भारत के गर्म और उमस भरे मौसम के बीच नैनीताल की खोज ब्रिटेन के लोगों के लिए वरदान की तरह थी. औपनिवेशकवाद में अपनी मातृभूमि के ठंडे तापमान के लिए परेशान ब्रिटिशर्स को नैनीताल के मौसम में सुकून और शांति मिली. नैनीताल के बसने और विकास के साथ-साथ पर्यटन की शुरुआत के लिए भी ब्रिटेन के लोगो ने अनेक प्रयास किए थे.
(Mary Jane Corbett Hindi Article)
औपनिवेशिक काल में अपनी खोज के बाद से ही नैनीताल कई लोगों के लिए गर्मियों का ठिकाना रह चुका है. आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र और पहाड़ी शहर नैनीताल उस ब्रिटिश महिला के बारे में जानकारी शून्य है जिसने नैनीताल को एक टूरिस्ट हब बनाने का प्रयास सर्वप्रथम किया था. जी हां अचूक शिकारी, वन्यजीव संरक्षणकर्ता और पर्यावरणविद जिम कार्बेट की माँ मैरी जेन कार्बेट ने आज से 135 साल पहले नैनीताल में टूरिस्टों के लिए पहली आवास सुविधा का श्रीगणेश किया था.
अब एक चहल-पहल वाला पर्यटन स्थल नैनीताल उस ब्रिटिश महिला के बारे में सब भूल गया है जिसने 135 साल पहले इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में पहला कदम उठाया था. मैरी जेन कार्बेट ही वस्तुतः इस पहाड़ी शहर में पर्यटन गतिविधियों की जननी कही जा सकती है क्योंकि उन्होंने ही आगंतुकों के लिए अपनी पहली आवास सुविधा स्थापित की थी.
इतिहास का यह पृष्ठ समय की परतों के नीचे दबा पड़ा है क्योंकि सुरम्य पहाड़ी शहर हर साल पर्यटकों की भीड़ के साथ अपने आप में खो जाता है. मैरी जेन, मसूरी और नैनीताल की पहाड़ियों में रहती थीं और नैनीताल में ही उन्होंने अंतिम श्वास ली थी. उनका अंतिम विश्राम स्थल भी नैनीताल शहर की गोद में सेंट जान-इन-द-वाइल्डरनेस चर्च के अहाते में स्थित है. पर्यटन के विकास के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली महिला की कब्र आज वीरान है.
मैरी जेन प्रकृति के सुरम्य आंचल नैनीताल शहर में रहने की सुविधा प्रदान करने वाली पहली इंसान थीं और अपनी छोटी सी शुरुआत से उन्होंने यहां पर पर्यटन संस्कृति के बीज बोए जो धीरे-धीरे यहां के लोगों के मुख्य व्यवसायों में से एक बन गया और अब इसकी अर्थव्यवस्था को आकार देता है.
आज शहर को पर्यटन गतिविधियों से धन मिलने के बावजूद पर्यटन की जननी उपेक्षित और भुला दी गई है. विभिन्न देशों के लोग आज भी अपने पूर्वजों के विश्राम स्थल के नयनाभिराम के लिए नैनीताल आते हैं जिन्हें औपनिवेशिक काल के दौरान यहां दफनाया गया था. यदि भावनात्मक कारणों से नहीं तो कम से कम पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस साइट को भलीभांति संरक्षित, प्रचारित और प्रसारित किया जाना चाहिए था. इस कब्र के अवशेष इस शहर के इतिहास का हिस्सा हैं. यह स्थल शांतिपूर्ण वातावरण और प्राकृतिक सुंदरता समेटे हुवे देखने लायक है.
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सन 1862 में जिम कार्बेट के पिता क्रिस्टोफर विलियम को, जो कि पहले अफगान युद्धों और बाद में 1840 के सिख युद्धों और विद्रोह के एक अनुभवी भी थे, को नैनीताल में पोस्टमास्टर के रूप में नियुक्त किया गया था. एक पोस्टमास्टर की सीमित आय पर पंद्रह सदस्यों वाले बड़े परिवार का पालन-पोषण करना कठिन होने के कारण मैरी जेन ने परिवार की आय में इज़ाफे के लिए आगंतुकों के ठहरने की सुविधा के रूप में अपना आधा घर किराए पर लगा दिया था. यह पहली बार था जब नैनीताल में आगंतुकों के लिए ठहरने की सुविधा हुई थी.
जिम कार्बेट की किताबों के अंशों से पता चलता है कि जब कार्बेट नैनीताल चले गए तो उन्होंने चाइना पीक की पहाड़ी के सामने के क्षेत्र में एक दो मंजिला घर के साथ एक आउट हाउस भी बनाया. यहां मैरी जेन ने अपने 15 बच्चों के परिवार का पालन पोषण किया और साथ ही आगंतुकों के लिए एक आवास गृह भी चलाया ताकि घर को आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान की जा सके.
सन 1880 में भूस्खलन और 1881 में अपने पति की मृत्यु के बाद मैरी जेन, अयारपाटा के क्षेत्र में रहने लगी और शहर की प्रसिद्ध इमारत गुर्नी हाउस का निर्माण किया. घर का निर्माण पुराने घर की बची खुची निर्माण सामग्री से किया गया था. यही कारण था कि इसका नामकरण गुर्नी हाउस (Meanings of Gurney is a house made from the carted remains of a broken or dismantled house. The Gurney house was constructed from the remains of a dismantled house on Alma Hill which got destroyed in a landslide hence getting the name.) के रूप में किया गया. यह कौटेज कोलोनियल स्टाइल में चारों ओर फुलवाड़ी और लान के परिवेश से घिरा है.
मैरी जेन का निधन सन 1924 में और उनके पति क्रिस्टोफर विलियम का निधन सन 1881 में हुआ और इन दोनों की कब्र नैनीताल के चर्च आफ सेंट जान-इन-द-वाइल्डरनेस के कब्रिस्तान में स्थित है.
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मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले डा. नागेश कुमार शाह वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं. डा. नागेश कुमार शाह आई.सी.ए.आर में प्रधान वैज्ञानिक के पद से सेवानिवृत्त हुये हैं. अब तक बीस से अधिक कहानियां लिख चुके डा. नागेश कुमार शाह के एक सौ पचास से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्र व लेख राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं.
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