सुन्दर चन्द ठाकुर

यात्रा में ही जिंदगी का रोमांच है, मंजिलें तो ठहरी हुई हैं

अगर आप खुशी की तितली के पीछे भागोगे, तो कभी उसे पकड़ न पाओगे. आपको अगर बचपन में खुले मैदानों और बागों में खेलने को मिला, जहां बेफिक्र तितलियां उड़ती रही हों, तो आपने इस तथ्य को बखूब जाना होगा कि पीछे भागने पर तितली उड़ जाती है. दरअसल उसे पकड़ने से ठीक पहले उसके नाजुक पंखों को नुकसान पहुंचने के डर से जब एक क्षण को हमारी उंगलियां कांपती हैं, वह उड़ जाती है. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि कि हम बाग में टहल रहे होते थे, तो वह चुपचाप आकर हमारे कंधे पर बैठ जाती थी.
(Mind Fit 43 Column)

खुशी भी ऐसी ही तितली है, जिसे पकड़ने के लिए भागोगे, तो शायद कभी पा न पाओगे. खुशी के पीछे भागना ऐसा ही है, जैसे हम कुछ साबित करने के लिए कोई काम करें. आपके साथ भी कई बार ऐसा हुआ होगा कि कोई काम आप अकेले में तो कर लेते होंगे, लेकिन उसी को दस लोगों के सामने दिखाने की कोशिश करते हुए वह ठीक से नहीं हो पाता होगा. जिन दिनों मैं शीर्षासन करना सीख रहा था और महीनेभर के अभ्यास के बाद सिर के बल आराम से खड़ा होने लगा था, मैंने गौर किया कि मैं अकेले में बहुत सहज ही ऐसा कर लेता हूं, लेकिन दोस्तों को दिखाने की कोशिश करते हुए कई बार वह नहीं भी हो पाता था या खराब तरीके से होता था. नियम बहुत सिंपल है. हम जब अपने आनंद के लिए कोई काम करते हैं, तो उसे बेहतरीन ढंग से कर पाते हैं, क्योंकि हम उसे बेपरवाह होकर करते हैं.

जब हम बिना किसी की परवाह किए गाना भी गाते हैं, तो उसमें कोई बात होती है, जो उसे खास बना देती है. लेकिन जब हम उसी गाने को दूसरों को सुनाने के लिए गाते हैं, तो गड़बड़ा जाते हैं. उसके वे तत्व जो हमारे बेपरवाह होने से उसमें आ गए होते हैं, वे भी गायब हो जाते हैं. इसीलिए जो संगीत के मास्टर हैं, वे अपने शिष्यों को अक्सर बेपरवाह होकर गाने की सलाह देते हैं. भाषण देने की कला में पारंगत लोग बताते हैं कि भाषण देते हुए वे इसकी परवाह नहीं करते कि श्रोताओं में कितने ज्ञानी लोग बेठे हैं. अच्छा भाषण आप तभी दे सकते हैं, जब आप यह मानकर चलें कि श्रोताओं को कुछ नहीं आता. आपको ही उन्हें दिए गए विषय के बारे में सब कुछ समझाना है.
(Mind Fit 43 Column)

इस सत्य को समझ लीजिए कि पूरा ब्रह्मांड हमेशा प्रक्रिया में रहता है. कोई भी स्थिति ऐसी नहीं है, जिसे हम स्थायी कह सकें. स्थितियां लगातार बदलती रहती हैं. अगर ब्रह्मांड हमेशा प्रक्रिया में रहता है, तो उसके अंश के रूप में हम कैसे मंजिल पा सकते हैं. हमारा जीवन भी हमेशा प्रक्रिया में ही रहना चाहिए. वह रहता ही है. असल में प्रक्रिया ही जीवन है. खुशी का मिलना जरूरी नहीं, उसके पीछे आपका जाना, चलना, दौड़ना जरूरी है.

तितली का आपके हाथ आना जरूरी नहीं, मन में उमंग भरकर तितली के रंगों का सम्मोहन आंखों में भर उसके पीछे भागना बड़ी बात है. जीवन उस भागने में छिपा हुआ है. मंजिल पर पहुंचकर कुछ नहीं होने वाला. एवरेस्ट की चोटी फतह करने का मजा ही एक-एक कर रास्ते की दुश्वारियों से निपटने में है, चोटी पर पहुंचकर तो फोटो ही खींचनी है बस. कुछ क्षणों का आनंद वहां भी है, पर वह अस्थायी है. जीवन की चरम सुंदरता इसमें है कि हम प्रक्रिया में रहने को कितना स्थायी बना सकते हैं.
(Mind Fit 43 Column)

एक लड़की से जब दोस्ती की शुरुआत होती है, धीरे-धीरे घनिष्ठता बढ़ती है, व्यक्तित्व के अनजाने पहलू एक-दूसरे के सामने खुलते हैं, एक-दूसरे के प्रति खिंचाव बढ़ता है, दिल में तरंगें उतरना शुरू होती हैं, रात को सोते हुए आंख बंद करते ही उसकी प्यारी सूरत आंखों के परदे पर छा जाती है, पहली बार जब तुम उसका हाथ पकड़ते हो, उसकी आंखों के समुद्र में झांकते हो और वहां अपना ही अक्स तैरता देखते हो, तब कैसे भाव तुम्हारे दिल में उठ रहे होते हैं और तुम्हारे इस दुनिया में होने के नए मायने पैदा कर रहे होते हैं, यह सब उस एक पल से कहीं ज्यादा रोमांचकारी हैं, जब वह तुम्हारे गले में वरमाला डाल तुम्हें अपने जीवन साथी के रूप में चुनती है.

मंजिल का अर्थ ही यह है कि उसके बाद यात्रा नहीं होगी. बिना यात्रा के जीवन का कैसा रोमांच? इसलिए प्रक्रिया में बने रहने की आदत डालो. कुछ साबित करने के लिए नहीं, अनुभवों का आनंद लेने के लिए जिओ. खुशी की तितली के पीछे मत भागो. जीवन एक यात्रा है. हर कदम का आनंद लो और हमेशा अगला कदम लेने की प्रक्रिया में ही बने रहो.
(Mind Fit 43 Column)

-सुंदर चंद ठाकुर

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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

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