लोग
ब्रादर सिस्टर सन्नेंड डॉटर मिस्टर बोलना मांगटा है
अंगा चोगा ढीला ढाला ये टो पैनें काला लोग
कोट फाटा हो पीछे  से मिस्टर पैन्ना मांगटा है

टोपी ढोटी कुर्टा गुलूबन्ड ये टो पैनें काला लोग
हेट पैंट शर्त कॉलर मिस्टर पैन्ना मांगटा है
खाटे पीटे पूजा कर्टे चौका दे के काला लोग
ई टिं ड्रिं किं होटल में मिस्टर टेबुल मांगटा है

पाखाने में चूटड़ ढो वे जिमी पे हग्ने वाला लोग
हग्गा मूटा टांग उठा कर मिस्टर पोंछना मांगटा है
ढोलक टबला टुरी सिटार ये टो बाजावे काला लोग
हारमोनियम बिगुल फीडल हम्म बजाना मांगटा है

अम टो मिस्टर हो गया अब यूरप जाना मांगटा है

काफल ट्री डेस्क

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