Featured

उत्तराखंड की महिलाओं को भी माहवारी के दौरान मानसिक यातना से गुज़रना होता है

स्कूल की घंटी बजते ही सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षाओं में दौड़ जाते हैं. सातवीं कक्षा की स्वाति (काल्पनिक नाम) भी अपनी सहेलियों के साथ क्लास में पहुँच जाती है. परन्तु वह कक्षा में स्वयं को असहज महसूस करती है. उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है. वह बार-बार कभी किताब खोलती और बंद करती है तो कभी अपने कपड़े ठीक करने लग जाती है. उसकी यह हरकत देखकर शिक्षिका उसे डांटती है. घण्टी बजती है सब बच्चे अपनी गणित की कक्षा के लिए जाने लगते हैं परन्तु स्वाति न जाने क्यों अपनी सीट पर जड़ सी जाती है. वह उठना चाहती है परन्तु उठ नहीं पाती है, स्वाती की दोस्त उसे खींचकर उठाती है तो उसके कपड़े पर लाल रंग के दाग देखती है. वह स्वाती की तरफ देखती है उसकी आंखों से आंसू निकल कर गालों को गीला कर रहे होते हैं. स्वाती की दोस्त उसे लेकर प्रधानाध्यापिका के पास जाती है, जो उसे देखते ही बिना किसी सवाल जवाब के उसे घर भेज देती है. इधर स्वाती के मन में सैकड़ों सवाल उठने लगते हैं, कि यह लाल रंग क्या है? ऐसा क्यूँ हुआ? क्या हो गया मुझे? क्या मुझे कोई बुरी बीमारी हो गयी है? माँ को क्या बताऊंगी? टीचर ने कुछ कहे बिना घर क्यों भेज दिया? (Menstruation is a Natural Process)

ये समस्या किसी एक स्वाति के साथ नहीं है बल्कि ऐसी अवस्था से देश की लाखों स्वाति जैसी लड़कियों को गुजरना पड़ता है, लेकिन न उनको सवाल का संतुष्टिपूर्ण जवाब मिलता है और ना ही सम्मान. अब सवाल उठता है कि यह परिस्थिति आखिर उत्पन्न क्यों होती हैं? यह लाल रंग किशोरियों व महिलाओं में हर माह क्यों आता है? इस स्थिति में उनके साथ समाज, घर, शिक्षण संस्थान, धार्मिक संस्थान, दोस्त किस प्रकार का व्यवहार करते हैं?

हालांकि यह सर्वविदित है कि लड़कियों में एक निश्चित आयु के बाद योनी से माह में कुछ दिन में रक्तस्राव होता है. यह एक जरूरी शारीरिक प्रक्रिया है जोकि पुरुषों में युवावस्था में दाढ़ी मूंछ आने जैसी एक सामान्य घटना की तरह है. इसी प्रकार माहवारी भी महिला व किशोरियों में आने वाली जरूरी शारीरिक प्रक्रिया है. जिसके बारे में समाज में अनेक प्रकार की भ्रांतियां और कुप्रथाएं फैली हुई हैं. यह कुप्रथा या भ्रांति अशिक्षित समाज के साथ-साथ ही पढ़े लिखे समाज में भी गहराई तक अपनी जड़े जमाई हुई है. आज भी समाज शर्म का विषय मानकर इस मुद्दे पर एक चुप्पी बनाया हुआ है. जिसके विषय में खुलकर चर्चा नहीं होती है. यदि आप इस विषय पर बात करना भी चाहते हैं तो उसे गन्दी बात समझी जाती है. इस विषय की अज्ञानता घर से शुरू होकर समाज तक और समाज से आरम्भ होकर भगवान के द्वार तक एक नियम की तरह पहुंच जाती है.

