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ईश्वर के अस्तित्व पर महात्मा गांधी का अनमोल भाषण

अक्टूबर 1931 में महात्मा गांधी लंदन गए थे, वहां उन्होंने किंग्सले हॉल में बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए लोगों को संबोधित किया. उन्होंने इस संबोधन को अपना आध्यात्मिक संदेश कहा. इस संदेश को पढ़ते हुए आप सहज यह समझ सकते हैं कि सत्य के साथ प्रयोग करते हुए गांधी सत्य के कितना करीब पहुंच चुके थे. आप भी पढ़ें अंग्रेजी में दिए उनके प्रसिद्ध भाषण का यह हिंदी अनुवाद:
(Mind Fit 33 Column)

एक ऐसी रहस्यमयी ताकत है जो हर शै में व्याप्त है, पर उसे परिभाषित नहीं किया जा सकता. मैं उसे महसूस करता हूं, हालांकि उसे देख नहीं पाता. यह अदृश्य शक्ति खुद को हमें महसूस तो करवाती है, लेकिन इसे साबित नहीं किया जा सकता. क्योंकि वह उस सबसे बिलकुल अलग है, जिसे मैं अपनी इंद्रियों से देखता-समझता हूं. वह इंद्रियों के पार चली जाती है. लेकिन ईश्वर के अस्तित्व को साबित करना एक सीमा तक संभव है. आम मामलों में भी हम जानते हैं कि लोगों को यह नहीं पता चल पाता कि कौन, क्यों और कैसे नियंत्रित कर रहा है, लेकिन फिर भी उन्हें मालूम होता है कि कोई नियंत्रण तो कर ही रहा है.

पिछले साल मैं मैसूर के अपने दौरे में कई गरीब गांववालों से मिला और उनसे पूछताछ करने पर मैंने पाया कि उन्हें यह नहीं पता था कि मैसूर में किसका शासन है. उन्होंने सहज ही बताया कि उस पर कोई देवता राज करता है. अपने शासक के बारे में इन गरीब लोगों का ज्ञान अगर इतना सीमित था, तो मैं जो कि उनके अपने शासक की तुलना की अपेक्षा अपने ईश्वर के परिप्रेक्ष्य में असीम रूप से कम हूं, मुझे इस बात पर हैरान नहीं होना चाहिए कि मैं राजाओं के राजा, ईश्वर की मौजूदगी को अनुभूत नहीं कर पाता हूं. 

फिर भी जैसे गरीब गांववासी मैसूर के बारे में सोचते थे, मुझे भी लगता है कि इस ब्रह्मांड में एक क्रमबद्धता तो है. एक अपरिवर्तनीय विधान है, जो हर शै और हर प्राणी को चला रहा है. यह कोई अंधा विधान नहीं है, क्योंकि कोई अंधा विधान जीवित प्राणियों के व्यवहार को संचालित नहीं कर सकता. सर जे.सी.बोस के अनुसंधानों का शुक्रिया, जो अब यह साबित किया जा सकता है कि पदार्थ में भी जीवन होता है. मैं विधान या विधान बनाने वाले को निरस्त नहीं कर सकता, मैं उनके बारे में बहुत कम जानता हूं.
(Mind Fit 33 Column)

मैं इस बात को थोड़ा-थोड़ा महसूस करता हूं कि भले ही मेरे चारों ओर सबकुछ निरंतर बदल रहा है, लगातार खत्म हो रहा है, इस परिवर्तन के नीचे एक अपरिवर्तनीय जीवन शक्ति है, जो हमें एक साथ बांधे हुए है. जो रचती है, खत्म करती है और फिर दोबारा रचती है. आत्मा की शक्ति को सामने लाने वाला ईश्वर है और चूंकि मैं जो कुछ भी महज अपनी इंद्रियों से देखता हूं, वह बने रह सकता है या बने रहने वाला है, सिर्फ वही (ईश्वर) रहने वाला है. और यह शक्ति हितकारी है या अहितकारी? मैं इसे विशुद्ध हितकारी के रूप में देखता हूं, क्योंकि मैं देख सकता हूं कि मृत्यु के बीच जीवन बना रहता है, असत्य के बीच सत्य बना रहता है, अंधकार के बीच रोशनी बनी रहती है. इसीलिए मुझे लगता है कि ईश्वर जीवन, सत्य, रोशनी है. वह प्रेम है. वह सर्वोच्च अच्छाई है. वह ईश्वर नहीं है, जो सिर्फ बुद्धि को संतुष्ट करता है.

इंद्रियों का बोध ज्यादातर गलत और धोखे से भरा होता है, वह हमें कितना भी वास्तविक दिखाई दे. इंद्रियों से बाहर जाकर जो अनुभूति होती है, वह एकदम सटीक होती है. वह असंबद्ध सबूतों से साबित नहीं होता, बल्कि वह उन लोगों के व्यवहार और चरित्र के रूपातंरण में दिखाई देता है, जिन्हें अपने भीतर ईश्वर की मौजूदगी का वास्तविक अहसास हुआ हो. ऐसे प्रमाण दुनिया के सभी देशों और क्षेत्रों में पैगंबरों और साधुओं की सतत कतार में देखे जा सकते हैं. इस प्रमाण को नकारना खुद को नकारने जैसा है.
(Mind Fit 33 Column)

इस अनुभूति से पहले एक अडिग विश्वास जन्म लेता है. जो व्यक्ति खुद ही ईश्वर के अस्तित्व के तथ्य की जांच करेगा, वह ऐसा जीवित आस्था के जरिए कर सकता है और क्योंकि आस्था असंबद्ध प्रमाणों से साबित नहीं की जा सकती, सबसे सुरक्षित रास्ता यह है कि संसार की नैतिक सरकार पर यकीन किया जाए और इसलिए नैतिक विधानों, सत्य और प्रेम के विधान की सर्वोच्चता पर भी. जहां भी सत्य और प्रेम से अलग हर चीज को तुरंत अस्वीकृत करने की जिद होगी, वहां आस्था का प्रयोग करना सबसे सुरक्षित रहेगा. आस्था तर्क से पार चली जाती है. मैं असंभव का प्रयास न करने की ही सलाह दे सकता हूं.
(Mind Fit 33 Column)

-सुंदर चंद ठाकुर

इसे भी पढ़ें: हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं

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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

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