Featured

भारती कैंजा और पेड़ के साथ उनकी शादी

भारती कैंजा अपने भाई-बहिनों में सबसे छोटी है, लेकिन जीवट में सबसे बड़ी. वह कभी किसी से फालतू नहीं बोलती. जब वह आठ साल की रही होगी, अपनी बुआ के घर ढकाली गई हुई थी. (Memoir by Govind Singh)

वहां लड़कियों के साथ वह अक्सर जंगल जाया करती – घास लकड़ी लाने. ऐसे ही एक दिन किसी गधेरे के किनारे चारा लेने गई हुई थी. शाम ढलने को थी. उसकी सहेलियां घर आने लगी, वह कुछ पीछे रह गयी और इसी बीच उनके मन में कुछ डर बैठ गया. (Memoir by Govind Singh)

घर लौटते ही वह बीमार पड़ गयी. बहुत तेज बुखार आने लगा. लोगों को लगा कि उसे भूत लग गया. बच्ची जंगल से लौटते हुए कुछ डर गई, इसलिए भूत का प्रकोप हो गया है. थोड़ी रखाली हो जाए तो भूत भाग जाएगा.

एक पंडित को बुलाकर रखाली भी की गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. किसी ने यह नहीं सोचा कि बच्ची को बुखार हुआ है, उसे भूत भगाने वाला नहीं दवा की जरुरत है.

इस तरह महीने भर तक बच्ची बुखार में तपती रही लेकिन उसे सही ईलाज नहीं मिला. अंत में बुखार आंखों की रोशनी लेकर ही निकला.

जब भारती ने आंखे खोली, तो उसके लिए सारा संसार अंधेरे के सिवा कुछ भी नहीं था. उनकी शादी नहीं हो पाई. एक अंधी लड़की से पहाड़ में कौन शादी करता. अपने ददा के घर ही उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी काट दी. घर का कोई फैसला उनसे बिना पूछे नहीं होता.

यह स्थिति अब भी जारी है जबकि भाई के बेटों की भी बीवियां आ गई हैं लेकिन उनकी स्थिति में कोई फर्क नहीं आया. जब वह 50 साल की हो गयी तो भाई को चिंता सताने लगी कि भारती की उम्र बीत रही है, क्या वह कुंवारी ही रहा जायेगी?

पुरोहित से राय लेकर समाधान निकाला गया. कहा गया कि शास्त्र के अनुसार एक गगरी पानी और मूर्ति को सामने रखकर एक पेड़ के साथ विवाह किया जा सकता है.

भारती कैंजा से भी राय ली गयी. उन्हें इस काम से क्यों आपत्ति होने लगी? इस तरह एक दिन तमाम गांव के भाई-बिरादरों की उपस्थिति में पंडितों ने कैंजा की शादी एक पेड़ से करवा दी.

पहाड़‘ में छपे गोविन्द सिंह के लेख ‘बचपन की छवियां’ से

प्रो. गोविन्द सिंह

देश के वरिष्ठ संपादकों में शुमार प्रो. गोविन्द सिंह सभी महत्वपूर्ण हिन्दी अखबारों-पत्रिकाओं के लिए काम कर चुके हैं. ‘अमर उजाला’ के मुख्य सम्पादक रहे गोविन्द सिंह पहले उत्तराखंड मुक्त विश्विद्यालय और फिर जम्मू विश्विद्यालय के मीडिया अध्ययन विभागों के प्रमुख रह चुके हैं. पिथौरागढ़ जिले से ताल्लुक रखते हैं.

इसे भी पढ़िये : मेरे बाबू ईजा की अजब गजब शादी

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम

पिछली कड़ी : बहुत कठिन है डगर पनघट की ब्रह्मपुरी की बात चली थी उन…

5 days ago

लोक देवता लोहाखाम

आइए, मेरे गांव के लोक देवता लोहाखाम के पर्व में चलते हैं. यह पूजा-पर्व ग्यारह-बारह…

5 days ago

बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि

अमित श्रीवास्तव के हाल ही में आए उपन्यास 'तीन' को पढ़ते हुए आप अतीत का…

2 weeks ago

अलविदा घन्ना भाई

उत्तराखंड के प्रसिद्ध हास्य कलाकार घनानंद जी ’घन्ना भाई’ हमारे बीच नहीं रहे. देहरादून स्थित…

2 weeks ago

तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी

सुबह का आसमान बादलों से ढका है, आम दिनों से काफ़ी कम आमदोरफ़्त है सड़क…

2 weeks ago

जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम

मेरे नगपति मेरे विशाल... रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता सभी ने पढ़ी होगी. इसके…

2 weeks ago