मेडिकल और विज्ञान दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि माहवारी के दौरान किशोरियों और महिलाओं को अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक  प्रताड़नाओं से गुजरना पड़ता है. लेकिन इससे अधिक कष्टदायक सामाजिक प्रताड़ना का होना है. कुप्रथा के जाल में उलझा समाज इस दौरान महिला अथवा किशोरी का साथ देने और सहयोग करने की जगह पर अनेक प्रकार से मानसिक रूप से टॉर्चर करता है.  किशोरी व महिला को घर की सामान्य प्रक्रिया में नियमित किये जाने वाले कार्यों से अलग थलग कर दिया जाता है. इस दौरान उनका रसोई घर में प्रवेश वर्जित कर दिया जाता है. पूरे घर में घूमने, पूजा पाठ आदि पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. उनका मंदिर में प्रवेश पूर्ण रूप से प्रतिबंधित रहता है. यहां तक कि उनकी साफ-सफाई पर भी विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है.

देवभूमि कहे जाने वाले राज्य उत्तराखंड में भी माहवारी के दौरान महिलाओं को इसी प्रकार की मानसिक यातनाओं से गुज़रना होता है. वह गाय या भैंस का दूध तो निकाल सकती हैं लेकिन उस दूध के सेवन पर प्रतिबंध रहता है. कुप्रथा तो यहां तक है कि माहवारी के समय महिलाओं को घर से दूर पशुओं के साथ गौशाला में रहने को मजबूर किया जाता है. जिस समय में महिला को स्वच्छता, साफ सफाई व पौष्टिक आहार की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, उन्हीं चीज़ों से उन्हें वंचित कर दिया जाता है. इन सामाजिक कुप्रथाओं के कारण उनको अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होना पड़ता है. ऐसी अवस्था में वह किस प्रकार के शारीरिक व मानसिक अवसाद से गुजरती है, इसकी कल्पना भी मुश्किल है. कहने को माहवारी महिलाओं में होने वाली एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है लेकिन अज्ञानतावश या कहें कि जागरूकता के अभाव में यह प्रक्रिया अत्यन्त ही जटिल और गम्भीर समस्या में परिवर्तित हो गयी है. गोठ में पहाड़ी रजस्वला महिलाओं के पांच दिन

इन्हीं जटिलताओं और गंभीरताओं को समझते हुए स्थानीय स्वयंसेवी संस्था विमर्श ने किशोरियों के प्रजनन, स्वास्थ्य व अधिकार को लेकर काम करना शुरू किया है. जिसमें सर्वप्रथम नैनीताल जिले के 40 गांवों में किशोरियों के संगठन बनाकर माहवारी स्वच्छता व प्रबन्धन को लेकर जागरूकता का कार्य किया है. इस दौरान यह बात स्पष्ट हो गई कि माहवारी को लेकर सामाजिक व धार्मिक मान्यताओं के डर के चलते लोग इस विषय पर बात नहीं करना चाहते हैं. यहां तक कि किशोरियों व महिलाओं में भी अपने शरीर को लेकर शर्म व गलत धारणाएं बनी हुई हैं. इन्हीं धारणाओं को तोड़ने के लिए विमर्श द्वारा किशोरी व महिला संगठनों के साथ चर्चा प्रारम्भ की गई.

परिणामस्वरूप विमर्श ने अपने प्रयास से समुदाय, प्रशासन, जनप्रतिनिधियों के साथ समन्वय स्थापित कर यह समझाने में सफल हुआ कि माहवारी के दिनों में महिला और किशोरी को स्वच्छता, सहयोग पौष्टिक आहार, सम्मान की आवश्यकता रहती है. साथ ही किशोरी संगठनों को घरेलू कार्टन के पैड बनाने का प्रशिक्षण दिया गया, जिन स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था नहीं थी वहां पर विभाग के सहयोग से शौचालय की व्यवस्था करायी गयी साथ ही स्कूलों में जरूरत पड़ने पर सेनेटरी पैड की उपलब्धता हेतु प्रयास किये गये. इसके साथ साथ आम लोगों को भी जागरूक किया गया, तब जाकर कुछ परिवर्तन होना शुरू हुआ. परन्तु यह सफर इतना आसान नहीं है. जो समाज अनेक प्रकार के धार्मिक कर्मकांडों में उलझा हो उस समाज में माहवारी शब्द का इस्तेमाल करना ही अपने आप में एक चुनौती है.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

नैनीताल की उपासना तुलेडा का यह लेख हमें चरखा फीचर्स से प्राप्त हुआ है.   

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago