Featured

मशकबीन : स्कॉटलैंड से आकर उत्तराखण्ड के पहाड़ों में जड़ पकड़ने वाला बाजा

मशकबीन के बिना जैसे उत्तराखण्ड के लोकसंगीत की कल्पना तक करना मुश्किल है. मशक्बाजा या मशकबीन के सुर और पहाड़ की वादियां एक दूसरे को पूर्णता प्रदान करते हुए लगते हैं. मशकबीन की धुन सुनते ही जो पहली चीज जहन में आती है वह है उत्तराखण्ड के पहाड़. ठेठ पहाड़ी शादियां मशकबीन के बिना संपन्न ही नहीं होती. कुमाऊँ का सबसे लोकप्रिय नृत्य छोलिया की जान मशकबीन की धुन ही है. उत्तराखण्ड के सभी उत्सव ढोल-दमाऊ की ताल के साथ मशकबीन के सुरों की संगत में संपन्न होते हैं. (Mashakbeen Scotland to Uttarakhand)

आज जिस मशकबीन के बिना उत्तराखण्ड के लोकसंगीत की कल्पना तक कर पाना मुश्किल है वह इस राज्य में सदियों से बजाया जा रहा परंपरागत वाद्ययंत्र नहीं है. दरअसल ब्रिटिश राज के साथ ही उत्तराखण्ड में आया स्कॉटलैंड का बाजा बैगपाइप.

इसे भी पढ़ें : उत्तराखण्ड का लुप्तप्रायः वाद्य बिणाई

ब्रिटिश भारत में आर्मी बैंड में इस्तेमाल होने वाले इस बाजे को डेढ़ सौ साल पहले अंग्रेज फौजी टुकडियां अपने साथ उत्तराखण्ड की पहाड़ियों में लेकर आयीं. पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में ब्रिटिश फौजों के साथ लाम पर गए कुमाऊनी, गढ़वाली सैनिकों को इसे सीखने का ख़ासा मौका मिला. आर्मी बैंड की प्रस्तुति में बैगपाइप बजाने वाले सैनिक छुट्टियों के दौरान इसे साथ लेते आये और उत्सव, समारोहों का हिस्सा बना दिया. इस तरह मशकबीन सेना ही नहीं पहाड़ों में भी ख़ासा लोकप्रिय हो गया.

बैगपाइप को उसका नया नाम मिला — मशकबीन, बीनबाजा, मशकबाजा. मशकबीन सिर्फ पहाड़ के समारोहों का हिस्सा ही नहीं बनी बल्कि लोक में रच-बस गयी.

ऐसा नहीं है कि मशकबीन से पहले कोई सुरीला वाद्य उत्तराखण्ड के लोकसंगीत की संगत के लिए नहीं था. मशकबीन के आने से पहले उत्तराखण्ड के लोकसंगीत में सारंगी का इस्तेमाल किया जाता था. आज भी आकाशवाणी के पुराने गीतों में आप सारंगी के सुर सुन सकते हैं. उत्तराखण्ड की पुराने शिल्पकार संगीतकारों में कई बेहतरीन सारंगीवादक हुआ करते थे. इसी सारंगी को पृष्ठभूमि में धकेलकर बैगपाइप ने अपनी जगह बनायी और सारंगी उत्तराखण्ड से विलुप्त हो गयी. हालांकि सारंगी भी शायद मशकबीन की तरह ही उत्तराखण्ड के लोकसंगीत में बाहर से ही आई थी. मशकबीन की ही तरह सारंगी बनाने वाले कारीगर भी यहां कभी नहीं थे. जबकि उत्तराखण्ड में इस्तेमाल होने वाले अन्य साज यहीं के शिल्पियों द्वारा बनाये जाते रहे हैं.

इसे भी पढ़ें : हुड़का: उत्तराखण्ड का प्रमुख ताल वाद्य

मशकबीन का स्वर उत्तराखण्ड के लोकसंगीत के सर्वथा मुफीद था. इसका एक कारण शायद यह भी था कि स्कॉटलैंड का भूगोल और जनजीवन उत्तराखण्ड से ख़ासा मिलता जुलता था. आज भी आप किसी स्कॉटिश धुन को सुनकर उसके उत्तराखण्ड की लोकधुनों के साथ समानता से एकबारगी हैरान रह जाते हैं.  

उत्तराखण्ड के अलावा राजस्थान, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कई हिस्सों में मशकबीन की पैठ है.  

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

5 days ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

6 days ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

1 week ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

2 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago